27.9 C
Jaipur
Wednesday, October 8, 2025

बाड़मेर की पहली महिला लेफ्टिनेंट: सरिता लीलड़ ने पूरा किया बचपन का सपना

Newsबाड़मेर की पहली महिला लेफ्टिनेंट: सरिता लीलड़ ने पूरा किया बचपन का सपना

बाड़मेर की पहली महिला लेफ्टिनेंट बनने का गौरव अब सरिता लीलड़ को मिला है। गर्ल्स कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर सरिता अब लेफ्टिनेंट (ANO) सरिता के नाम से जानी जाएंगी। उन्होंने मध्यप्रदेश के ग्वालियर स्थित ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी (OTA) में 75 दिन की कड़ी ट्रेनिंग पूरी की और एनसीसी में अधिकारी का दायित्व संभाला।

सरिता दो बेटियों की मां हैं। ट्रेनिंग के दौरान उन्हें बेटियों से दूर रहना पड़ा, और कई बार वे भावुक होकर रो पड़ीं। लौटने पर उन्होंने सबसे पहले अपने ससुर को सैल्यूट किया और कहा, यह सैल्यूट मेरा हक था, क्योंकि उन्होंने हमेशा मुझ पर भरोसा किया और प्रोत्साहित किया।

बाड़मेर की पहली महिला लेफ्टिनेंट

बाड़मेर की पहली महिला लेफ्टिनेंट बनने का गौरव सरिता लीलड़ को मिला। साल 2019 में सरिता ने बाड़मेर गर्ल्स कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में ज्वॉइन किया। अगले साल कॉलेज में एनसीसी की गर्ल्स विंग शुरू हुई और इसका चार्ज उन्हें मिला। तब उन्होंने महसूस किया कि बच्चों को ट्रेनिंग और अनुशासन देने के लिए उन्हें खुद प्रशिक्षित होना जरूरी है।

दो बार इंटरव्यू देने के बाद, पहली बार विशेष परिस्थितियों के कारण वे नहीं जा सकीं। दूसरी बार सितंबर 2024 में उनका चयन हुआ और जुलाई 2025 में उन्होंने 75 दिन की कड़ी ट्रेनिंग पूरी कर एनसीसी में अधिकारी का दायित्व संभाला।

सरिता लीलड़ का एनसीसी मिशन

बाड़मेर की पहली महिला लेफ्टिनेंट सरिता लीलड़ बताती हैं कि ट्रेनिंग के दौरान उन्हें वेपन हैंडलिंग, बैटल क्राफ्ट, फील्ड क्राफ्ट, CPR और कई जरूरी तकनीकी और सामाजिक गतिविधियों की ट्रेनिंग दी गई। यह अनुभव वे अब अपने कैडेट्स को सिखाना चाहती हैं। उनका मकसद है कि बाड़मेर की बच्चियां भी एनसीसी के जरिए अनुशासन, देशभक्ति और अपने करियर में आगे बढ़ सकें।

परिवार से मिली ताकत

बाड़मेर की पहली महिला लेफ्टिनेंट सरिता लीलड़ का पैतृक गांव बाड़मेर जिले का कोलू है, लेकिन उनकी पढ़ाई जोधपुर जिले में हुई। उनके पिता ने हमेशा उन्हें उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित किया और शादी के बाद भी परिवार का पूरा समर्थन मिला। सास-ससुर और पति ने हमेशा उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। खासकर उनकी बड़ी बेटी ने ट्रेनिंग के दौरान उन्हें गले लगाकर कहा, “मम्मी, आप जाओ, बेस्ट ऑफ लक।” यह बात सरिता के लिए सबसे बड़ी हिम्मत बन गई।

बचपन का सपना पूरा

बाड़मेर की पहली महिला लेफ्टिनेंट सरिता लीलड़ बताती हैं कि बचपन से ही उनके मन में सेना की वर्दी पहनने और कंधे पर तारे लगाने का सपना था। स्कूल में जब उन्होंने आर्मी ऑफिसर्स को देखा, तभी से यह ख्वाहिश उनके दिल में जागी। जीवन ने उन्हें पहले असिस्टेंट प्रोफेसर बनाया और अब एनसीसी लेफ्टिनेंट बनकर उनका बचपन का सपना पूरा हुआ। सरिता कहती हैं, मैं गर्व से कह सकती हूं कि मेरे पास दो बेटियों की जिम्मेदारी है, लेकिन मेरे सपनों को पूरा करने में मेरे परिवार ने कभी रोड़ा नहीं बनाया। अब मेरी कोशिश रहेगी कि बाड़मेर की हर बेटी एनसीसी के जरिए अनुशासन और आत्मविश्वास हासिल कर सके।

Check out our other content

Check out other tags:

Most Popular Articles