शहरों में दम तोड़ता संसद का बनाया कानून, देश के लिए रिटेल क्रांति साबित हो सकता है- स्ट्रीट वेडिंग एक्ट

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स्ट्रीट वेंडिंग एक्ट 2014

स्ट्रीट वेंडिंग एक्ट 2014 (आजीविका संरक्षण और स्ट्रीट वेंडिंग का विनियमन अधिनियम, 2014), एक ऐसा कानून, जो ना सिर्फ करीब 70 लाख रेहड़ी-पटरी वालो के लिए रोजगार के रास्ते खोलता है, बल्कि उनकी सामाजिक सुरक्षा भी सुनिश्चित करता है. लेकिन कैसे संसद के द्वारा बनाए गए कानून का मखौल बना दिया जाता है, यह उसका जीता-जागता उदाहरण है.

नगर निकाय या शहरी सरकार पर जिम्मा है कि वह इस कानून की पालना कराए, लेकिन यह स्ट्रीट वेंडर्स को उनके हक दिए जाने से ज्यादा सिर्फ और सिर्फ उन्हें अतिक्रमणकारी बताकर बेदखली के प्रयास या फिर ‘डंडा कानून’ में तब्दील हो गया है. साथ ही साथ जिन लोगों से नगर निकाय शुल्क भी वसूलता है, उन्हें भी सामाजिक सुरक्षा मिले. यह सब ‘स्ट्रीट वेडिंग एक्ट- 2014’ के प्रावधानों में है.

शहर में इस व्यवसाय को बढ़ावा देने की बजाय रेहड़ी-पटरी वालों को अतिक्रमणकारी बताकर नगर निकायों की ओर से उनकी बेदखली की योजना ही तैयार की जाती है. शहरों में ‘नो वेंडिंग जोन’ तो बना दिए गया, लेकिन वेंडिंग जोन की पहचान करने के मामले में तेजी नहीं लाई जाती. जबकि इसी एक्ट के मुताबिक, स्ट्रीट वेंडरों को पहचान पत्र और वेंडिंग सर्टिफिकेट जारी करना प्रशासन की जिम्मेदारी है.”

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पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने स्ट्रीट वेंडर संबंधित एक मामले की सुनवाई में कहा था- “भारत, मूल रूप से गांवों और शहरों से आने वाले लोगों का देश है, जो हरियाली के लिए कस्बों की ओर ग्रामीणों के आंदोलन से बना है, यह एक कृषि प्रधान समाज बना हुआ है. वास्तव में, किसी भी शहर का विकास गांवों से शहरों और कस्बों से शहरों में लोगों के आंदोलन के कारण होता है.”

पंजाबहरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को भी पढ़ा जाना चाहिए 

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि स्ट्रीट वेंडर्स को केवल वेंडिंग सर्टिफिकेट न होने के कारण बेदखल नहीं किया जा सकता है और चंडीगढ़ नगर निगम को सामाजिक सुरक्षा योजनाएं प्रदान करने की संस्तुति की है. जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस मीनाक्षी आई मेहता की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा, “यह एक्ट स्ट्रीट वेंडिंग के लिए बनाए गए हैं, जिसमें टाउन वेंडिंग कमेटी को प्रत्येक 5 वर्ष बाद सर्वे करने का दायित्व दिया गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सर्वेक्षण किए गए सभी लोगों को कुछ शर्तों के अधीन वेंडिंग जोन में समायोजित किया जाए. सर्वेक्षण पूरा होने और सभी स्ट्रीट वेंडर्स को वेंडिंग सर्टिफिकेट जारी किए जाने तक किसी भी स्ट्रीट वेंडर को बेदखल या स्थानांतरित नहीं किया जाना चाहिए.”

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2020 के ये आंकड़े काफी अहम हैं  

साल 2020 में SBI की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 7.8 लाख रेहड़ी पटरी वाले हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में इनकी संख्या 5.5 लाख है. देश के कुल रेहड़ी पटरी वालों में दोनों राज्यों की सामूहिक हिस्सेदारी 27 प्रतिशत है. जबकि बिहार में 5.3 लाख रेहड़ी पटरी वाले, राजस्थान में 3.1 लाख, महाराष्ट्र में 2.9 लाख, तमिलनाडु में 2.8 लाख, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में 2.1 लाख, गुजरात में दो लाख, केरल और असम में 1.9 लाख, ओडिशा में 1.7 लाख, हरियाणा में 1.5 लाख और मध्य प्रदेश तथा पंजाब में 1.4 लाख रेहड़ी पटरी वाले हैं.

इस एक्ट के तहत यह जरूरी है कि

  • एक्ट की पालना कराने के साथ ही विक्रेताओं पर किसी भी तरह की गैर कानूनी कार्रवाई करने का आदेश देने और उनकी बेदखली पर रोक लगाई जाए.
  • विक्रेताओं के पहचान सर्वे में हुई अनियमितताओं को दूर किया जाए और सर्वे में छूटे हुए सभी प्रकार के पथ विक्रेताओं का सर्वे करवाएं.
  •  एक अच्छा उपाय यह भी है कि रात्रि बाजार, फूड हब, महिला बाजार और बुक बाजार को भी चिन्हित कर उसे डेवलप किया जा सकता है.
  •  एक्ट के मुताबिक, टाउन वेंडिंग कमिटी को ही पूरे अधिकार दिए जाएं. इसी कमेटी के माध्यम से ही सर्वे हो और क्रियान्वन के लिए निगरानी कमेटी गठित करने के आदेशों की भी पालना हो
  • सभी शहरी क्षेत्र में विभिन्न आवश्यक सुविधा और भंडारण की व्यवस्था के साथ वेंडिंग जोन का निर्माण विकास हो.विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में पथ विक्रेताओं का समावेश सुनिश्चित करना और कर्मचारी राज्य बीमा योजना के साथ पथ विक्रेताओं को जोड़ने का प्रयास शुरू किया जाए.
  • कई बार सुझाव दिया जाता है कि हालांकि पथ विक्रेता कानून सिर्फ शहरी क्षेत्र में लागू किया जाता है, ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में स्ट्रीट वेंडर्स के लिए भी योजनाएं बनाई जाए और इसके लिए बजट का प्रावधान रखा जाए.
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