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Thursday, October 9, 2025

5 साल में रणथम्भौर और आसपास के इलाकों में बाघों के हमलों में कई मौतें, लेकिन सरकार ने आंकड़ा बताया- शून्य

OP-ED5 साल में रणथम्भौर और आसपास के इलाकों में बाघों के हमलों में कई मौतें, लेकिन सरकार ने आंकड़ा बताया- शून्य

नवंबर 2024 में सवाई माधोपुर के उलियाना गांव के भरतलाल मीणा, जनवरी 2021 में रणथम्बोर के पास कानेटी गांव के पप्पू गुर्जर, जनवरी 2025 में 7 साल के कार्तिक सुमन, मई 2025 वन रेंजर देवेंद्र चौधरी, जून 2025 में त्रिनेत्र गणेश मंदिर की देखभाल करने वाले राधेश्याम सैनी और अक्टूबर 2023 में कोटा के अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क के केयरटेकर रामदयाल की टाइगर हमलों में मौत हो गई. यह वो मौतें हैं जो पिछले पांच साल में हुईं हैं, लेकिन क्या हो जब सरकार इन सब की मौतों को ही झुठला दे? और वो भी संसद में !

लेकिन, ऐसा हुआ है. केंद्र सरकार का कहना है कि पिछले पांच साल में राजस्थान में वन्यजीवों के हमलों में किसी इंसान की मौत नहीं हुई है. मंत्री जी ने यह बात राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में कही है. 8 अगस्त को राज्यसभा में सांसद संधोश कुमार यह सवाल किया था, इसके जवाब में वन पर्यावरण और जलवायु राज्यमंत्री कीरतवर्धन सिंह ने जो सूची सदन में प्रस्तुत की उसमें राजस्थान के सामने शून्य दर्ज था. और विडंबना यह कि केंद्र सरकार के इस जवाब से राजस्थान सरकार बिल्कुल ही अनजान है.राजस्थान के वन मंत्री संजय शर्मा का कहना है कि उन्हें नहीं पता यह आंकड़ा केंद्र सरकार को किसने दिया। उनसे तो न ऐसी सूचना मांगी गई थी और न ही उन्होंने ऐसी कोई जानकारी साझा की है.

अगर पिछले पांच साल में टाइगर के हमलों में हुईं मौतों की बात की जाए तो अकेले रणथम्भौर नेशनल अभ्यारण के आसपास यह आंकड़ा 8 है. 3 मौतें तो साल 2025 में ही हुई हैं. वहीं कोटा में 1 टाइगर ने एक व्यक्ति को मौत के घाट उतारा था.

यह लोग आंकड़ों से तो ग़ायब हो गए, लेकिन इंसान और बाघों के संघर्ष में दोनों जान से हाथ धो रहे हैं. सवाई माधोपुर के उलियाना गांव में जब टाइगर टी-86 ने 50 साल के भरत लाल मीणा को अपना शिकार बनाया तो गुस्साए गांव वालों ने बाघ की ही हत्या कर दी और यह संघर्ष पिछले कुछ महीनों से लगातार बढ़ता ही जा रहा है. पर सवाल है कि इस सबका ज़िम्मेदार कौन है?

और सवाल यह भी है कि टूरिज्म को कितना बढ़ाना चाहिए, कि वो इस संघर्ष को बढ़ाने में मदद न करे. अगर सिर्फ रणथम्भौर की बात करें तो यहां बाघों की संख्या बेलगाम बढ़ रही है. इस समय रिज़र्व में 80 से ज़्यादा टाइगर हैं. टूरिज्म इंडस्ट्री का तो हिसाब है, जितनी अधिक बाघों की संख्या होगी, उतनी अधिक साइटिंग होगी और जितनी अधिक साइटिंग होगी उतने ही पर्यटक आएंगे। होटलों का कारोबार बढ़ेगा। इकॉनमी बढ़ेगी। लेकिन इस ‘विकास’ की क़ीमत चुकाएंगे यहां के स्थानीय रहवासी। सरिस्का में कोर एरिया को कम करने की बात हो या फिर रणथंभोर में बाघों की संख्या को बढ़ाना, दोनों कहीं न कहीं स्थानीय पारस्थितिकी और प्रकृति के साथ खिलवाड़ है.

रणथंभौर टाइगर रिज़र्व का कुल क्षेत्रफल लगभग 1,334 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से लगभग 392–394 वर्ग किलोमीटर कोर क्षेत्र (कोर ज़ोन) है, जबकि शेष लगभग 942 वर्ग किलोमीटर बफ़र या परिधि क्षेत्र में आता है। समय-समय पर कोर और बफ़र ज़ोन की सीमाएँ बदली जाती रही हैं, इसलिए विभिन्न स्रोतों में इसमें थोड़ी भिन्नता मिलती है। वन्यजीव प्राधिकरणों का कहना है कि वर्तमान परिस्थितियों में रणथंभौर में बाघों की संख्या उसकी वास्तविक क्षमता से अधिक हो चुकी है।

विशेषज्ञों के अनुसार इस रिज़र्व में वयस्क बाघों की उपयुक्त संख्या लगभग 40-45 मानी जाती है, क्योंकि प्रत्येक बाघ को अपने अलग क्षेत्र की आवश्यकता होती है और क्षेत्र जितना सीमित होगा, बाघों के बीच टकराव की संभावना उतनी ही अधिक होगी। इस स्थिति से निपटने के लिए बाघों का स्थलांतरण (translocation), नए रिज़र्वों का विकास और जंगलों के बीच पारिस्थितिक गलियारों (ecological corridors) का निर्माण जैसे उपाय किए जा सकते हैं, ताकि बाघ और उनका आवास दोनों सुरक्षित रह सकें।

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