नयी दिल्ली, 12 अगस्त (भाषा) अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण संबंधी संसदीय समिति ने आरक्षण रोस्टर के ‘त्रुटिपूर्ण कार्यान्वयन’ के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय की आलोचना की है और आरोप लगाया है कि यह प्रक्रिया ‘विसंगतियों’ से प्रभावित रही है जिससे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के शिक्षकों को उनके वैध पदों से वंचित होना पड़ा है।
संसद में पेश अपनी पाँचवीं रिपोर्ट में, समिति ने कहा कि 2013 में आरक्षण रोस्टर को ‘विभाग एक इकाई के रूप में’ से ‘विश्वविद्यालय एक इकाई के रूप में’ पुनर्गठित करने के परिणामस्वरूप कई अनारक्षित पद आरक्षित पदों में परिवर्तित हो गए, लेकिन विश्वविद्यालय ने पिछली रिक्तियों को अधिसूचित नहीं किया और कुछ मामलों में, उन्हें अनारक्षित उम्मीदवारों के लिए आरक्षण से हटा दिया।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘समिति इस बात को संज्ञान में लेने के लिए बाध्य है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में रोस्टर पुन: तैयार करने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से, इसके दोषपूर्ण कार्यान्वयन के कारण इसमें कई विसंगतियां और कमियां रही हैं।’’
समिति ने विश्वविद्यालय के इस दावे को खारिज कर दिया कि कोई भी रिक्त पद लंबित नहीं है और उसे इन पदों की पहचान करने और तीन महीने के भीतर एक विशेष भर्ती अभियान चलाने का निर्देश दिया।
उसने यह भी सिफारिश की कि अनारक्षित श्रेणी के शिक्षक वर्तमान में जिन आरक्षित पदों पर हैं, के रिक्त होने पर उन्हें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को पुनः आवंटित किया जाए और अद्यतन रोस्टर ऑनलाइन प्रकाशित किए जाएं।
समिति ने प्रत्येक कॉलेज में एससी/एसटी प्रकोष्ठ स्थापित करने और विदेशी प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए एससी/एसटी कर्मचारियों के नामांकन बढ़ाने की सिफारिश की।
भाषा वैभव माधव
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