नयी दिल्ली, 19 अगस्त (भाषा) बैडमिंटन की जीवन रेखा कही जाने वाली शटलकॉक इस खेल की सबसे बड़ी चिंता बन गई है, क्योंकि चीन में कच्चे माल की भारी कमी के कारण पिछले एक साल में पंख वाले शटलकॉक की कीमतें दोगुनी से भी अधिक हो गई हैं।
फ्रांसीसी समाचार पत्र एल’इक्विप में हाल ही में प्रकाशित एक लेख में इस संकट के लिए चीन में खान-पान की बदलती आदतों को जिम्मेदार ठहराया गया है, जहां बत्तख और हंस के मांस की अपेक्षा सूअर के मांस को प्राथमिकता दिए जाने के कारण इन पक्षियों का पालन कम कर दिया है। बैडमिंटन की विश्व भर में बढ़ती लोकप्रियता भी इसका एक और कारण माना जा रहा है।
इस दबाव ने भारत के शीर्ष हितधारकों को यह स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया है कि खेल अब केवल हंस और बत्तख के पंखों पर निर्भर नहीं रह सकता।
मुख्य राष्ट्रीय कोच पुलेला गोपीचंद ने पीटीआई से कहा, ‘‘आज नहीं तो कल हमें पंखों वाली शटल का विकल्प तलाश करना ही होगा। यह खेल पिछले कुछ वर्षों में तेजी से आगे बढ़ा है। अकेले चीन, इंडोनेशिया और भारत में शटल का बहुत अधिक उपयोग किया जाता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह कमी सिर्फ़ बत्तखों या हंसों की कम संख्या के कारण नहीं है, बल्कि इसलिए भी है क्योंकि ज़्यादा लोग बैडमिंटन खेल रहे हैं। यह एक अच्छा संकेत है। जब तक हमें प्रयोगशाला में तैयार किए गए विकल्प नहीं मिल जाते तब तक यह समस्या बनी रहेगी। मुझे उम्मीद है कि अब कुछ वर्षों में हमें विकल्प मिल जाएंगे।’’
भारतीय बैडमिंटन संघ के सचिव संजय मिश्रा ने कहा कि राष्ट्रीय शिविरों के लिए शटल की कमी नहीं होने दी जाएगी लेकिन उन्होंने माना कि भविष्य में यह एक बड़ी चुनौती होगी।
उन्होंने कहा, ‘‘योनेक्स ने हमें 20 अगस्त के बाद शटल की खेप भेजने का आश्वासन दिया है, इसलिए अभी घबराने की कोई बात नहीं है। लेकिन ये शटल हंस और बत्तख के पंखों से बने होते हैं। जैसे-जैसे वैश्विक स्तर पर मांग बढ़ रही है, हमें विकल्पों के बारे में सोचना होगा।‘‘
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पंत सुधीर
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