निकाय चुनाव से पहले मेवाड़ की राजनीति में बड़ा उलटफेर होता दिख रहा है। बीजेपी के दिग्गज नेता और मेवाड़ में पार्टी के सिरमौर माने जाने वाले भाईसाहब गुलाबचंद कटारिया के पंजाब का राज्यपाल बनने के बाद धीरे-धीरे उनके विरोधी खेमे ने ताकत बटोरनी शुरू कर दी है। पार्टी की नई कार्यकारिणी में कटारिया के करीबी और दामाद को जगह नहीं मिलने से खेमेबाजी खुलकर सामने आ गई है।
लंबे समय तक मेवाड़ की राजनीति में सक्रिय रहने वाले कटारिया के समर्थक इसे सीधी अनदेखी मान रहे हैं। 1994 से अब तक लगातार 7 बार नगर निगम चुनाव जीत चुकी बीजेपी इस बार अंदरूनी खींचतान से जूझ रही है। पार्टी के भीतर गुटबाजी और नाराज़गी का आलम यह है कि 30 साल में पहली बार बीजेपी के भीतर कलह खुलकर सामने आई है।
पार्टी की नई कार्यकारिणी में मेवाड़ के कद्दावर नेता और पूर्व गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया के दामाद को जगह नहीं मिलने से हालात और बिगड़ गए हैं। कटारिया खेमे के कई करीबी नेताओं को भी दरकिनार कर दिया गया है, जिससे नाराज़गी और गहरी हो गई है। उदयपुर शहर बीजेपी की नई कार्यकारिणी को लेकर अंदरूनी विवाद और तेज़ हो गया है।
कटारिया के रिश्तेदार और पूर्व शहर जिला उपाध्यक्ष अतुल चंडालिया, जो कि जिलाध्यक्ष पद का दावेदार भी थे, लेकिन इस बार कार्यकारिणी में भी जगह नहीं पा सके। इसके बाद चंडालिया ने खुलकर नाराज़गी जताई है और शहर अध्यक्ष पर अनदेखी का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि वर्षों से पार्टी के लिए काम करने के बावजूद उन्हें साइडलाइन कर दिया गया। कटारिया खेमे के अन्य कई नेताओं को भी बाहर का रास्ता दिखाने के बाद से कार्यकर्ताओं के बीच नाराजगी बढ़ती जा रहा है।
नई कार्यकारिणी के बाद बढ़ी खींचतान
उदयपुर बीजेपी की नई कार्यकारिणी के ऐलान के बाद पार्टी में खींचतान और गहराती दिख रही है। कटारिया के करीबी गजेंद्र भंडारी, राजकुमार चित्तौड़ा, नानालाल वया और शहर विधायक ताराचंद जैन के निकट माने जाने वाले नीरज अग्निहोत्री को भी इस बार कार्यकारिणी से बाहर कर दिया गया है। भाईसाहब गुलाबचंद कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद से ही उनका विरोधी खेमा सक्रिय हो गया था।
निकाय चुनाव से पहले बढ़ी सियासी टेंशन
अब उनके करीबी नेताओं की अनदेखी से पार्टी में नाराजगी और बढ़ गई है। वहीं, 30 साल से शहर की सत्ता में लौटने का सपना देख रही कांग्रेस के लिए ये घटनाक्रम राहत की खबर है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यदि यही हालात रहे तो निकाय चुनाव में बीजेपी को भीतरघात का सामना करना पड़ सकता है।
Q1. मेवाड़ में बीजेपी के भीतर कलह क्यों बढ़ी है?
गुलाबचंद कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद उनकी पकड़ कमजोर हुई और विरोधी खेमा मजबूत हो गया। नई कार्यकारिणी में उनके दामाद और करीबी नेताओं को जगह नहीं मिली, जिससे असंतोष बढ़ गया।
Q2. कटारिया खेमे के कौन-कौन से नेताओं को कार्यकारिणी से बाहर किया गया है?
गजेंद्र भंडारी, राजकुमार चित्तौड़ा, नानालाल वया और विधायक ताराचंद जैन के करीबी नीरज अग्निहोत्री जैसे नेताओं को इस बार कार्यकारिणी में जगह नहीं मिली।
Q3. अतुल चंडालिया का विवाद क्या है?
कटारिया के रिश्तेदार और पूर्व शहर जिला उपाध्यक्ष अतुल चंडालिया जिलाध्यक्ष पद के दावेदार थे, लेकिन उन्हें कार्यकारिणी से भी बाहर कर दिया गया। उन्होंने नाराजगी जताते हुए शहर अध्यक्ष पर अनदेखी का आरोप लगाया।
Q4. इस अंदरूनी विवाद का निकाय चुनाव पर क्या असर हो सकता है?
लगातार 7 बार नगर निगम चुनाव जीत चुकी बीजेपी इस बार भीतरघात से जूझ सकती है। अगर नाराजगी दूर नहीं हुई तो कांग्रेस को इसका सीधा फायदा मिल सकता है।
Q5. कांग्रेस के लिए ये घटनाक्रम क्यों फायदेमंद है?
30 साल से नगर निगम पर कब्ज़ा पाने की कोशिश कर रही कांग्रेस को पहली बार बीजेपी की कलह से उम्मीद जगी है। यदि बीजेपी की गुटबाजी गहरी हुई तो कांग्रेस इसका फायदा मिल सकता है।