आज से करीब 4 हजार साल पुरानी आहाड़ सभ्यता के निशान आज भी उदयपुर में मिलते हैं। आयड़ नदी के तट पर विकसित हुई सभ्यता का अपना इतिहास है। इस नदी को गंगाजी पांचवां पाया (बुनियाद) माना जाता रहा है, लेकिन दुर्भाग्य है कि स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने पुनर्वास की आड़ में नदी तंत्र का विनाश किया और सांस्कृति विरासत को मिटाने की कोशिश की। आयड़ नदी आज प्रशासनिक दूरदर्शिता के अभाव और दृष्टिकोण की कमी का शिकार हो गई।
स्मार्ट सिटी के नाम पर आयड़ नदी के किनारे बाढ़ संभावित क्षेत्र जहां नदी में लाखों टन मलबा, पत्थर, सीमेंट, रेत, कंक्रीट से सौंदर्यीकरण किया गया। मकसद था- वेनिस नदी की तरह पर सौंदर्यीकरण, लेकिन मानसून की बारिश में सब कुछ बहा दिया। नगर निगम के माध्यम से 75 करोड़ों रुपए के बजट में से कई काम कराए जाने का दावा किया गया। नदी में निर्माण कार्य कर उसकी चौड़ाई ही कम करवा दी, जिससे इस नदी ने नाले जैसा आकार धारण कर लिया हैं। जोरदार बारिश के चलते सबकुछ बह गया और दुनिया के इस खूबसूरत शहर ने प्रकृति का रौद्र रूप देखा।
3 साल पहले दी थी चेतावनी, अब शहर ने देखी बाढ़
करीब 3 साल पहले छपी एक खबर के मुताबिक, उदयपुर शहर के पंचरत्न, नवरत्न,फतेहपुरा, रेलवे ट्रेनिंग स्कूल, न्यू फतेहपुरा, पंचवटी, सरदारपुरा, भूपालपुरा, अलीपुरा, न्यू भूपालपूरा, अशोक नगर, पुराना रेलवे स्टेशन (रेलवे कॉलोनी) को जल संसाधन विभाग द्वारा बाढ़ संभावित क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया था और इस बार उदयपुर ने बाढ़ का खतरा महसूस भी किया।
75 करोड़ रुपए का क्या हुआ?
आयड़ नदी 30 किलोमीटर लंबी है, जो उदयपुर शहर में 5 किलोमीटर एरिया में बहती हुई निकलती है। यह नदी पिछले कुछ दशक से राजनीति का बड़ा केंद्र रही। नगर निगम से लेकर विधानसभा चुनावों में आयड़ नदी को सुधारने की बातें होती रही। उदयपुर में निगम का छठा बोर्ड है और अब इस बोर्ड में इस नदी की सूरत बदल रही है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत इसमें सौंदर्यीकरण का काम चल रहा है।
हालात यह है कि नदी के पेटे में सीवर लाइन डाल कर इसे प्रदूषित किया जा रहा है। जगह-जगह से मल-मूत्र का रिसाव हो रहा है और नदी को खूबसूरती से विकसित करने के नाम पर नगर निगम बोर्ड और अधिकारियों ने इसका स्वरूप ही बिगाड़ कर रखा दिया। सवाल तो यह भी है कि आखिर 75 करोड़ रुपए का हुआ क्या, जिसे नदी के सौंदर्यीकरण के लिए आवंटित किया गया था।
नदी के बहाव के बीच निर्माण कार्य कितना सही?
दरअसल, नदी के प्राकृतिक बहाव और पेटे को अव्यवस्थित करवाकर उसमें बीचोबीच पक्के नाले का निर्माण करवाया गया। नदी में फुटपाथ सहित कई सारे जमीनी निर्माण कार्य करवाया गया हैं, जिस पर कई बार सवाल भी खड़े हुए। हाल ही में अजमेर के 7 वंडर पार्क के ध्वस्त करने के कोर्ट के आदेश को देखे तो इस लिहाज से आयड़ नदी के तो पेटे में हुआ निर्माण कार्य ही सवालों के घेरे में है। विशेषज्ञों का कहना है कि नदी में हुए निर्माण नदी की मूल प्रकृति व मूल बहाव के प्रति अत्याचार है। नदी तल पर पक्की फर्श ने प्रवाह को तीव्र किया है, जिससे भी समस्याएं पैदा हो रही है। पेटे में भराव से नदी तल ऊपर हो गया, जिससे शहर के शमशान स्थलों सहित कई कॉलोनियों में दूर दूर तक पानी फैल गया।
यह भी पढ़ें: जोजरी नदी में जहरीला पानी: 16 लाख लोग संकट में, सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख; कह दी ये बड़ी बात


