नयी दिल्ली, छह अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर ने बुधवार को कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में कार्यपालिका का काफी हस्तक्षेप रहा है।
उन्होंने ‘ग्लोबल ज्यूरिस्ट्स’ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में यह बात कही। कार्यक्रम का विषय ‘न्यायपालिका में नैतिकता, एक प्रतिमान या विरोधाभास’ था।
उन्होंने कहा, ‘जहां तक न्यायाधीशों की नियुक्ति का सवाल है तो हाल के दिनों में हमें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा है। मुझे लगता है कि नियुक्ति प्रक्रिया में कार्यपालिका का काफी हस्तक्षेप रहा है।”
न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा, ‘प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) को काफी समय पहले अंतिम रूप दे दिया गया था। लेकिन भारत सरकार के परामर्श से तैयार किए जाने के बावजूद एमओपी के कार्यान्वयन में तमाम तरह की समस्याएं रही हैं।’
उन्होंने कहा कि यदि न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया कार्यपालिका के हाथों में होगी तो ‘एक प्रकार की गड़बड़’ हो सकती है।
न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा, ‘आप शुरुआत में किसी व्यक्ति को नियुक्त कर सकते हैं और किसी वरिष्ठ व्यक्ति को छह या सात महीने तक लंबित रखा जा सकता है, ताकि वह हार मान ले या उसकी वरिष्ठता खत्म हो जाए, और यही हो रहा है। जिन उत्कृष्ट अधिवक्ताओं को नियुक्त किया जाना चाहिए, उन्हें नियुक्त नहीं किया जा रहा।’
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