जयपुर, 14 अगस्त (भाषा) विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर बृहस्पतिवार को राजस्थान में अजमेर के राजकीय संग्रहालय में प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।
प्रदर्शनी में विभाजन के दौरान हुए अत्याचार और इसका मुकाबला करती जिजीविषा को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है।
इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए विधानसभाध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि विभाजन भौगोलिक भाग पर नहीं होकर संस्कृति और सामाजिक आत्मा का हुआ था।
उन्होंने कहा कि उस समय बंगाल, पंजाब तथा सिंध प्रान्त विभाजन से सर्वाधिक प्रभावित हुए थे, बंगाल और पंजाब का कुछ भाग भारत में रहा जबकि सिंध तो पूरा ही अलग हो गया।
उन्होंने कहा कि यह विभाजन भौगोलिक सीमाओं से आगे बढ़कर सांस्कृतिक और सामाजिक आत्मा का हुआ था क्योंकि तत्कालीन नेताओं ने नेतृत्व प्राप्ति की चाह से विभाजन कराया, इसके लिए दोषी व्यक्तियों को समाज को हमेशा याद रखना चाहिए।
भारत के विभाजन की तस्वीरे प्रदर्शनी में फिर सामने आईं। ये यादें अभी तक इतनी मार्मिक हैं कि देवनानी भी खुद पर काबू नहीं रख पाए और बोलते-बोलते उनका गला रूंध गया, आंखें छलक आई। उनके साथ कार्यक्रम में मौजूद बुजुर्ग भी रो पड़े।
आज का दिन विभाजन विभीषिका को याद करने का था और मौजूद हर शख्स के सामने पुरानी तस्वीरें उभर आईं।
देवनानी ने कहा कि अपने इतिहास को भूलने वाली संस्कृति नष्ट हो जाती है, इतिहास नई पीढ़ी लिए मार्ग निर्धारक होता है।
उन्होंने कहा कि विभाजन की पीड़ा को भी नई पीढ़ी को बताया जाना आवश्यक है, तभी उन्हें अहसास होगा कि आज की पीढ़ी की उपलब्धि पुरानी पीढ़ी के पुरूषार्थ का फल है।
उन्होंने कहा कि उस पीढ़ी ने सनातन की रक्षा के लिए भारत का चुनाव किया , उन्होंने अत्याचार सहे, हिन्दुओं की लाशों से भरी हुई रेलें भेजी गई।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाने की परम्परा आरम्भ की, जो उस समय मारे गए व्यक्तियों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।
विधानसभाध्यक्ष ने कहा कि अखण्ड भारत अवश्य बनेगा, राष्ट्रगान में गाए जाने वाले शब्द हमें इसके लिए प्रेरणा देते रहेंगे।
देवनानी ने कहा कि राजकीय संग्रहालय में भारत विभाजन की गैलेरी निर्मित की जाएगी,इससे आगन्तुकों को उस समय हुए अत्याचारों की जानकारी मिलेगी। संग्रहालय के लिए राज्य सरकार द्वारा पांच करोड़ की राशि उपलब्ध कराई जाएगी।
देवनानी ने विभाजन के बाद संघर्ष के दिनों को याद किया। उन्होंने कहा कि माता-पिता विभाजन के बाद अजमेर आए तो परिवार के पास कुछ नहीं था, यहां छोटे-मोटे काम कर स्वयं को स्थापित किया।
उन्होंने बताया कि कैसे एक पैसे में बिस्किट बेचे, किस तरह पढ़ाई की, सुभाष उद्यान की लाइट के नीचे बैठ कर बोर्ड परीक्षा की तैयारी की तथा किस तरह जीवन संघर्षों से हार नहीं मानी।
उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी को अपने बुजुर्गों के संघर्ष को याद रख उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।
भाषा कुंज
राजकुमार
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