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Wednesday, August 20, 2025

अगर एआई हमारी अधिकतर नौकरियां छीन ले, तो पैसे की कमाई नहीं होगी, फिर क्या होगा?

Newsअगर एआई हमारी अधिकतर नौकरियां छीन ले, तो पैसे की कमाई नहीं होगी, फिर क्या होगा?

(बेन स्पाइस-बुचर, मैक्वेरी विश्वविद्यालय)

सिडनी, 19 अगस्त (द कन्वरसेशन) यह एक युग की निर्णायक प्रौद्योगिकी है। लेकिन कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) हमारे भविष्य को किस प्रकार आकार देगी, यह एक विवादास्पद प्रश्न बना हुआ है।

प्रौद्योगिकी के प्रति आशावादी रुख रखने वाले लोग तकनीक को हमारे जीवन में सुधार के रूप में देखते हैं, यह भौतिक समृद्धि से भरे भविष्य का संकेत है।

यह परिणाम निश्चित नहीं है। लेकिन अगर एआई का तकनीकी वादा साकार भी हो जाए और इसके साथ ही, जटिल समस्याओं का समाधान भी हो जाए – तो उस समृद्धि का उपयोग कैसे किया जाएगा?

हम ऑस्ट्रेलिया की खाद्य अर्थव्यवस्था में इस तनाव को पहले से ही छोटे पैमाने पर देख सकते हैं। ऑस्ट्रेलियाई सरकार के अनुसार, हम सामूहिक रूप से प्रति वर्ष लगभग 76 लाख टन भोजन बर्बाद करते हैं। यानी प्रति व्यक्ति लगभग 312 किलोग्राम। लेकिन इसी के साथ ऑस्ट्रेलिया में आठ में से एक व्यक्ति खाद्य असुरक्षा से जूझ रहा है, मुख्यतः इसलिए क्योंकि उसके पास अपनी जरूरत के भोजन का भुगतान करने के लिए पर्याप्त धन नहीं है।

यह एआई क्रांति से प्राप्त होने वाले भौतिक समृद्धि के वादे को न्यायोचित रूप से वितरित करने की हमारी क्षमता के बारे में क्या कहता है? एआई हमारे आर्थिक मॉडल को तोड़ सकता है।

जैसा कि अर्थशास्त्री लियोनेल रॉबिंस ने आधुनिक बाजार अर्थशास्त्र की नींव रखते समय स्पष्ट किया था, अर्थशास्त्र साध्य (हम क्या चाहते हैं) और सीमित साधनों (हमारे पास क्या है) के बीच संबंधों का अध्ययन है, जिनके वैकल्पिक उपयोग होते हैं।

बाजारों को इस तरह समझा जाता है कि ये सीमित संसाधनों का आवंटन असीमित इच्छाओं की पूर्ति के लिए करते हैं।

कमी (या दुर्लभता) कीमतों को प्रभावित करती है – अर्थात लोग वस्तुओं और सेवाओं के लिए कितना भुगतान करने को तैयार हैं।

और जीवन की आवश्यकताओं के लिए भुगतान करने की आवश्यकता हमें (अधिकतर लोगों को) काम करने के लिए मजबूर करती है, ताकि हम पैसा कमा सकें और और अधिक वस्तुएं तथा सेवाएं उत्पन्न कर सकें।

एआई द्वारा समृद्धि लाने और जटिल चिकित्सा, इंजीनियरिंग और सामाजिक समस्याओं के समाधान का वादा इस बाजार तर्क के बिल्कुल विपरीत है।

यह सीधे तौर पर इस चिंता से भी जुड़ा है कि तकनीक लाखों कर्मचारियों को बेरोजगार कर देगी। और वेतन वाले काम के बगैर लोग पैसा कैसे कमाएंगे, या बाजार कैसे काम करेंगे?

*इच्छाओं और जरूरतों को पूरा करना

केवल प्रौद्योगिकी ही बेरोजगारी का कारण नहीं है। बाजार की अर्थव्यवस्थाओं की एक अपेक्षाकृत अनूठी विशेषता यह है कि ये स्पष्ट रूप से प्रचुरता के बीच, बेरोजगारी या कम मजदूरी के जरिए, बड़े पैमाने पर जरूरतें पैदा करने की क्षमता रखती हैं।

जैसा कि अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड कीन्स ने बताया, मंदी और आर्थिक गिरावट खुद बाजार प्रणाली का ही परिणाम हो सकती है, जिससे बहुत से लोग गरीबी में चले जाते हैं, जबकि कच्चा माल, कारखाने और मज़दूर बेकार पड़े रहते हैं।

ऑस्ट्रेलिया में, हाल ही में जो आर्थिक मंदी आई थी, वह बाजार की विफलता की वजह से नहीं थी। इसका कारण महामारी से उत्पन्न सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट था। फिर भी इसने तकनीकी प्रगति से उत्पन्न होने वाली समृद्धि या प्रचुरता की आर्थिक चुनौती के एक संभावित समाधान को उजागर किया।

सरकारी लाभों में किए गए बदलाव (जैसे कि भुगतान बढ़ाना, गतिविधि परीक्षण हटाना और पात्रता की शर्तों को आसान बनाना) ने गरीबी और खाद्य असुरक्षा को काफी हद तक कम कर दिया है, भले ही देश की उत्पादन क्षमता में गिरावट आई है।

दुनियाभर में इसी तरह की नीतियां लागू की गई हैं और 200 से अधिक देशों में नकद भुगतान शुरू किया गया। महामारी के इस अनुभव ने इस बढ़ती हुई मांग को और मजबूत किया कि तकनीकी प्रगति को ‘सार्वभौमिक बुनियादी आय’ के साथ जोड़ा जाए।

यह ‘ऑस्ट्रेलियन बेसिक इनकम लैब’ का एक प्रमुख शोध विषय है जो मैक्वेरी यूनिवर्सिटी, सिडनी यूनिवर्सिटी और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी का एक साझा प्रयास है।

अगर सभी के पास जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त आय की गारंटी हो, तो बाजार अर्थव्यवस्थाएं इस बदलाव को संभाल सकती हैं और तकनीक के वादे व्यापक रूप से साझा किए जा सकते हैं।

*कल्याण, या वाजिब हिस्सा?

जब हम सार्वभौमिक बुनियादी आय की बात करते हैं, तो हमें स्पष्ट रूप से समझना होगा कि हमारा क्या मतलब है। इस विचार के कुछ संस्करण अब भी भारी धन संबंधी असमानताएं उत्पन्न कर देंगे।

‘ऑस्ट्रेलियाई बेसिक इनकम लैब’ में मेरी सहयोगी एलिस क्लेन ने स्टैनफोर्ड के प्रोफेसर जेम्स फर्ग्यूसन के साथ एक ऐसी सार्वभौमिक बुनियादी आय की वकालत कर रही हैं, जिसे कल्याण के लिए नहीं, बल्कि ‘वाजिब हिस्से’ के रूप में डिजाइन किया गया हो।

उनका तर्क है कि तकनीकी प्रगति और सामाजिक सहयोग के माध्यम से सृजित धन मानवता का सामूहिक कार्य है और इसका सभी को समान रूप से, एक बुनियादी मानव अधिकार के रूप में, उपभोग करना चाहिए, ठीक उसी तरह जैसे हम किसी देश के प्राकृतिक संसाधनों को उसके लोगों की सामूहिक संपत्ति मानते हैं।

*सार्वभौमिक बुनियादी सेवाएं

एआई का विरोध करने के बजाय, एक और समाधान उस सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को बदलना है जो इसके लाभों को वितरित करती है। ब्रिटिश लेखक आरोन बस्तानी ‘पूर्णतः स्वचालित विलासितापूर्ण साम्यवाद’ का एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं।

वे तकनीकी प्रगति का स्वागत करते हैं और उनका मानना है कि इससे जीवन स्तर में सुधार के साथ-साथ अधिक अवकाश भी मिलेगा। यह लेबर सरकार की नई पसंदीदा पुस्तक ‘एबंडेंस’ में उल्लिखित अधिक विनम्र महत्वाकांक्षाओं का एक क्रांतिकारी संस्करण है।

बस्तानी का पसंदीदा समाधान सार्वभौमिक बुनियादी आय नहीं है। बल्कि वे सार्वभौमिक बुनियादी सेवाओं के पक्षधर हैं।

लोगों को उनकी जरूरत की चीजें खरीदने के लिए पैसे देने के बजाय, उन्हें सीधे जरूरत की चीजें क्यों न प्रदान की जाएं – जैसे मुफ्त स्वास्थ्य सेवा, परिवहन, शिक्षा, ऊर्जा आदि?

* आदर्श स्थिति की गारंटी नहीं

सार्वभौमिक बुनियादी आय या सेवाओं के प्रस्ताव इस बात पर जोर देते हैं कि आशावादी दृष्टिकोण से भी एआई अकेले आदर्श स्थिति लाने में सक्षम नहीं है।

इसके बजाय, जैसा कि पीटर फ्रेज बताते हैं, तकनीकी प्रगति और पारिस्थितिक पतन का संयोजन बहुत अलग भविष्य का निर्माण कर सकता है, न केवल इस मामले में कि हम सामूहिक रूप से कितना उत्पादन कर सकते हैं, बल्कि इस मामले में भी कि हम राजनीतिक रूप से कैसे तय करते हैं कि किसे क्या और किन शर्तों पर मिलेगा।

अरबपतियों द्वारा संचालित तकनीकी कंपनियों की अपार शक्ति शायद पूर्व यूनानी वित्त मंत्री यानिस वरौफाकिस द्वारा कहे गए शब्द ‘टेक्नोफ्यूडलिज्म’ (तकनीकी समांतवाद) की तरफ इशारा करती है, जहां तकनीक और ऑनलाइन मंच पर नियंत्रण नए अधिनायकवाद के तहत बाजारों और लोकतंत्र की जगह ले लेता है।

तकनीकी ‘निर्वाण’ की प्रतीक्षा में आज की वास्तविक संभावनाओं को नजरअंदाज किया जा रहा है। हमारे पास पहले से ही सभी के लिए पर्याप्त भोजन है। हम पहले से ही जानते हैं कि गरीबी कैसे समाप्त की जाए। हमें यह बताने के लिए एआई की जरूरत नहीं है।

भाषा संतोष दिलीप

दिलीप

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