झालावाड़ के पिपलोदी में हुए स्कूल हादसे के बाद मामला अब सियासी रंग लेता दिख रहा है। जयपुर के शहीद स्मारक पर नरेश मीणा आमरण अनशन पर बैठे हैं, वहीं झालावाड़ मिनी सचिवालय के सामने भी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल जारी है। धरनों में मुआवजा, सरकारी नौकरी और जमीन देने जैसी मांगें उठाई जा रही हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह धरने वाकई पीड़ित परिवारों की ओर से हैं या इसके पीछे कोई और मकसद छिपा है?
हादसों को लेकर मांगों की बात करें तो पीड़ितों को मुआवजा, सरकारी नौकरी और जमीन देने की बात सामने आई है. लेकिन इसी बीच जयपुर में चल रहे धरनों ने नए सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या ये धरने सच में पीड़ित परिवारों के लिए हैं या फिर किसी और मकसद से चलाए जा रहे हैं? क्या परिवार खुद इन आंदोलनों से जुड़ना चाहते हैं या फिर उन्हें राजनीतिक तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है? इन सवालों का जवाब खुद पिपलोदी गांव के पीड़ित परिवारों ने दिया। उन्होंने साफ कहा कि उन्हें मिली सरकारी मदद नाकाफी है और धरनों के जरिए उनकी आवाज़ सरकार तक पहुंच रही है। कई परिवारों ने ये भी माना कि बच्चों के खोने के बाद उनकी ज़िंदगी पूरी तरह बदल चुकी है, और सरकार से मिली मदद उनकी पीड़ा की भरपाई नहीं कर सकती।
सरकारी मदद नाकाफी
बातचीत में सामने आया कि हादसे से प्रभावित 5 से ज्यादा परिवार जयपुर में नरेश मीणा के धरने में शामिल हैं। वहीं पिपलोदी गांव में मौजूद ज़्यादातर लोग सरकार की ओर से दी जा रही मदद को नाकाफी मानते हैं और धरनों का समर्थन कर रहे हैं। परिवारों ने साफ कहा कि “हमारे बच्चे चले गए, अगर वे होते तो उम्रभर हमारा सहारा बनते और कमाकर हमें संभालते। ऐसे में सरकार की मदद हमारे लिए काफी नहीं है।”
घर को संभालें या बकरियां चराएं?
सरकार की ओर से दी गई आर्थिक सहायता और मुआवजे पर असंतोष जताते हुए परिवारों ने अब बकरियों के रूप में मिली मदद को भी नाकाफी और बेकार बताया है। हादसे में जान गंवाने वाले हरीश की काकी पांची बाई और पायल की मां गुड्डी बाई ने बकरियों की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए कहा, “हम बकरियों का क्या करेंगे? अपने घर-परिवार को संभालें या बकरियां चराएं?” एक अन्य पीड़ित परिवार ने बताया कि दी गई बकरियां लगातार बीमार हो रही हैं और उनका इलाज करवाना उनके लिए और भी मुश्किल है। वहीं, कार्तिक के पिता हरकचंद लोधा और पायल की मां गुड्डी बाई ने भी साफ कहा कि सरकारी सहायता नाकाफी है और आंदोलनों का होना पूरी तरह सही है।
अब हादसे में जान गंवाने वाले हरीश के दादा गंगाराम और मां ललिता बाई ने भी सरकारी मुआवजे को अपर्याप्त बताते हुए आंदोलनों का समर्थन किया है। इसी तरह, कान्हा और मीना के पिता छोटू लाल और मां बिन्ती बाई ने भी नरेश मीणा के आंदोलन को सही ठहराया। उन्होंने कहा कि अगर वे बीमार न होते तो जयपुर जाकर धरने में ज़रूर शामिल होते।