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Tuesday, July 22, 2025

ट्रेन विस्फोट मामले में जीवित बचे लोगों ने उच्च न्यायालय के फैसले को निराशाजनक बताया

Newsट्रेन विस्फोट मामले में जीवित बचे लोगों ने उच्च न्यायालय के फैसले को निराशाजनक बताया

मुंबई, 21 जुलाई (भाषा) मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा 2006 के मुंबई ट्रेन बम विस्फोट मामले के सभी 12 आरोपियों को सोमवार को बरी किए जाने के फैसले के बाद इस आतंकी हमले में जीवित बचे लोगों ने गहरे आघात के साथ निराशा व्यक्त की।

इस मामले में ये लोग न्याय के लिए 19 वर्षों से इंतजार कर रहे हैं।

विस्फोट में जीवित बचे चिराग चौहान ने आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले पर निराशा व्यक्त की और कहा कि ‘न्याय की हत्या कर दी गई।’

चौहान व्हीलचेयर के सहारे हैं और वह पेशे से ‘चार्टर्ड अकाउंटेंट’ (सीए) हैं।

फैसले के कुछ घंटों बाद चौहान (40) ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर फैसले पर गहरी निराशा व्यक्त की और कहा कि ‘आज देश का कानून विफल हो गया।’

यहां सात ट्रेनों में विस्फोट में 180 से अधिक लोगों की मौत के 19 साल बाद मुंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया और कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा, जिससे यह विश्वास करना कठिन है कि आरोपियों ने अपराध किया है।

चौहान ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘आज सभी के लिए बहुत दुखद दिन है। न्याय की हत्या कर दी गई। हजारों परिवारों को हुई अपूरणीय क्षति और पीड़ा के लिए किसी को सजा नहीं मिली।’’

ये घटना 11 जुलाई 2006 को हुई और उस समय चौहान की उम्र 21 साल थी, जो सीए के छात्र थे। खार और सांताक्रूज़ स्टेशन के बीच बम विस्फोट होते समय वह पश्चिमी रेलवे की लोकल ट्रेन में यात्रा कर रहे थे।

जीवित बचे एक अन्य व्यक्ति पश्चिमी रेलवे के कर्मचारी महेंद्र पितले (52) ने कहा कि वह आतंकवादी हमले के 19 साल बाद आए फैसले से सहमत नहीं हैं।

उन्होंने निराशा भरे स्वर में पूछा, ‘‘अगर जो लोग बरी हो गए हैं, वे सिलसिलेवार बम विस्फोट के असली दोषी नहीं हैं, तो फिर असली दोषी कौन हैं और उन्हें कब सजा दी जाएगी या इसमें भी 19 साल लगेंगे?’’

विस्फोट में जीवित बचे एक अन्य व्यक्ति बागवानी ठेकेदार हरीश पोवार (44) ने फैसले को चौंकाने वाला बताया।

पालघर जिले के विरार निवासी पोवार प्रतिदिन दक्षिण मुंबई के उपनगरीय लोकल ट्रेन से यात्रा करते थे और यात्रा के दौरान उसके प्रथम श्रेणी कोच में बम विस्फोट हो जाने से वह घायल हो गए थे।

पोवार ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘लगभग दो दशक बाद भी विस्फोट का दृश्य मेरी आंखों के सामने बार-बार आता है। मुझे याद है कि डिब्बे के अंदर लाशें पड़ी थीं और इसकी दीवारों पर खून के छींटे थे। कुछ लोग दर्द से तड़प रहे थे, जबकि कुछ बेसुध पड़े थे।’’

भाषा यासिर दिलीप

दिलीप

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