चौड़ी गलियों और 300 वर्षों की नियोजित विरासत वाला शहर जयपुर आज एक निर्माणाधीन कॉलोनी की तरह जाम और अव्यवस्था में घिरता शहर बन चुका है। जिस तरह से शहर के निर्माण कार्य हो रहे हैं, अगर यह सबकुछ बदस्तूर ऐसे ही जारी रहा तो जयपुर को स्लम बनने से कोई नहीं रोक सकता। इसलिए जरूरी है कि JDA जैसे सरकारी संस्थाओं के हर निर्माण कार्य की स्थिति, लागत और समयसीमा सार्वजनिक हो। बात सिर्फ़ इंफ्रास्ट्रक्चर का सवाल नहीं, बल्कि शहर की संस्कृति, निवेश और भविष्य की लड़ाई है और यही समय है जब जयपुर की धरोहर को ईमानदार नियोजन और सख़्त क्रियान्वयन से बचाया जा सकता है।
कुछ ऐसा ही हाल जयपुर के मास्टरप्लान और रिंग रोड का है, जो अब शहर की सबसे बड़ी शहरी विडंबना बन चुके हैं। कागज़ पर योजनाएं चमकती रहीं, लेकिन ज़मीन पर उनका अता-पता तक नहीं। जेडीए ने 15 साल पहले तैयार किए गए मास्टर प्लान-2025 में यह सपना दिखाया था कि नए विकसित इलाकों में 24 से 60 मीटर चौड़ी लगभग 300 सेक्टर सड़कों का जाल बिछाया जाएगा। इसके मकसद था- ट्रैफिक का दबाव कम हो और बाहरी इलाकों की नई बसावटों को सीधी कनेक्टिविटी मिले, लेकिन हकीकत यह है कि 226 सड़कें अब तक कागज़ से बाहर नहीं निकलीं और 50 से 60 सड़कें अधूरी पड़ी हैं, महज़ कुछ गिनी-चुनी सड़कें ही तैयार हो पाईं। सीधे तौर पर मास्टरप्लान की 80 फीसदी सड़कें अधूरी रह गईं।
आज टोंक रोड, सांगानेर, शिकारपुरा, डिग्गी रोड, मुहाना मंडी, वैशाली नगर, जगतपुरा, खो-नागोरियन, मानसरोवर, अजमेर रोड, भांकरोटा जैसे प्रमुख इलाकों में मास्टरप्लान में चिन्हित सड़कें न बनने से मौजूदा सड़कों पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है। हालत यह है कि हर रोज़ हजारों लोग घंटों जाम में फंसते हैं और मुख्य मार्ग बंद होने पर वैकल्पिक रास्ते ही नहीं मिलते। 2011 में जब यह योजना बनी थी, तब इन सेक्टर सड़कों के लिए जमीनें लगभग खाली थीं। लेकिन जेडीए की जमीन अवाप्ति की प्रक्रिया इतनी सुस्त रही कि सड़कें बनने से पहले ही गृह निर्माण सहकारी समितियों और कॉलोनाइज़र्स ने पट्टे बांटकर कॉलोनियां खड़ी कर दीं। नतीजा यह कि सांगानेर एसडीएम कोर्ट के बाहर टोंक रोड को सीधे मानसरोवर और डिग्गी-मालपुरा रोड से जोड़ने वाली 100 फीट चौड़ी सड़क आज भी नहीं बनी, जबकि उस पर 20 से अधिक कॉलोनियां बस चुकी हैं।
मुआवजा तक बांटा, एक भी सड़क का काम शुरू नहीं हुआ
रिंग रोड से जुड़ने वाली सेक्टर सड़कों की हालत भी यही है। 2022 में जेडीए ने जगतपुरा, रामचन्द्रपुरा, खातीपुरा, प्रहलादपुरा, शिवदासपुरा, सांगानेर, साईंपुरा, डिग्गी-मालपुरा रोड, बक्सावाला, कपूरावाला, बालावाला, महेन्द्रासेज और अजमेर रोड से जुड़े लगभग 30 किलोमीटर एरिया में 24 से 60 मीटर चौड़ी सड़कों का प्लान बनाया था। इसके लिए जमीन अवाप्त कर मुआवजा तक बांट दिया गया, लेकिन एक भी सड़क पर निर्माण शुरू नहीं हुआ।
बासड़ी जोगियान पहाड़िया तक प्रस्तावित 200 फीट चौड़ी सेक्टर रोड की 80% जमीन अधिग्रहीत हो चुकी है, लेकिन निर्माण की प्लानिंग तक शुरू नहीं हुई। जगन्नाथपुरा से सांगानेर डिग्गी रोड तक की 100 फीट चौड़ी सड़क अधूरी है। मानसरोवर रीको कांटे से सांगानेर टूटी पुलिया तक 160 फीट चौड़ी सड़क, मुहाना मंडी से प्रतापनगर तक 160 फीट सड़क, बम्बाला पुलिया से सांगानेर एसडीएम कोर्ट तक 150 फीट सड़क और वाटिका से डिग्गी रोड को जोड़ने वाली 160 फीट सड़क सभी अधूरी हैं। कपूरावाला से पवालियां तक की 200 फीट सड़क तो केवल नक्शे में ही है, जबकि वहां आज भी 40 फीट की संकरी डामर सड़क से ही लोग गुजर रहे हैं।
वंदेमातरम सर्कल से सांगानेर रेलवे लाइन तक 200 फीट सड़क का “मिसिंग लिंक” आज तक पूरा नहीं हुआ, जिसकी वजह से लोग इसे इस्तेमाल ही नहीं कर पाते। अजमेर रोड स्थित Mahindra SEZ (महिंद्रा सेज) को जोड़ने वाली 200 फीट रोड धौलाई में अटकी पड़ी है। भांकरोटा से गांधीपथ-पश्चिम होते हुए सिरसी रोड तक प्रस्तावित 200 फीट रोड 5 साल से अधूरी है और सड़क सीमा क्षेत्र में अब भी खेती हो रही है। इसी तरह सांगानेर रेलवे स्टेशन से इस्कॉन रोड को जोड़ने वाली 160 फीट सड़क पर जगह-जगह अवैध कब्जे हैं और रोज़ लगभग 40 हजार लोग परेशानी झेल रहे हैं।
JDA के इंजीनियर के पास तो सड़कों की लिस्ट भी नहीं!
मास्टर प्लान-2025 की मियाद खत्म होने में महज़ तीन महीने बचे हैं और जेडीए नए मास्टर प्लान-2047 की तैयारी में जुट गया है।