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Tuesday, July 29, 2025

खरगे ने 1999 में मुख्यमंत्री पद गंवाने की बात याद की, कर्नाटक में नेतृत्व की अटकलें तेज

Newsखरगे ने 1999 में मुख्यमंत्री पद गंवाने की बात याद की, कर्नाटक में नेतृत्व की अटकलें तेज

बेंगलुरु, 28 जुलाई (भाषा) कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा 1999 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों के बाद एस एम कृष्णा के हाथों मुख्यमंत्री का पद गंवाने की बात याद दिलाने के बीच, प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है।

खरगे के बयान ने पार्टी में ‘दलित मुख्यमंत्री’ की बहस को फिर से हवा दे दी है, जिस मुद्दे पर वरिष्ठ नेता और प्रदेश सरकार के मंत्री जी परमेश्वर एवं एच सी महादेवप्पा पहले भी खुलकर बोल चुके हैं।

रविवार को विजयपुरा में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए खरगे ने कहा था, ‘…… कांग्रेस विधायक दल के नेता के रूप में (1999 के चुनावों से पहले) मैंने पार्टी को सत्ता में लाने की कोशिश की थी। पार्टी ने सरकार बनाई और एस एम कृष्णा मुख्यमंत्री बने। वह (केपीसीसी अध्यक्ष के रूप में) चार महीने पहले (चुनावों से) आए थे….मेरी सारी सेवा पानी में बह गई। मुझे लगता है कि मैंने पांच साल तक कड़ी मेहनत की, लेकिन जो व्यक्ति चार महीने पहले आया था उसे मुख्यमंत्री बना दिया गया….।’

उन्होंने कहा, ‘मैं यह कहना चाहता हूं कि हमें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, लेकिन हमें लालच के बिना काम करते रहना चाहिए। अगर आप लालची हैं, तो आपको कुछ नहीं मिलेगा। साथ ही आप वह भी नहीं कर पाएंगे जो आपके मन में है…..इन सब चीजों से गुजरते हुए, ब्लॉक अध्यक्ष से, आज में कांग्रेस अध्यक्ष बन गया हूं। मैं (कभी) पदों के पीछे नहीं भागा।’

खरगे के बयान के बाद जगलुर से कांग्रेस के विधायक बी. देवेंद्रप्पा ने भी एक दलित को मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग की, जिससे नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें और तेज हो गईं।

समाज कल्याण मंत्री महादेवप्पा ने सोमवार को खरगे के बयान और दलित मुख्यमंत्री के मुद्दे पर जवाब देते हुए कहा कि खरगे देश के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं और उनके पास किसी भी संवैधानिक पद को संभालने की पूरी योग्यता है।

उन्होंने कांग्रेस के दलित नेताओं दामोदरम संजीवय्या, सुशील कुमार शिंदे, जगन्नाथ पहाड़िया और राम सुंदर दास का नाम लेते हुए कहा, ‘समय आने पर पार्टी निर्णय करेगी और सभी उसका पालन करेंगे।’

हालांकि, अटकलों को कम करने की कोशिश करते हुए, खरगे के बेटे प्रियंक खरगे ने कहा कि उनके पिता केवल अपने राजनीतिक करियर में चले गए मार्ग को साझा कर रहे थे, दोनों उतार-चढ़ाव, और उनके भाषण को चुनिंदा रूप से नहीं बल्कि समग्र रूप से देखा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें कोई पछतावा नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘सभी के आशीर्वाद से, कलबुर्गी और कर्नाटक के लोगों के कारण, वह उस पद पर हैं जिस पर सुभाष चंद्र बोस और गांधीजी बैठे थे…..उन्होंने अपने राजनीतिक भविष्य के बारे में जो भी फैसला किया है, वह खुद तय करेंगे। उन्होंने वह सम्मान और प्रतिष्ठा अर्जित की है। उनका आलाकमान के साथ अच्छा रिश्ता है। वह जो भी फैसला करेंगे, राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी उसे स्वतः स्वीकार कर लेंगे।’

इस बीच, इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए, भाजपा की कर्नाटक इकाई के अध्यक्ष बी वाई विजयेंद्र ने कहा कि खरगे ने राज्य के लोगों के साथ खुले तौर पर अपना दर्द और निराशा साझा की है कि कांग्रेस पार्टी में 40-50 साल काम करने और इसके संगठन में योगदान करने के बावजूद, उन्हें मुख्यमंत्री का पद नहीं दिया गया।

भाषा योगेश रंजन

रंजन

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