चंडीगढ़, 11 अगस्त (भाषा) पंजाब की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने विपक्षी राजनीतिक दलों एवं किसान संगठनों के जबर्दस्त विरोध के बीच सोमवार को अपनी भूमि समेकन नीति वापस ले ली।
वैसे तो सरकार इस नीति का जोरदार बचाव कर रही थी, परन्तु कुछ दिन पहले पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने इसके कार्यान्वयन पर चार सप्ताह के लिए अंतरिम रोक लगा दी थी।
राज्य सरकार ने जो भूमि समेकन नीति वापस ली है उसमें भूस्वामी को एक एकड़ जमीन के बदले में 1,000 वर्ग गज का आवासीय भूखंड और पूर्ण विकसित भूमि पर 200 वर्ग गज का व्यावसायिक भूखंड दिए जाने का प्रावधान था।
सोमवार शाम को, आवास एवं शहरी विकास विभाग के प्रमुख सचिव ने एक बयान में कहा, ‘‘सरकार 14 मई की भूमि समेकन नीति और उसके बाद के संशोधनों को वापस लेती है।’’
बयान में कहा गया, ‘‘परिणामस्वरूप, जारी किए गए आशय पत्र, पंजीकरण या उसके तहत की गई कोई भी अन्य कार्रवाई अब से रद्द मानी जाएगी।’’
उच्च न्यायालय ने सात अगस्त को नीति पर अंतरिम रोक लगाते हुए कहा था कि ऐसा जान पड़ता है कि इसे जल्दबाजी में अधिसूचित किया गया है जबकि सामाजिक प्रभाव आकलन तथा पर्यावरणीय प्रभाव आकलन समेत चिंताओं का इसे अधिसूचित करने से पहले ही निराकरण कर लिया जाना चाहिए था।
मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली आप सरकार विपक्षी दलों और विभिन्न किसान संगठनों की आलोचना का सामना कर रही थी, जिन्होंने भूमि समेकन नीति को किसानों से उनकी जमीन ‘छीनने’ के उद्देश्य से लाई गई एक ‘लूट’ योजना करार दिया था।
शिरोमणि अकाली दल (शिअद), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस एवं कई अन्य दलों ने इस नीति के खिलाफ प्रदर्शन किए थे। संयुक्त किसान मोर्चा समेत विभिन्न किसान संगठनों ने भी विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई थी।
आप ने राज्य सरकार की नीति के खिलाफ ‘‘दुष्प्रचार’’ करने को लेकर विपक्षी दलों पर निशाना साधा था। पार्टी नेताओं ने इसे ‘‘किसान-हितैषी’’ बताया था।
राज्य सरकार ने आवासीय और औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने के लिए लुधियाना के कई गांवों समेत 164 गांवों में लगभग 65,000 एकड़ जमीन अधिगृहीत करने की योजना बनाई थी।
इससे पहले, सरकार ने लोगों को आश्वासन दिया था कि भूस्वामियों से एक गज भी जमीन जबरन नहीं ली जाएगी। उसने इस बात पर जोर दिया था कि यह नीति राज्य भर में पारदर्शी और नियोजित शहरी विकास को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है।
भाषा
राजकुमार नेत्रपाल
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