राजस्थान सरकार की ‘स्वामी विवेकानंद स्कॉलरशिप- 2025’ में बदलाव के बाद कई प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं के लिए विदेश में पढ़ाई का सपना टूट गया है. सरकार ने इस नीति में काफी कुछ बदलाव किए हैं, जिसके चलते प्रतिभाएं वंचित रह जाएगी. इस स्कॉलरशिप के तहत विश्वविद्यालय की संख्या भी 150 से घटाकर 50 कर दी गई है. इस बदलाव के चलते सितंबर 2025 सत्र में पढ़ने जाने वाले अधिकांश विद्यार्थियों को आखिरी वक्त में स्कॉलरशिप के लिए अयोग्य करार दे दिया है.
वहीं, इस बार साल 2025 के दिशानिर्देशों की घोषणा को अगस्त तक रोक कर अब जारी किया गया है. प्रक्रिया में देरी के चलते योग्य छात्रों को परेशानी हो रही है. इन स्टूडेंट्स की मांग है कि स्कॉलरशिप के दिशानिर्देशों पर पुनर्विचार किया जाए और इन्हें बीते वर्ष की गाईडलाइन के समान किया जाये जिसको मद्देनजर रखते विद्यार्थियों ने पूरे साल तैयारी कि.
*समझिए कि आखिर पूरा मामला है क्या*
राजस्थान के गरीब या कम आय वाले परिवारों के बच्चों का विदेश में पढ़ने का सपना पूरा करने के लिए 5 साल पहले राजीव गांधी योजना शुरू की गई थी, जिसका नाम बदलकर ‘स्वामी विवेकानंद स्कॉलरशिप फॉर एकेडमिक एक्सीलेंस योजना’ कर दिया गया. इस योजना के तहत देश-विदेश की टॉप यूनिवर्सिटी में 500 छात्रों को पढ़ने का मौका देने का दावा तो किया जाता है, लेकिन इसमें बड़ी लापरवाही सामने आ रही है. सितंबर-2025 के लिए आवेदन प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं हुई है. जबकि ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा, जर्मनी समेत कई देशों के विश्वविद्यालय में पहले सेमेस्टर की फीस जमा करवाने की डेडलाइन भी खत्म हो चुकी है.
*पिछले साल खाली रही 143 सीट*
हालात यह है कि बच्चे विदेश पढ़ने जाना चाहते भी हैं कि बावजूद इसके पिछले साल 143 सीटें खाली रह गई थीं. क्योंकि पिछले साल भी आवेदन प्रक्रिया में देरी हुई, जिसके चलते स्टूडेंट्स के सामने वक्त ही नहीं बचा. ऐसा ही कुछ आलम इस साल भी है. सितम्बर-2025 के लिए आवेदन प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं हुई है, जबकि 12वीं बोर्ड के रिजल्ट आ चुके हैं.
*स्टूडेंट्स बोले– सरकार को पहले ही करनी चाहिए थी घोषणा*
ऐसी ही एक छात्रा शालिनी चौधरी का कहना है, “मैंने एक साल से ज़्यादा समय तक तैयारी की. ब्रिस्टल (रैंक 78), ग्लासगो (रैंक 87) और बर्मिंघम (रैंक 90) जैसे शीर्ष रैंकिंग वाले विश्वविद्यालयों में प्रवेश प्राप्त किया, लेकिन मैंने लीड्स विश्वविद्यालय (रैंक 123) को चुना. अब सरकार ने अचानक केवल शीर्ष 50 विश्वविद्यालयों तक ही मान्यता सीमित कर दी है तो मेरे जैसे छात्रों को अनुचित रूप से दंडित किया जा रहा है. ऐसी घोषणाएं पहले होनी चाहिए थीं, जब हमारे पास अभी भी सोच–समझकर चुनाव करने का मौका था.”
छात्र अभिषेक मीणा* का कहना है, मैंने अपने विकल्प खुले रखने के लिए कई विश्वविद्यालयों में आवेदन किया था, लेकिन देरी के कारण मैं ज़्यादातर समय–सीमाएँ चूक गई. चूंकि मेरा ध्यान इस साल पूरी तरह से कॉलेज शुरू करने पर था, इसलिए मैंने कुछ और नहीं किया. इस वजह से मेरे एकेडमिक करियर में एक गैप ईयर जुड़ गया, जिसका अगले साल मेरे आवेदन प्रोफ़ाइल पर काफ़ी असर पड़ेगा. विश्वविद्यालयों के सामने इस गैप ईयर को सही ठहराना बहुत मुश्किल होगा, जिससे ऑफ़र लेटर मिलना और भी मुश्किल हो जाएगा.
गाइडलाइन का इंतज़ार कर रहे छात्र आदित्य जैन* का कहना है,“मैंने कई विश्वविद्यालयों में आवेदन किया था, लेकिन जब तक दिशानिर्देश आए, लगभग हर समय सीमा बीत चुकी थी. मैंने लीड्स विश्वविद्यालय को अंतिम रूप दिया, जो मेरे पाठ्यक्रम के लिए उत्कृष्ट है, लेकिन अब मैं अयोग्य हूं.”