नयी दिल्ली, 12 अगस्त (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने नकली दवाओं, खासकर मधुमेह-रोधी दवा ओजेम्पिक की विदेशी संस्थाओं को आपूर्ति से जुड़े करोड़ों डॉलर के अंतरराष्ट्रीय घोटाले के आरोपी व्यक्ति की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सौरभ प्रताप सिंह लालर ने आरोपी विक्की रमंचा की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि भारत को ‘दुनिया की फार्मेसी’ के रूप में स्थापित करने के लिए दवा संबंधी अपराधों के खिलाफ त्वरित कानूनी कार्रवाई आवश्यक है।
अदालत ने 11 अगस्त को दिये आदेश में कहा, “नकली दवाओं की आपूर्ति जन स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए सीधा खतरा है। दुनिया की फार्मेसी के रूप में भारत की स्थिति को बनाए रखने और वैध निर्माताओं को नियमों के दबाव से बचाने के लिए दवा संबंधी अपराधों के खिलाफ त्वरित कानूनी कार्रवाई आवश्यक है।”
आरोपी पर ‘एक अंतरराष्ट्रीय धोखाधड़ी गिरोह’ का हिस्सा होने का आरोप है और इस धोखाधड़ी की वजह से शिकायतकर्ता कंपनी ‘जे एश्योर ग्लोबल एलएलसी’ को 164 करोड़ रुपये से अधिक का कथित तौर पर वित्तीय नुकसान हुआ।
अदालत ने भारत के फार्मास्युटिकल क्षेत्र को ‘सबसे मूल्यवान आर्थिक व रणनीतिक संपत्तियों’ में से एक बताते हुए याचिकाकर्ता को राहत प्रदान करने के खिलाफ कई कारकों को रेखांकित किया।
फार्मास्युटिकल क्षेत्र का राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में महत्वपूर्ण योगदान है।
अदालत ने आरोपी की अंतरराष्ट्रीय पहुंच, वित्तीय संसाधनों, साक्ष्यों से छेड़छाड़ और गवाहों को धमकाने की आशंका के अलावा उसके फरार होने के जोखिम का भी जिक्र किया।
आदेश के मुताबिक, “ऐसी परिस्थितियों में जहां जन स्वास्थ्य व सुरक्षा के खिलाफ गंभीर आरोप शामिल हों, अंतरराष्ट्रीय प्रभाव भारत के दवा उद्योग की प्रतिष्ठा के लिए खतरा हों, मामले की जांच के लिए हिरासत में पूछताछ व अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता हो और (जब) जमानत देने से आपराधिक न्याय प्रणाली में जनता का विश्वास कमजोर होता हो, आरोपी को अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती।”
न्यायाधीश ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह मामला देश का वैश्विक दवा क्षेत्र में अग्रणी बनकर उभरना, गुणवत्ता, अखंडता और कानूनी अनुपालन के उच्चतम मानकों को बनाए रखने की जिम्मेदारियों को भी दर्शाता है।
अदालत ने हालांकि स्पष्ट किया कि याचिका खारिज करने का मतलब यह नहीं है कि आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाए।
भाषा जितेंद्र प्रशांत
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