राजस्थान विधानसभा मानसून सत्र 1 सितंबर 2025 से शुरू होने के साथ ही प्रदेश की सियासत में एक बार फिर हलचल देखने को मिल सकती है। इस सत्र में भजनलाल सरकार धर्मांतरण विरोधी विधेयक (एंटी-कन्वर्जन बिल) पास करा सकती है जिसे बजट सत्र के दौरान स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने पेश किया था लेकिन तब बहस नहीं हो पाई थी। अब यह बिल सरकार की प्राथमिकता सूची में शीर्ष पर है।
कानून मंत्री जोगाराम पटेल ने हाल में कहा कि इस सत्र में हम धर्म परिवर्तन पर विधेयक सदन में पेश करेंगे। इस विधेयक का नाम “राजस्थान विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेद विधेयक 2025” है और यदि विधेयक पारित हो जाता है तो राजस्थान में धर्म परिवर्तन आसान नहीं होगा।
इस विधेयक के क़ानून बनने के बाद राजस्थान में जबरन धर्म परिवर्तन पर अधिकतम 10 साल तक की सज़ा का प्रावधान हो जाएगा और अगर कोई स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करता है तो उसे एक लंबी प्रक्रिया से गुज़रना होगा। सरकार के मुताबिक इस बिल का मुख्य उद्देश्य जबरन, धोखाधड़ी या दबाव के जरिए होने वाले धर्म परिवर्तन के मामलों को रोकना है जिसे अक्सर ‘लव जिहाद’ से जोड़कर देखा जाता है। बता दें कि इससे पहले राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी साल 2008 में धर्म परिवर्तन पर विधेयक पेश किया था लेकिन उसे केंद्र की मंजूरी नहीं मिली थी।
धर्मांतरण पर सख़्त सज़ा और जुर्माने का प्रावधान
इस विधेयक के मुताबिक़, धर्मांतरण मामले में दोषी पाए जाने पर 1 से 5 साल की सज़ा हो सकती है और कम से कम 15 हज़ार रुपये का जुर्माना होगा। वहीं नाबालिग, महिला और अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) से संबंधित व्यक्ति के धर्म परिवर्तन मामले में 2 से 10 साल तक की सज़ा और 25 हज़ार रुपए तक जुर्माना भरना पड़ सकता है। इसके अलावा सामूहिक धर्म परिवर्तन के मामलों में 3 से 10 साल के बीच जेल होगी और कम से कम 50 हज़ार रुपए जुर्माना देना होगा।
सरकार के सामने चुनौतियां
वहीं विधेयक में कोर्ट की तरफ़ से पीड़ित को मुआवजा देने का प्रावधान भी है। बिल के प्रावधानों के अलावा सदन में इसे पारित करवाने में सरकार के सामने कई चुनौतियां भी हैं जैसे विधेयक में सेक्शन-8 में कहा गया है कि “अगर कोई धर्म परिवर्तन करता है तो 60 दिन पहले ज़िलाधिकारी को बताना होगा जिसके बाद डीएम पुलिस के ज़रिए जांच करेंगे और पुलिस असल उद्देश्य या मक़सद का पता लगाएगी।
धर्म परिवर्तन वाली शादी होगी रद्द
इस सेक्शन पर हाईकोर्ट के एक वरिष्ठ वकील कहते हैं कि पुलिस या कोई पब्लिक ऑफिसर किसी के धर्म परिवर्तन का असली उद्देश्य कैसे पता लगाएगी? विधेयक में उस तरीके के बारे में कोई जिक्र नहीं किया गया है। वकील के मुताबिक विधेयक के सेक्शन-6 में जिक्र है कि अगर कोई शादी सिर्फ़ धर्म परिवर्तन के उद्देश्य से की जा रही है तो उसे रद्द किया जाएगा जहां फ़ैमिली कोर्ट को भी शादी को निरस्त करने की ताक़त दी गई है।
विधानसभा में बिल पर टिकी निगाहें
वकील आगे बताते हैं कि विधेयक के सेक्शन-4 में कहा गया है कि धर्म परिवर्तन में संबंधित व्यक्ति से जुड़ा कोई भी शख्स शिकायत दे सकता है लेकिन जब तक खुद व्यक्ति स्वयं क़ानून की मदद नहीं मांगता तब तक राज्य कैसे उसकी व्यक्तिगत आस्था और धर्म में दखल दे सकता है? अब देखना होगा कि विधानसभा सत्र के दौरान सरकार इस विधेयक को पारित करवा पाती है या नहीं?
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