राजस्थान में भजनलाल सरकार ‘हील इन राजस्थान नीति–2025’ के तहत प्रदेश को आदर्श चिकित्सा स्थल बनाने के लिए नीति का दावा कर रही है। सरकार का मानना है कि इससे राज्य में मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन दूसरी ओर, सरकार ने 36 साल बाद जनजाति क्षेत्र में मेडिकल टीचिंग फैकल्टी के लिए ट्रैवल अलाउंस बंद कर दिया है। नए नियमों के मुताबिक, अब फैकल्टी को 40 हजार ट्रैवल अलाउंस नहीं मिलेगा, जिससे जनजाति क्षेत्र में हेल्थकेयर सेक्टर में बड़ा संकट गहरा सकता है।
दरअसल, यह अलाउंस या भत्ता विशिष्ट स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए नवीन दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। दूरस्थ और कठिन क्षेत्रों में डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को आकर्षित करने के लिए हार्ड एरिया भत्ते और विशेष पैकेज प्रदान किए जाते हैं और आदिवासी बहुल जिलों को अधिक संसाधन आवंटित किए जाते हैं। लेकिन इसके बंद होने से आदिवासी अंचल के मेडिकल कॉलेज में पद खाली पड़े हैं।
ये हाल भी तब है, जब सरकार एम्स दिल्ली की तर्ज पर विश्वस्तरीय और सुपर स्पेशियलिटी चिकित्सा सुविधाओं के लिए रिम्स की स्थापना पर जोर दे रही है। जबकि राजस्थान के एक बड़े भाग यानी आदिवासी अंचल में डॉक्टर की कमी को पूरा करने की बजाय उसे सुनिश्चित किए जाने के लिए उठाए जाने वाले कदम पीछे खींच रही है।
क्यों जरूरी है आदिवासी क्षेत्रों में अलाउंस
पिछले साल दिसंबर के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में स्थित मंगलागिरी एम्स के पहले दीक्षांत समारोह में कहा था कि युवा डॉक्टरों को ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में सेवा करनी चाहिए। उन्होंने युवा डॉक्टरों से ग्रामीण, आदिवासी और दूरदराज के क्षेत्रों में सेवा करने को प्राथमिकता देने और समावेशी स्वास्थ्य सेवा में योगदान देने का आग्रह कोई था।
आदिवासी क्षेत्रों में हेल्थकेयर सुविधाओं पर अलग से ध्यान
- आदिवासी समुदायों में स्वास्थ्य सेवाओं के क्रियान्वयन में कमी है। विशेषकर प्रतापगढ़ और बांसवाड़ा जैसे जिलों में कुपोषण एक गंभीर समस्या है, जिससे मातृ मृत्यु दर अधिक है। खराब सड़कें और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच की कमी स्वास्थ्य सेवाओं के पहुँच में बाधा डालती है।
- सभी आदिवासी बहुल जिलों, जिनका समग्र स्वास्थ्य सूचकांक राज्य औसत से कम है, उन जिलों को उच्च प्राथमिकता वाले जिलों (एचपीडी) के रूप में चिन्हित किया गया है।
- नियम के मुताबिक, इन जिलों को एनएचएम के तहत राज्य के अन्य जिलों की तुलना में प्रति व्यक्ति अधिक संसाधन प्राप्त होते हैं। इसी के चलते इन जिलों को प्रति व्यक्ति अधिक धनराशि प्राप्त होती है।
आदिवासी क्षेत्रों में हेल्थकेयर में हालात बयां करते हैं ये आंकड़े
प्रदेश के 9 आदिवासी जिलों के 10,746 लोगों को सिकलसेल बीमारी है. यह रोग इतना खतरनाक होता है कि खून में हिमोग्लोबिन का स्तर बढ़ने नहीं देता और शरीर के अंगों को धीरे-धीरे बहुत कमजोर कर देता है। इसी साल की रिपोर्ट के मुताबिक, एक साल से चल रहे सर्वे में राजसमंद, चितौड़गढ़, पाली, सिरोही, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, बारां व उदयपुर जिलों में 2980 लोग पॉजिटिव मिले हैं और 7,766 लोगों में इसके प्रारंभिक लक्षण हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के अनुसार राजस्थान में केवल 55% महिलाओं को प्रसव पूर्व देखभाल मिल पाती है। आदिवासी बहुल जिलों में तो यह आंकड़ा और भी कम है। इसके कई कारण हैं और इनमें गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया न होना, साक्षरता की कमी, स्वास्थ्य देखभाल और पोषण के बारे में सीमित जानकारी और खराब आहार जैसी चीजें इसमें शामिल हैं।
इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (EPW) में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, आदिवासी महिलाओं में स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति सामान्य आबादी की तुलना में खराब है और इसका कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस) जैसी महत्वपूर्ण कल्याणकारी योजनाओं की उनकी सीमित पहुंच है।