नयी दिल्ली, 12 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को इस मुद्दे को विचार के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ को भेज दिया कि क्या कोई न्यायिक अधिकारी, जो नियुक्ति से पहले ही बार में सात वर्ष का कार्यकाल पूरा कर चुका है, रिक्त पद के मद्देनजर अतिरिक्त जिला न्यायाधीश बनने का हकदार है।
शीर्ष अदालत ने यह प्रश्न का संविधान पीठ को भेजा है कि क्या जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए पात्रता पर केवल नियुक्ति के समय विचार किया जाना चाहिए या आवेदन के समय या दोनों पर।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ ने कहा कि दोनों मुद्दों में संविधान के अनुच्छेद 233(2) की व्याख्या के संबंध में कानून का महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल है।
संविधान का अनुच्छेद 233 जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है।
पीठ ने कहा, ‘‘हम उपरोक्त मुद्दों को इस न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष विचारार्थ भेजते हैं। रजिस्ट्री को निर्देश दिया जाता है कि वह उचित आदेश प्राप्त करने के लिए मामले को प्रशासनिक पक्ष से भारत के प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखे।’’
शीर्ष अदालत ने यह आदेश केरल उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई करते हुए पारित किया, जिसमें एक जिला न्यायाधीश की नियुक्ति को इस आधार पर रद्द कर दिया गया था कि नियुक्ति के समय वह अधिवक्ता नहीं थे और न्यायिक सेवा में थे।
याचिकाकर्ता वकालत कर रहे एक वकील हैं, जिन्होंने जब जिला न्यायाधीश के पद के लिए आवेदन दिया था तब उनके पास बार में सात वर्ष का अनुभव था।
भाषा धीरज नेत्रपाल
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