नयी दिल्ली, 12 अगस्त (भाषा) जलवायु परिवर्तन के कारण पड़ रही प्रचंड गर्मी की वजह से 1980 के बाद से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पक्षियों की संख्या में 25 से 38 प्रतिशत तक की कमी आई है जबकि कुछ प्रजातियों की संख्या आधी से भी कम रह गई है। एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है।
‘नेचर’ पत्रिका में सोमवार को इस संबंध में नया अनुसंधान पत्र प्रकाशित किया गया जिसे ‘पोट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च’ (पीआईके), क्वींसलैंड विश्वविद्यालय और ‘बार्सिलोना सुपरकंप्यूटिंग सेंटर’ (बीएससी) के वैज्ञानिकों ने किया है।
पीआईके में अतिथि अनुसंधानकर्ता और बीएससी में अनुसंधानकर्ता एवं अनुसंधान पत्र के प्रमुख लेखक मैक्सिमिलियन कोट्ज ने कहा, ‘‘ पक्षियों की संख्सा में यह कमी चौंका देने वाली है। पक्षी पानी की कमी और गर्मी के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं। अत्यधिक गर्मी के कारण अत्यधिक मृत्यु दर, प्रजनन क्षमता में कमी, प्रजनन व्यवहार में बदलाव और संतानों के जीवित रहने की दर में कमी आती है।’’
अध्ययन में पाया गया कि मौजूदा समय में उष्णकटिबंधीय पक्षी साल में औसतन 30 दिन भीषण गर्मी का सामना करते हैं, जबकि चार दशक पहले यह संख्या केवल तीन दिन थी। कुल मिलाकर, अब वे 1980 की तुलना में 10 गुना ज्यादा प्रचंड गर्मी का सामना कर रहे हैं।
अध्ययन के मुताबिक अनुसंधानकर्ताओं ने उपलब्ध आंकड़ों को विभिन्न मॉडल के साथ संयोजित किया और गर्मी एवं वर्षा पर ध्यान केंद्रित किया तथा इस प्रकार दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के पक्षियों की संख्या पर पड़ने वाले प्रभावों की पहचान की।
अध्ययन में कहा गया है, ‘‘मानव जनित जलवायु परिवर्तन के बिना की स्थिति और 1950 से 2020 बीच में रिकॉर्ड प्रचंड गर्मी की ऐतिहासिक आंकड़ों के आधार पर उष्णकटिबंधीय पक्षियों की तुलना की गई और पाया गया कि इनकी संख्या में 25-38 प्रतिशत की कमी आई है।’’
अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक पक्षियों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में दर्ज की गई, लेकिन लगभग हर क्षेत्र में इनकी संख्या कम हुई है जिसके लिए अत्यधिक गर्मी को सबसे बड़ा कारक माना गया है।
कोट्ज़ ने कहा, ‘‘बढ़ता तापमान वास्तव में प्रजातियों को उस सीमा से बाहर धकेल रहा है, जिसके लिए वे स्वाभाविक रूप से अनुकूलित हो चुके हैं और वह भी बहुत कम समय में।’’
अब तक, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को वनों की कटाई जैसी प्रत्यक्ष मानवीय गतिविधियों से होने वाले नुकसान से अलग करना चुनौतीपूर्ण रहा है।
पीआईके ने एक बयान में कहा कि अनुसंधान दल की विधियों ने उन्हें ऐसा करने में सक्षम बनाया, जिससे पता चला कि निचले अक्षांश वाले उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में प्रचंड गर्मी पक्षियों की संख्या में गिरावट में वनों की कटाई और आवास विनाश की तुलना में अधिक योगदान दे रही हैं।
बयान में कहा गया है कि इससे हाल में अमेजन और पनामा के अछूते उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में पक्षियों की संख्या में आई भारी गिरावट को समझने में मदद मिल सकती है।
क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के सह-लेखक तात्सुया अमानो ने कहा, ‘‘संरक्षण के संदर्भ में, यह कार्य हमें बताता है कि संरक्षित क्षेत्रों और वनों की कटाई को रोकने के अलावा, हमें उन प्रजातियों के लिए रणनीतियों पर तुरंत विचार करने की आवश्यकता है जो अत्यधिक गर्मी के प्रति अधिक संवेदनशील हैं, ताकि उनकी अनुकूलन क्षमता को अधिकतम किया जा सके।’’
कोट्ज़ ने कहा, ‘‘अंततः, मानव गतिविधियों से होने वाला उत्सर्जन ही इस समस्या के केंद्र में हैं। हमें इन्हें यथाशीघ्र कम करना होगा।’’
भाषा धीरज सिम्मी
सिम्मी