…पूनम मेहरा…
नयी दिल्ली, 18 अगस्त (भाषा) खेल मंत्रालय खेल महासंघों के शीर्ष पदों के लिए ‘युवा प्रशासकों और खिलाड़ियों’ को प्रोत्साहित करने के लिए पहले से निर्धारित दो कार्यकाल के पात्रता नियम को खत्म कर इसे सिर्फ एक कार्यकाल तक सीमित करना चाहता है। पिछले सप्ताह संसद में पारित हो चुके राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक को औपचारिक रूप से एक अधिनियम बनने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार है। इसमें राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ) में अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष के पदों के लिए चुनाव लड़ने हेतु मानदंड निर्धारित किये गये है। शीर्ष तीन पदों के लिए इच्छुक किसी भी व्यक्ति के लिए मूल रूप से कार्यकारी समिति में दो कार्यकाल अनिवार्य थे। सभी हितधारकों के साथ परामर्श के बाद इसमें संशोधन कर इसे न्यूनतम एक कार्यकाल तक सीमित कर दिया गया है। खेल मंत्री मनसुख मांडविया ने पिछले हफ्ते संशोधित विधेयक पारित होने के बाद पीटीआई को दिए साक्षात्कार में कहा कि यह बदलाव प्रशासकों का एक बड़ा प्रतिस्पर्धी क्षेत्र सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक संतुलन बनाता है। उन्होंने तर्क दिया, ‘‘ महासंघों के चुनावों में दावेदारी पेश करने के लिए न्यूनतम पूर्व कार्यकाल की शर्त को कम करने का निर्णय योग्य और सक्षम उम्मीदवारों के विकल्प को व्यापक बनाने के लिये लिया गया। इसमें यह भी सुनिश्चित किया गया कि उनके पास प्रभावी ढंग से सेवा करने के लिए पर्याप्त अनुभव हो।’’ मांडविया ने कहा, ‘ खेल विधेयक से जुड़े विचार-विमर्श में खिलाड़ियों के प्रतिनिधियों और छोटे महासंघों सहित कई हितधारकों ने इस बात पर जोर दिया कि अत्यधिक प्रतिबंधात्मक पात्रता नियम पद पर बैठे लोगों को मजबूत करते हैं और नए नेतृत्व के लिए अवसरों को सीमित करते हैं।’’ यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारतीय ओलंपिक संघ की वर्तमान अध्यक्ष पीटी उषा और अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ के प्रमुख कल्याण चौबे अगर चाहें तो फिर से चुनाव लड़ सकें, नियमों में ढील दी गई है। दोनों ने अपने-अपने निकायों की कार्यकारी समितियों में एक-एक कार्यकाल पूरा किया है। संशोधित प्रावधान राज्य निकायों के अध्यक्षों, सचिवों और कोषाध्यक्षों के लिए भी राष्ट्रीय खेल संघों में नेतृत्व की भूमिकाओं के लिए दावा करने का रास्ता बनाता है, जिससे चुनाव के समय प्रतिस्पर्धा का दायरा बढ़ेगा। मंत्री ने कहा कि कार्यकारी समिति में न्यूनतम कार्यकाल की आवश्यकता को कम करने से यह सुनिश्चित होगा कि निरंतरता और अनुभव के सिद्धांतों से समझौता किए बिना व्यापक प्रतिभा उपलब्ध हो सके। इस छूट से यह सुनिश्चित हो गया है कि वर्तमान भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) अध्यक्ष पी टी उषा और अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ के प्रमुख कल्याण चौबे अगर चाहे तो फिर चुनाव लड़ सकेंगे। दोनों ही अपनी-अपनी संस्थाओं की कार्यकारी समितियों में एक-एक कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। संशोधित प्रावधान राज्य निकायों के अध्यक्षों, सचिवों और कोषाध्यक्षों के लिए राष्ट्रीय खेल महासंघों में नेतृत्व से जुड़ी भूमिका के लिए दावा करने का अवसर भी प्रदान करता है। इससे चुनाव के समय प्रतिस्पर्धा का दायरा बढ़ जाता है। मंत्री ने कहा कि कार्यकारी परिषद में न्यूनतम कार्यकाल की आवश्यकता को कम करने से यह सुनिश्चित होगा कि निरंतरता और अनुभव के सिद्धांतों से समझौता किए बिना एक व्यापक प्रतिभा आधार उपलब्ध हो। उन्होंने कहा, ‘‘कुछ मामलों में प्रतिभाशाली प्रशासक और मजबूत प्रशासनिक क्षमता वाले पूर्व खिलाड़ी सिर्फ इसलिए चुनाव नहीं लड़ पाए क्योंकि उन्होंने कार्यकारी समिति में कार्यकाल पूरा नहीं किया था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ यह संशोधन निरंतरता और अनुभव की आवश्यकता को बनाए रखते हुए एक संतुलन बनाता है ताकि महासंघ के शीर्ष पदों के लिए युवा प्रशासकों और खिलाड़ियों को चुनने का व्यापक विकल्प हो।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इस बदलाव का उद्देश्य नए दृष्टिकोणों के समावेश को प्रोत्साहित करना, नेतृत्व प्रतियोगिताओं में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना और सत्ता के केंद्रीकरण को कम करना है।’’ भाषा आनन्द पंतपंत