10 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में कहा कि Sariska Tiger Reserve’s Critical Tiger Habitat (CTH) की सीमा का निर्धारण आसपास के गांव वालों और ग्राम सभाओं से पूछकर किया जाएगा। उनकी सहमति और आपत्तियों के बाद ही सीमा का निर्धारण किया जा सकता है। दरअसल, सरिस्का को 1978 में टाइगर रिज़र्व का दर्जा मिला। लेकिन रिज़र्व के चारों ओर खनन का दबाव हमेशा बना रहा। अरावली की पहाड़ियों में मार्बल, डोलोमाइट और चूना पत्थर जैसी खदानें बड़े पैमाने पर फैली हैं। लंबे समय से ये खदानें बाघों के इलाके के इतने करीब चल रही थीं कि उनका असर सीधे जंगल और वन्यजीवों पर पड़ रहा था।
सुप्रीम कोर्ट ने मई 2024 में इस पर सख़्ती दिखाई और आदेश दिया कि जंगल के इतने नज़दीक 57 सक्रिय खदानें तुरंत बंद हों, क्योंकि वे सरिस्का की क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट (CTH) सीमा से महज़ 1 किलोमीटर के भीतर हैं। यह फैसला खनन लॉबी के लिए यह बड़ा झटका साबित हुआ।
लेकिन खनन रुकते ही नया खेल शुरू हुआ, सरकार एक योजना लाई, जिसे कहा गया कि Boundary Rationalisation Plan. इसके तहत सरिस्का का पूरा नक़्शा ही बदलने की कवायद शुरू हो गई। इस योजना का मक़सद रिज़र्व की सीमा को “पुनर्गठित” करना था यानी यह कि सीमा को थोड़ा पीछे खिसकाकर कई खदानों को रिज़र्व के दायरे से बाहर कर दिया जाए। ताकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बंद हुई खदानें फिर से चालू हो सकें।
इस पूरे मामले में चौंकाने वाली बात ये रही कि यह पूरी प्रक्रिया बिजली की रफ़्तार से पूरी कर दी गई, 23 जून को राजस्थान राज्य वन्यजीव बोर्ड ने मंजूरी दी, 48 घंटे के भीतर ही NTCA ने भी हरी झंडी दिखा दी और 26 जुलाई को NBWL की स्थायी समिति ने भी इस योजना पर मुहर लगा दी। महज चार दिन में ही देश के सबसे संवेदनशील टाइगर रिज़र्व का नक्शा बदलने का फ़ैसला ले लिया गया।
NBWL की स्थायी समिति की 84वीं बैठक में राजस्थान सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी, जिसमें सरिस्का के क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट को 881 वर्ग किमी से 924 वर्ग किमी तक बढ़ाया गया और बफर क्षेत्र को 245 से घटाकर 203 वर्ग किमी कर दिया गया। बफर जोन भी वन्यजीवों के लिए बेहद अहम हैं, क्योंकि वे बाघ जैसे जानवरों को घूमने और अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़ाव का रास्ता मुहैया करते हैं।
याद कीजिए, जब सरिस्का में नहीं बचा था एक भी बाघ
सरिस्का का इतिहास बताता है कि कभी यहां से बाघ पूरी तरह लुप्त हो गए थे और 2004 तक एक भी बाघ नहीं बचा था। मई- 2005 में दुनिया तब हैरान रह गई, जब तत्कालीन केंद्रीय मंत्री नमो नारायण मीना ने भारतीय संसद को बताया था कि अरावली के मुकुट सरिस्का में अब कोई बाघ नहीं बचा है। 2003 और 2004 टाइगर की हत्याओं के लिए बदनाम रहा और हमने सरिस्का में इस प्रजाति को खो दिया। इसके बाद शुरू हुआ रणथंभौर से लाए गए बाघों का पुनर्वास। सरिस्का अभयारण्य के वन क्षेत्र की सीमा तथा सुरक्षा को बढ़ाया गया, जिसके कारण वर्तमान में यहां लगभग 50 बाघ आबाद हो चुके हैं।
अब जब सरकार बफर जोन की सीमा निर्धारण का प्रस्ताव लाई तो पर्यावरण कार्यकर्ताओं और संगठनों ने इस प्रस्तावित बदलाव का कड़ा विरोध जताया। टाइगर ट्रेल्स ट्रस्ट की स्नेहा सोलंकी और ‘पीपल फॉर अरावलीज़’ की नीलम अहलुवालिया नाकरा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाते हुए कहा कि यह फैसला बाघ संरक्षण के खिलाफ है और इससे केवल खनन कंपनियों को फायदा होगा। उनका आरोप था कि न तो स्थानीय ग्राम सभाओं से राय ली गई और न ही जनता से आपत्तियां मांगी गईं। कार्यकर्ताओं का सीधा आरोप था कि यह जंगल बेचने की साज़िश है और असल विवाद यहीं से गहराया।