नयी दिल्ली, 18 अगस्त (भाषा) राज्यसभा में सोमवार को विभिन्न दलों के सदस्यों ने भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में बंदरगाहों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया और कहा कि सरकार को देश के जलमार्गों के विकास तथा उनकी सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए।
उच्च सदन में भारतीय पत्तन विधेयक 2025 पर हुई चर्चा में भाग ले रहे भाजपा सदस्य शंभुशरण पटेल ने कहा कि यह दूरदर्शी विधेयक है जो 21वीं शताब्दी की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। उन्होंने कहा कि यह विश्व को संदेश देगा कि भारत अब औपनिवेशिक कानूनों में जकड़ा नहीं रहेगा।
उन्होंने कहा कि यह विधेयक भारत को विकसित देश बनाने के लक्ष्य में महत्वपूर्ण योगदान देगा। उन्होंने कहा कि इसके प्रावधानों से प्रमुख बंदरगाहों के साथ साथ गैर-प्रमुख बंदरगाह भी कार्गों का पेशेवर ढंग से प्रबंधन करने में सक्षम होंगे।
असम गण परिषद के वीरेंद्र प्रसाद वैश्य ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि जल मार्ग आज समय की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आज देश में रेल संपर्क, वायु संपर्क और सड़क संपर्क हैं तथा इस विधेयक के प्रावधानों से देश में बंदरगाहों के माध्यम से जल संपर्क बनाने में काफी मदद मिलेगी।
उन्होंने ध्यान दिलाया कि जब कोई क्षेत्र बाढ़ के पानी से घिर जाता है तो वहां केवल जलमार्ग से ही संपर्क किया जा सकता है, इसलिए जलमार्ग पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है।
भाजपा के रामभाई हरजीभाई मोकरिया ने कहा कि देश की तटरेखा करीब 11 हजार किमी लंबी है और इसका पूरा उपयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा ‘‘भारतीय पत्तन विधेयक 2025 इसमें मददगार होगा।’’
उन्होंने कहा ‘‘पोरबंदर बंदरगाह देश का सबसे पुराना और ऐतिहासिक बंदरगाह है। इसकी अवसंरचना में अधिक सुधार करने की जरूरत है। गुजरात में तटीय बंदरगाहों के मजबूत होने से आयात-निर्यात में उल्लेखनीय मदद मिलेगी।’’
वाईएसआर पार्टी के गोल्ला बाबूराव ने कहा ‘‘सरकार बंदरगाहों के उन्नयन पर ध्यान दे रही है। अभी बहुत कुछ किया गया है लेकिन बहुत कुछ किया जाना बाकी है। बंदरगाह कर्मचारियों की सहूलियतों पर भी ध्यान देना बहुत जरूरी है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘अगर विकसित भारत का सपना हकीकत में बदलना है तो बंदरगाह क्षेत्र की अनदेखी नहीं की जा सकती।’’
बीजद की सुलता देव ने कहा ‘‘ओडिशा का नौवहन क्षेत्र कितना विकसित था इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक समय ओडिशा से समुद्र मार्ग से दूसरे देशों में व्यापार होता था।’’
सुलता ने कहा कि ओडिशा की तटीय रेखा 480 किमी है जिसके विकास के लिए कई बार केंद्र को लिखा गया लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ। ‘‘हमने बार बार सागरमाला परियोजना की मांग की लेकिन हमें कुछ नहीं मिला।’’
उन्होंने कहा कि ओडिशा के मछुआरों की भी समस्याएं हैं। उन्होंने कहा कि आए दिन ओडिशा में चक्रवात और अन्य प्राकृतिक आपदाएं आती हैं जिन्हें ध्यान में रखते हुए कदम उठाना होगा। वहां के नौवहन को देखते हुए सभी बंदरगाहों का उन्नयन जरूरी है क्योंकि कई खनिज हमारे राज्य में मिलते हैं जिससे निर्यात को बढ़ावा दिया जा सकता है।
अन्नाद्रमुक सदस्य एम थंबीदुरै ने कहा कि बड़े बंदरगाहों में बहुत कुछ है लेकिन छोटे बंदरगाहों को विकसित करना भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि यह भी ध्यान में रखना होगा कि कई बार मादक पदार्थों की खेप समुद्र मार्ग से इन बंदरगाहों पर आती है, इसलिए सुरक्षा को चाक चौबंद बनाना होगा।
उन्होंने तमिलनाडु में सत्ताधारी दल पर बंदरगाहों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया।
भाजपा के धैर्यशील मोहन पाटिल ने कहा कि इस विधेयक को 1908 के अधिनियम की जगह लेने के लिए लाया गया है क्योंकि पुराना विधेयक अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के अनुकूल बनाया था। उन्होंने कहा कि बदलते समय के साथ चुनौतियां भी बदलीं और दूसरे देशों के साथ कई संधियां भी हुईं। ‘‘यही वजह है कि नया विधेयक लाना पड़ा।’’
भाजपा की रेखा शर्मा ने कहा कि पिछले कानून में कई खामियां थीं लेकिन नये विधेयक में आज की चुनौतियों के समाधान का प्रयास किया गया है। उन्होंने कहा कि नए विधेयक में सुरक्षा पर खास ध्यान दिया गया है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सुनेत्रा अजीत पवार ने कहा कि देश की तटरेखा लंबी है लेकिन इसका प्रबंधन पुराने कानून के अनुरूप हो रहा था। उन्होंने कहा कि यह स्थिति अब नहीं चल सकती क्योंकि हम ‘‘विकसित भारत’’ की बात करते हैं।
उन्होंने कहा कि सहकारी संघवाद के आधार पर तैयार किया गया यह विधेयक राज्यों को अपने विधेयकों के संबंध में विस्तृत अधिकार देगा।
सुनेत्रा ने कहा कि समय को देखते हुए समुद्री संस्थानों का विकास तथा समुद्री शिक्षा जरूरी है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस बारे में विधेयक में प्रावधान किए जाने चाहिए।
चर्चा में राकांपा के प्रफुल्ल पटेल, तेदेपा के मस्तान राव यादव बीधा, भाजपा के मयंककुमार नायक, कणाद पुरकायस्थ, मिथिलेश कुमार और बीआरएस के रविचंद्र वद्दीराजू ने भी हिस्सा लिया।
भाषा
मनीषा अविनाश
अविनाश