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Thursday, August 14, 2025

बायां हाथ दिवस: दाएं हाथ वालों के लिये बनी दुनिया में बाएं हाथ वालों की चुनौतियां कम नहीं

Newsबायां हाथ दिवस: दाएं हाथ वालों के लिये बनी दुनिया में बाएं हाथ वालों की चुनौतियां कम नहीं

(मनीष सैन)

नयी दिल्ली, 12 अगस्त (भाषा) स्वाभाविक रूप से यदि आप अपने बाएं हाथ का ज्यादा उपयोग करते हैं यानी आप बाएं हाथ वाले हैं… तो निश्चित रूप से एक ऐसी दुनिया में आपके सामने चुनौतियां कहीं ज्यादा होंगी जहां आम तौर पर चीजें दाएं हाथ वालों के प्रति अनुकूल और संरेखित हैं।

स्कूल डेस्क दाएं हाथ से काम करने वालों के लिए डिजाइन किए गए हैं, जैसे कैंची, नोटपैड, कैन ओपनर और अविश्वसनीय रूप से सूप आदि परोसने वाली करछी आदि। और, जाहिर है, कंप्यूटर माउस के बटनों को भी नए सिरे से संयोजित करना पड़ता है। दाएं हाथ से काम करने वाले लोग रोजमर्रा की बहुत सी बारीकियों को बहुत हल्के में लेते हैं।

इन सबके साथ, पूर्वाग्रह भी जुड़ जाते हैं। दरअसल, “सिनिस्टर” शब्द एक लैटिन शब्द से आया है जिसका अर्थ है “बाईं ओर”। मरियम वेबस्टर डिक्शनरी कहती है, “ ‘बाएं’ शब्द का ‘बुराई’ से जुड़ाव शायद इसलिए है क्योंकि आबादी में दाएं हाथ वालों का बोलबाला है।”

13 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय ‘बायां हाथ दिवस’ पर जब दुनिया ‘लेफ्ट-हैंडर्स’ का जश्न मना रही है, आयुष्मान पांडे को अपने बचपन के दिन याद आ रहे हैं जब उन्हें बाएं हाथ से खाना खाने पर उनकी मां डांटती थीं और स्कूल में दाहिने हाथ से पंजा लड़ाने में हार जाने पर उनका मजाक उड़ाया जाता था।

अब 33 वर्ष के हो चुके डबलिन स्थित मीडियाकर्मी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “मुझे ऐसा लगता था कि मेरे साथ कुछ गड़बड़ है कि अन्य छात्र अपने दाहिने हाथ का इस्तेमाल कर रहे हैं और मैं गलत हाथ का इस्तेमाल कर रहा हूं।”

अपने जीवन के 30 से ज़्यादा सालों तक, पांडे खुद को “अक्षम” मानते रहे क्योंकि वे कैंची का अपनी क्षमता के अनुसार इस्तेमाल नहीं कर पाए। आयरलैंड जाने के बाद ही उन्हें विश्व व्यवस्था में एक विसंगति – बाएं हाथ की कैंची – का पता चला।

पांडे के लिए यह एक नयी दुनिया थी, क्योंकि बाएं हाथ से काम करने वाले लोगों के लिए बनाई गई बहुत सी चीजों से उनका परिचय हुआ – लगभग हर वह चीज जो उन्हें अपर्याप्त महसूस कराती थी, जब उनके आस-पास के लोग उन्हें नापसंदगी भरी नजरों से देखते थे।

‘साइकोलॉजिकल बुलेटिन’ पत्रिका में प्रकाशित एथेंस के नेशनल एंड कपोडिस्ट्रियन विश्वविद्यालय की यूनानी वैज्ञानिक मैरिएटा पापाडाटो-पास्तो द्वारा किए गए मेटा-विश्लेषण के अनुसार, विश्व की लगभग 10 प्रतिशत जनसंख्या, यानी लगभग 80 करोड़ लोग बाएं हाथ से काम करते हैं।

बाएं हाथ वालों के ‘क्लब’ में बराक ओबामा, बिल गेट्स, पॉल मेकार्टनी, जिमी हेंड्रिक्स, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रतन टाटा, रजनीकांत, अमिताभ बच्चन और सचिन तेंदुलकर जैसे लोग शामिल हैं।

बहुत से लोग हालांकि ऐसे हैं जिन्हें बाएं हाथ का होने की वजह से चुनौतियां का भी सामना करना पड़ता है।

कृतिका शर्मा (परिवर्तित नाम) का मानना है कि उन्हें चिंता हो गई थी और उन्हें सीखने में दिक्कत हो रही थी क्योंकि उनके पिता, जो एक स्कूल शिक्षक थे, उनके लिखने वाले हाथ को “सुधारने” के लिए सख्त कदम उठाते थे।

घर से रसोइये का काम करने वाली 28 वर्षीय कृतिका ने कहा, “अगर मैं बाएं हाथ से लिखती, तो वे मेरी उंगलियों पर मारते थे। आखिरकार मैं अपने दाहिने हाथ से लिखने में कामयाब रही, लेकिन मैं जो लिख रही थी उस पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रही थी। मुझे हमेशा डर लगा रहता था कि कहीं खराब लिखावट के लिए मुझे फिर से मार न पड़े।”

वरिष्ठ पारिवारिक परामर्शदाता मैत्री चंद ने कहा कि माता-पिता या शिक्षकों जैसे अधिकार प्राप्त व्यक्तियों का “सुधारात्मक” व्यवहार बच्चों पर स्थायी और अक्सर विघटनकारी प्रभाव छोड़ सकता है।

चंद ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “जब बच्चा बायां हाथ ज़्यादा इस्तेमाल करता है, तब उसे दायां हाथ इस्तेमाल करने को कहना बहुत भ्रामक हो सकता है क्योंकि यह उसके दिमाग के खिलाफ जाता है। यहां तक कि अगर बहुत सहज तरीके से किया जाए, तब भी इसका गहरा असर हो सकता है। बच्चा बड़ा होकर ज़्यादा संवेदनशील हो सकता है। बच्चा सोचता और मानता है कि उसके साथ कुछ गड़बड़ है।”

दिल्ली सरकार के स्कूल में अध्यापिका रिद्धि (परिवर्तित नाम) ने अपने 10 वर्षों के कार्य अनुभव में देखा है कि किंडरगार्टन या अन्य प्रारंभिक कक्षाओं में बच्चे दोनों हाथों से प्रयोग करते हैं, उसके बाद वे उस हाथ से काम करते हैं जिससे उन्हें अधिक सहजता महसूस होती है।

इसी तरह की एक और मशहूर कहानी क्रिकेट के महानायक सचिन तेंदुलकर की है।

तेंदुलकर, जो दुनिया भर में ख्याति प्राप्त एक धमाकेदार दाएं हाथ के बल्लेबाज बने, स्वाभाविक रूप से बाएं हाथ के हैं। घर पर दाएं हाथ की क्रिकेट किट पहनकर अभ्यास करने की परिस्थिति ने ही उन्हें अपने कमजोर पक्ष (दाएं हाथ) से खेलने का प्रशिक्षण दिया, और उसके बाद जो हुआ वह इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गया।

दिल्ली के पत्रकार नीलेश भगत मानते हैं कि उन्हें कभी भी अपने दाहिने हाथ का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर नहीं किया गया। अब वे अपने “आम” दाहिने हाथ वाले सहकर्मियों के बीच ख़ास महसूस करते हैं।

रिद्धि कहती हैं कि बच्चों को फलने-फूलने देने का सबसे अच्छा तरीका है कि उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया जाए।

भाषा प्रशांत संतोष

संतोष

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