राजस्थान के झालावाड़ जिले में एक स्कूल की जर्जर इमारत ढहने से हुए दर्दनाक हादसे ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। हादसे में कई मासूम बच्चों की मौत हो गई, जबकि कई घायल हैं। यह केवल एक दुर्घटना नहीं, बल्कि सरकारी लापरवाही, सिस्टम की सुस्त चाल का नतीजा है।
घटना के बाद प्रदेशभर में आक्रोश की लहर है। प्रारंभिक जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद जिला प्रशासन ने कार्यवाहक प्रिंसिपल सहित 5 अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। इस घटना में पांच अधिकारियों और जिम्मेदारों को इस त्रासदी के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। जिनकी लापरवाही और चूक ने मासूमों की जान ले ली।
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर की भूमिका पर उठे सवाल
मदन दिलावर बतौर शिक्षा मंत्री राज्य की संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था के नीति निर्माण और प्रभावी क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार हैं। जर्जर स्कूल भवनों का मुद्दा कोई नया नहीं है स्थानीय जनप्रतिनिधियों और मीडिया की ओर से लगातार चेतावनियां दी जा रही थीं। इसके बावजूद न तो कोई ठोस सर्वे कराया गया, न ही मरम्मत के लिए योजना बनाई गई। अगर वक्त रहते सतर्कता बरती जाती और स्कूल भवनों की हालत पर नियमित समीक्षा होती, तो इस तरह की जानलेवा लापरवाही से बचा जा सकता था। हालांकि इस घटना के बाद शिक्षा मंत्री ने अपनी ज़िम्मेदारी मानते हुए सिस्टम को ठीक करने की बात कही है।
न तो व्यापक सर्वे कराया, न ही प्रभावी मॉनिटरिंग सिस्टम
जहां एक ओर स्थानीय स्तर पर जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की गई है, वहीं अब सवाल उठने लगे हैं। प्राथमिक शिक्षा निदेशालय के निदेशक सीताराम जाट की भूमिका पर। बतौर निदेशक सीताराम जाट की जिम्मेदारी थी कि वे सरकारी स्कूलों की स्थिति की समीक्षा, निगरानी और समय पर दखल सुनिश्चित करें। यह आरोप है कि निदेशालय ने न तो व्यापक सर्वे कराया, न ही प्रभावी मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित किया। नतीजा यह हुआ कि नीति और जमीन के बीच की खाई ने मासूमों की जान ले ली।
कलेक्टर की सीधी जिम्मेदारी थी सुरक्षा की निगरानी
बतौर जिले के मुखिया होने के नाते झालावाड़ जिला कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ की जिम्मेदारी होती है कि वे जिले के सभी सरकारी भवनों, खासकर स्कूलों की सुरक्षा की निगरानी सुनिश्चित करें। इसमें नियमित सुरक्षा ऑडिट, जर्जर इमारतों की समय पर पहचान, और मरम्मत या स्थानांतरण की प्रक्रिया शुरू करना शामिल है। हादसे की जानकारी के बावजूद कोई त्वरित और निर्णायक कार्रवाई नहीं की गई। स्कूल में रोज़ाना बच्चे पढ़ने आते रहे, और यह लापरवाही एक बड़े हादसे का कारण बन गई।
शिक्षा अधिकारी राम सिंह मीणा की जिम्मेदारी
जिले में तैनात शिक्षा अधिकारी राम सिंह मीणा की जिम्मेदारी थी कि वे स्कूलों की दैनिक गतिविधियों की निगरानी करें, भवनों की स्थिति का जायजा लें और जरूरत पड़ने पर जर्जर इमारतों की रिपोर्ट तैयार कर उन्हें मरम्मत या स्थानांतरण की प्रक्रिया में लाएं। यह स्थिति दर्शाती है कि फील्ड स्तर पर मौजूद अधिकारी न तो सक्रिय रूप से निरीक्षण कर रहे थे, न ही संभावित खतरे की गंभीरता को समझकर कार्रवाई कर रहे थे।
प्रिंसिपल की जिम्मेदारी निभाने में हुई चूक
झालावाड़ में हुआ ये हादसा केवल एक जर्जर इमारत के ढहने की नहीं है, बल्कि यह पूरी सरकारी व्यवस्था की विफलता का नतीजा है। फील्ड स्तर के अधिकारी चुप रहे, निदेशालय ने समय पर निगरानी नहीं की, जिला प्रशासन ने सक्रिय कदम नहीं उठाए, और आखिर में, स्कूल प्रिंसिपल ने भी जिम्मेदारी निभाने में चूक गई।
प्रिंसिपल को इमारत की जर्जर स्थिति के बारे में जानकारी थी इसके बावजूद भी बच्चों को उस खतरनाक इमारत में पढ़ने की अनुमति दी तो यह उनकी ओर से बच्चों की सुरक्षा के प्रति घोर लापरवाही को दर्शाता है। हालांकि सरकार ने चार शिक्षकों के साथ उनको भी निलंबित कर दिया है।