नयी दिल्ली, 29 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) से मंगलवार को उस जनहित याचिका (पीआईएल) पर जवाब तलब किया, जिसमें एलएलबी और एलएलएम कोर्स के पाठ्यक्रम, पाठ्यचर्या और अवधि की समीक्षा के लिए एक कानूनी शिक्षा आयोग गठित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए केंद्र सरकार, यूजीसी, बीसीआई और भारतीय विधि आयोग को नौ सितंबर तक का समय दिया।
शीर्ष अदालत ने अपनी रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि इस मुद्दे पर सभी लंबित मामलों को नौ सितंबर को एक साथ सूचीबद्ध किया जाए।
अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दायर जनहित याचिका में शीर्ष अदालत से केंद्र को एलएलबी और एलएलएम कोर्स के पाठ्यक्रम, पाठ्यचर्या और अवधि की समीक्षा करने और कानूनी पेशे में सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए उचित कदम उठाने के वास्ते एक कानूनी शिक्षा आयोग या विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है।
याचिका में कहा गया है, “नयी शिक्षा नीति 2020 सभी व्यावसायिक और शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में चार वर्षीय स्नातक कोर्स को बढ़ावा देती है, लेकिन बीसीआई ने मौजूदा एलएलबी और एलएलएम कोर्स के पाठ्यक्रम, पाठ्यचर्या और अवधि की समीक्षा के लिए उचित कदम नहीं उठाए हैं।”
इसमें कहा गया है कि छात्रों को होने वाला नुकसान बहुत बड़ा है, क्योंकि बीए-एलएलबी और बीबीए-एलएलबी कोर्स की पांच साल की अवधि पाठ्यक्रम सामग्री के अनुपात से अधिक है।
याचिका में कहा गया है, “लंबी अवधि के कारण मध्यम और निम्न आय वर्ग के परिवारों पर अत्यधिक वित्तीय बोझ पड़ता है और वे इसे वहन करने में असमर्थ होते हैं। एक छात्र को अपने परिवार के लिए रोजी-रोटी कमाने वाला बनने में दो साल और लग जाते हैं।”
इसमें कहा गया है, “आईआईटी के माध्यम से बीटेक की डिग्री लेने में चार साल की अवधि लगती है और वह भी इंजीनियरिंग के एक विशिष्ट क्षेत्र में, जबकि एनएलयू और विभिन्न अन्य संबद्ध कॉलेजों के माध्यम से बीए-एलएलबी या बीबी-एलएलबी करने में छात्र के बहुमूल्य जीवन के पांच साल लग जाते हैं, जबकि कला/वाणिज्य, जो एक असंबंधित और अनावश्यक धारा है, का ज्ञान प्रदान किया जाता है। इसलिए, मौजूदा पांच वर्षीय पाठ्यक्रम की विशेषज्ञों से समीक्षा कराई जानी चाहिए।”
भाषा पारुल पवनेश
पवनेश