पुणे, 12 अगस्त (भाषा) महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने सत्र अदालत में किशोर न्याय बोर्ड के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें शहर में पिछले साल नशे की हालत में पोर्श कार चलाने और दो लोगों को कुचलने के आरोपी 17-वर्षीय लड़के पर एक वयस्क की तरह मुकदमा चलाने के उनके अनुरोध को खारिज कर दिया गया था। एक अधिकारी ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
देशभर में सुर्खियां बटोरने वाली यह घटना पिछले साल 19 मई को पुणे के कल्याणी नगर इलाके में घटी थी, जिसमें मोटरसाइकिल सवार आईटी पेशेवर अनीश अवधिया और उसकी दोस्त अश्विनी कोस्टा की मौत हो गई थी। आरोपी एक जाने-माने रियल एस्टेट डेवलपर का बेटा है।
किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) ने पिछले महीने पुणे पुलिस की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें किशोर आरोपी के खिलाफ वयस्क की तरह मुकदमा चलाने का आग्रह किया गया था। बोर्ड ने कहा था कि यह ‘जघन्य अपराध’ की श्रेणी में नहीं आता।
अपराध शाखा के एक अधिकारी ने मंगलवार को बताया कि जिला कलेक्टर से आवश्यक अनुमति प्राप्त करने के बाद पुणे पुलिस ने यहां सत्र अदालत का दरवाजा खटखटाया और चार अगस्त को जेजेबी के आदेश को चुनौती दी।
पोर्श कार दुर्घटना मामले में विशेष लोक अभियोजक शिशिर हिरय की सहायता कर रहे अधिवक्ता सारथी पंसारे ने कहा कि सत्र अदालत में आवेदन प्रस्तुत करते समय अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि किशोर को इस बात की पूरी जानकारी थी कि यदि वह नशे की हालत में कार चलाएगा तो उसे क्या परिणाम भुगतने पड़ेंगे।
पंसारे ने कहा, ‘‘हमारी मांग है कि किशोर का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन किया जाए और यह तभी किया जा सकता है जब उसे मामले में वयस्क घोषित कर दिया जाए। हमने तर्क दिया कि यह एक असाधारण मामला है और किशोर के साथ वयस्क जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए।’
लड़के का प्रतिनिधित्व कर रहे बचाव पक्ष के वकील प्रशांत पाटिल ने ‘‘शिल्पा मित्तल बनाम राज्य सरकार’’ मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले का हवाला दिया था, जिसमें शीर्ष अदालत ने जघन्य अपराध की परिभाषा दी थी।
पाटिल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा तय किए गए दिशानिर्देश सभी के लिए बाध्यकारी हैं, हालांकि अभियोजन पक्ष की दलील शीर्ष अदालत के फैसले के विपरीत है।
उन्होंने कहा कि बचाव पक्ष का अनुरोध है कि चूंकि याचिका उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों के विपरीत है, इसलिए यह सुनवाई योग्य नहीं है।
पाटिल ने कहा कि किसी अपराध को जघन्य अपराध के रूप में परिभाषित करने के लिए अभियोजन पक्ष के पास ऐसी धारा (मामले में प्रयुक्त) होनी चाहिए, जिसमें सात साल की न्यूनतम सजा का प्रावधान हो।
जेजेबी ने अपने आदेश में कहा कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 15 के तहत बच्चे का प्रारंभिक मूल्यांकन नहीं किया जाना चाहिए। प्रारंभिक मूल्यांकन का प्रावधान केवल जघन्य अपराधों के लिए है।
पिछले वर्ष 19 मई को हुई भयावह दुर्घटना के कुछ घंटों बाद ही लड़के को जमानत मिल गई थी।
उससे सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखने के लिए कहने सहित जमानत की अन्य मामूली शर्तों को लेकर विवाद खड़ा हो गया था, जिसके तीन दिन बाद आरोपी को पुणे शहर के एक सुधार गृह में भेज दिया गया था।
मुंबई उच्च न्यायालय ने 25 जून 2024 को आरोपी को तुरंत रिहा करने का निर्देश देते हुए कहा था कि किशोर न्याय बोर्ड का उसे सुधार गृह भेजने का आदेश गैरकानूनी था और किशोरों से संबंधित कानून का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए।
भाषा नोमान सुरेश
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