(फाइल फोटो के साथ)
नयी दिल्ली, 28 जुलाई (भाषा) हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादकों को राहत प्रदान करते हुए उच्चतम न्यायालय ने अतिक्रमित वन भूमि से फलदार सेब के बागों को हटाने के प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश पर सोमवार को रोक लगा दी।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ पूर्व उपमहापौर टिकेन्द्र सिंह पंवार एवं कार्यकर्ता अधिवक्ता राजीव राय की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
पंवार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी वी दिनेश और अधिवक्ता सुभाष चंद्रन के आर ने दलील दी कि उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में गलती की है, जिससे विशेषकर मानसून के मौसम में लाखों सेब उत्पादक प्रभावित हुए हैं।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि उच्च न्यायालय ने दो जुलाई को वन विभाग को सेब के बागों को हटाने और उनकी जगह वन पौधों की प्रजातियां लगाने तथा अतिक्रमणकारियों से भू-राजस्व के बकाया के रूप में इसकी लागत वसूलने का आदेश दिया था।
याचिकाकर्ता का कहना है कि उक्त आदेश मनमानापूर्ण एवं असंगत तथा संवैधानिक, वैधानिक और पर्यावरणीय सिद्धांतों के विरूद्ध है, जिसके कारण पारिस्थितिकी दृष्टि से नाजुक हिमाचल प्रदेश में अपरिवर्तनीय पारिस्थितिक एवं सामाजिक-आर्थिक नुकसान को रोकने के लिए शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप की जरूरत है।
याचिका में कहा गया है कि विशेष रूप से मानसून के मौसम के दौरान बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई से हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन और मिट्टी के कटाव का खतरा काफी बढ़ जाता है। हिमाचल प्रदेश भूकंपीय गतिविधि और पारिस्थितिक संवेदनशीलता वाला क्षेत्र है।
याचिका में कहा गया है, ‘‘सेब के बाग महज अतिक्रमण नहीं हैं, बल्कि ये मृदा स्थिरता में योगदान देते हैं, स्थानीय वन्यजीवों के लिए आवास उपलब्ध कराते हैं और राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं तथा हजारों किसानों की आजीविका को सहारा देते हैं।’’
भाषा राजकुमार दिलीप
दिलीप