28.4 C
Jaipur
Tuesday, August 12, 2025

पालीवाल ब्राह्मणों का रक्षाबंधन: राखी नहीं, बलिदान दिवस की परंपरा

Newsपालीवाल ब्राह्मणों का रक्षाबंधन: राखी नहीं, बलिदान दिवस की परंपरा

राजस्थान में एक ऐसा जिला भी है, जहां रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया जाता। पाली के पालीवाल ब्राह्मण इस दिन को “बलिदान दिवस” के रूप में मानते हैं। विक्रम संवत 1348 (सन् 1291 ई.) से चली आ रही यह परंपरा, उनके गौरव, संघर्ष और बलिदान की स्मृति से जुड़ी है। समाज के बुजुर्ग बताते हैं कि इस दिन उनके पूर्वजों ने धर्म, स्वाभिमान और मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्योछावर किए थे। इसी कारण, यहां राखी बांधने के बजाय पूर्वजों को तर्पण और श्रद्धांजलि दी जाती है।

एक समय था जब पाली नगर में लगभग 1.50 लाख पालीवाल ब्राह्मण परिवार रहते थे। वे आर्थिक रूप से सम्पन्न और सामाजिक रूप से संगठित थे। लेकिन उनकी समृद्धि लगातार आक्रमणकारियों और पहाड़ी लुटेरों की आंखों में खटकती रही। बार-बार होने वाले हमलों से परेशान होकर पालीवालों के मुखिया जसोधर ने राव सीहा से रक्षा की गुहार लगाई। एक लाख रुपए का नजराना देकर उन्होंने संरक्षण मांगा, जिसे राव सीहा ने स्वीकार किया। वर्षों तक राव सीहा ने पालीवालों की रक्षा की, लेकिन अंततः एक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।

विक्रम संवत 1348 की श्रावण पूर्णिमा पर, रक्षाबंधन के दिन, पालीवालों ने राखी के बजाय केसरिया बाना पहनकर युद्ध का बिगुल बजाया। हजारों पालीवाल योद्धाओं ने धर्म और सम्मान की रक्षा में अपने प्राण अर्पित किए। कहा जाता है कि युद्ध के बाद 9 मन जनेऊ शहीदों के शरीरों से उतारे गए, जबकि सती हुई महिलाओं की चूड़ियों का वजन 84 मन था—बलिदान और वीरता की यह मिसाल आज भी पालीवाल इतिहास में अमर है।

राव सीहा के पुत्र आस्थान के शासनकाल में, जलालुद्दीन खिलजी (फिरोजशाह द्वितीय) ने पाली पर भीषण आक्रमण किया। महीनों तक चला युद्ध जब उसकी जीत में तब्दील नहीं हुआ, तो उसने अमानवीय रणनीति अपनाई—गायों को मारकर पाली के एकमात्र जलस्रोत लाखोटिया तालाब में फेंक दिया। इससे न केवल धार्मिक भावनाएं आहत हुईं, बल्कि पानी का स्रोत भी अपवित्र और अनुपयोगी हो गया।

इस त्रासदी के बाद, बचे हुए पालीवाल ब्राह्मणों ने पाली को हमेशा के लिए छोड़ दिया और जैसलमेर रियासत की ओर पलायन किया। वहां उन्होंने नई बस्तियां बसाईं, लेकिन अपने बलिदान की स्मृति को कभी नहीं भुलाया। आज भी, पालीवाल समाज के लोग हर वर्ष रक्षा बंधन पर तालाब में तर्पण करते हैं, पूर्वजों की वीरता को याद करते हैं और त्याग, धर्म और स्वाभिमान की उस गाथा को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाते हैं।

यह भी पढ़ेंः- 11 अगस्त को कांग्रेस की रणनीतिक बैठक: मतदाता सूची गड़बड़ी पर देशव्यापी कैंपेन की तैयारी

Check out our other content

Check out other tags:

Most Popular Articles