विकास के नाम पर जो हम कर रहे है, वो आने वाली पीढ़ियों के लिए विनाश साबित होगा। चाहे वो पहाड़ों से छेड़छाड़ की बात हो या वन क्षेत्र में खनन की अनुमति देने के लिए कई तरह के प्रावधान। कुछ ऐसा ही हुआ, जब अजमेर शहर को सुंदर बनाने के लिए वेटलैंड क्षेत्र से छेड़छाड़ की गई और नतीजा यह है कि 11 करोड़ से ज्यादा की लागत से बने सेवन वंडर्स पार्क पर बुलडोजर चला।
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अधिकारियों तर्क देते रहे कि यह पार्क शहर की सुंदरता बढ़ाने के लिए बनाया गया है और इसके निर्माण में उच्च गुणवत्ता का ध्यान रखा गया। लेकिन आनासागर झील के वेटलैंड क्षेत्र में बने इस पार्क को कोर्ट ने वेटलैंड नियमों की अवहेलना ही माना।
एनजीटी ने भी सुनवाई में चिंता जताई थी कि आनासागर झील के आसपास अनियोजित निर्माण से झील का पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ रहा है। झील के वेटलैंड क्षेत्र को संरक्षित करने के लिए सख्त नियम हैं, जिनका उल्लंघन इस प्रोजेक्ट में हुआ। बरहाल, पर्यावरण से छेड़छाड़ कर कथित तौर पर किए गए विकास पर कानून के हथौड़े के बाद पीला पंजा भी चल गया।
वेटलैंड से छेड़छाड़ जलीय जीवन का खतरा बढ़ा देगा!
दरअसल, वेटलैंड (आर्द्रभूमि) निर्माण या उनके साथ छेड़-छाड़ से प्रदूषण बढ़ सकता है। इससे स्थानीय जल-प्रवाह बदल सकता है और जलीय जीवों व पक्षियों का विस्थापन भी हो सकता है, लेकिन इस और प्रशासन का कितना ध्यान है, ये सामने आ गया। वो भी ऐसे वक्त में जब प्रदेश में जोजरी नदी, द्रव्यवती नदी और आयड़ समेत कई नदियों के प्रदूषित होने पर चिंता जाहिर की जा रही है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के वर्ष 2016-17 के आकलन के अनुसार, देश में प्रदूषित नदी क्षेत्रों की संख्या बढ़कर 351 हो गई है, जो कि 2 साल पहले 302 थी और इस दौरान गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों की संख्या 34 से बढ़कर 45 हो गई।
11 करोड़ रुपए से ज्यादा की बर्बादी, जिम्मेदार कौन?
लेकिन, अजमेर के आना सागर वेटलैंड पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हो रही कार्रवाई ने पूरे राजस्थान में नदियों और वेटलैंड्स के भविष्य पर बहस जरूर खड़ी कर दी है। सेवन वंडर्स पार्क पर बुलडोजर चलना इस बात का प्रतीक है कि नदियां और वेटलैंड्स सिर्फ सौंदर्य या पर्यटन का जरिया नहीं, बल्कि हमारी लाइफलाइन है। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर इतने बड़े पैमाने पर निर्माण की अनुमति दी क्यों गई? साथ ही नियमों की अनदेखी के बाद 11 करोड़ रुपए से ज्यादा के खर्च का जिम्मेदार कौन है?
आम लोगों के करोड़ों रुपये के टैक्स से डूब क्षेत्र में पार्क बनाया गया, जो अवैध होने के चलते टूट गया है। इससे पहले, अदालत ने सेवन वंडर पार्क को छह महीने के भीतर हटाने या किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित करने का आदेश दिया था।
कोटा रिवर फ्रंट को लेकर भी उठ रहे सवाल
कोटा में रिवर फ्रंट निर्माण पर भी सवाल उठ चुके हैं। चंबल रीवर फ्रंट का निर्माण सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के आदेशों का खुला उल्लंघन बताया गया था। जरूरी पर्यावरणीय स्वीकृति नहीं लेने, चंबल घड़ियाल सेंचुरी व अन्य जलीय जीवों का जीवन संकट में डालने, नदी का बहाव क्षेत्र कम करने और वेट लैंड यानी बफर जोन में अवैध निर्माण करने को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में एक वाद दायर किया गया था, हालांकि NGT ने यूआईटी का पक्ष जानने और कमेटी गठित करने के बाद मामला खारिज कर दिया था।
जयपुर की लाइफलाइन पर भी संकट
वहीं, जयपुर की लाइफलाइन द्रव्यवती नदी भी शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण यह एक नाले में तब्दील हो गई। 2018 में 17 किलोमीटर (47 किलोमीटर में से) हिस्से का उद्घाटन हुआ था। हालात यह है कि नदी किनारे रहने वाले लोग दुर्गंध से परेशान हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य नदी का बहाव क्षेत्र संरक्षित करना और इसमें स्वच्छ पानी का बहाव सुनिश्चित करना था, लेकिन ना तो उद्देश्य पूरा हुआ और ना नदी का प्रदूषण खत्म हुआ।
जीवन जीने के मौलिक अधिकारों का भी हनन
अनुच्छेद 21 के तहत स्वच्छ पर्यावरण और प्रदूषण मुक्त जल आदि को जीवन के अधिकार के व्यापक दायरे के तहत संरक्षण प्रदान किया गया है। वहीं, अनुच्छेद 51-A (G) के तहत वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करना व इसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। ऐसे में प्रशासनिक नदी तंत्र का उजड़ना सीधे तौर पर संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का भी हनन है।


 
                                    

