राजधानी जयपुर में आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव सचिन पायलट ने कहा कि वह ‘एक्सीडेंटल पॉलिटिशियन’ नहीं हैं। यह उनका सोच-समझकर लिया गया फैसला है।
दरअसल, रविवार को जयपुर में लेखक नरेश दाधीच की पुस्तक ‘महात्मा गांधी : एक संक्षिप्त परिचय’ का विमोचन हुआ। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी भी मौजूद रहीं। उन्होंने कहा कि गांधी को केवल पढ़ना ही नहीं बल्कि समझना भी जरूरी है।
विमोचन कार्यक्रम के दौरान जब नरेश दाधीच ने पायलट को ‘एक्सीडेंटल पॉलिटिशियन’ कहा तो पायलट ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “मैं एक्सीडेंटल पॉलिटिशियन नहीं हूं। यह कोई दुर्घटना नहीं, बल्कि सोच-विचार कर लिया गया फैसला है।” उन्होंने आगे कहा कि, “मैंने अच्छी पढ़ाई की है, मेरे पास और भी विकल्प थे, लेकिन बहुत सोचने के बाद मैंने राजनीति में आने का रास्ता चुना।” उन्होंने आगे कहा कि राजनीति में आने का फैसला आसान नहीं था। पिता राजेश पायलट के निधन के बाद उन्हें यह निर्णय लेने में चार साल का समय लगा।
ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम
महात्मा गांधी को लेकर पायलट ने कहा कि आजकल कुछ लोग गांधीजी का नाम केवल अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं। जबकि गांधीजी ने हमेशा विचारधारा से ऊपर उठकर राष्ट्र निर्माण का सपना देखा था। उन्होंने कहा – “गांधीजी कहते थे, ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान। आज कोई इस वाक्य को सच्चाई से बोलकर दिखा दे।”
चश्मे का प्रतीक, विचारों की अनदेखी
सचिन पायलट ने तंज कसते हुए कहा कि गांधीजी के चश्मे को सफाई अभियान के प्रतीक के तौर पर तो ले लिया जाता है, लेकिन उनके विचारों और मूल्यों को जीवन में उतारना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी। पायलट का यह बयान गांधी जयंती के अवसर पर दिया गया।
राजनीति में भरोसा सबसे बड़ी पूंजी
कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने कहा कि राजनीति में सबसे बड़ा काम लोगों का भरोसा जीतना है। यह कोई सामान नहीं है जिसे खरीदा या उधार लिया जा सके। इसे केवल लोगों के बीच जाकर, उनके साथ रहकर और उनके लिए काम करके ही हासिल किया जा सकता है।
पायलट बोले, नौजवान की परिभाषा च्युइंग गम जैसी
पायलट ने युवाओं को लेकर भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा – “नौजवान की परिभाषा च्युइंग गम की तरह है, जिसे 20 साल से 70 साल तक खींचा जा सकता है। लेकिन असली नौजवान 18, 20 या 25 साल की उम्र के होते हैं।” कांग्रेस नेता ने दोहराया कि राजनीति में असली ताकत चुनावी समीकरण या पद नहीं, बल्कि जनता का विश्वास है, और वही किसी भी नेता की सबसे बड़ी पूंजी है।
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