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Wednesday, October 8, 2025

बांसवाड़ा न्यूक्लियर पावर प्लांट के विरोध में देर रात 1 बजे तक धरने पर बैठे रहे आदिवासी, 15 साल के इंतजार के बाद शुरू होगा प्रोजेक्ट

OP-EDबांसवाड़ा न्यूक्लियर पावर प्लांट के विरोध में देर रात 1 बजे तक धरने पर बैठे रहे आदिवासी, 15 साल के इंतजार के बाद शुरू होगा प्रोजेक्ट

PM Modi Banswara Visit: बांसवाड़ा में प्रस्तावित न्यूक्लियर पावर प्लांट का शिलान्यास करने कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आएंगे। इस योजना की रूपरेखा तैयार होने के करीब 14 साल से भी ज्यादा वक्त के बाद अब इसकी नींव पड़ रही है। हालांकि इस परियोजना को काफी विरोध झेलना पड़ा और कई साल से जारी उथल-पुथल अभी भी मची हुई है। आदिवासी परिवारों का धरना कल देर रात 1 बजे तक जिला मुख्यालय पर जारी रहा और प्रशासन की लिखित सहमति के बाद लोग आखिरकार मान गए।

साल 2011 में जब परमाणु संयंत्र के लिए भूमि अधिग्रहण का ऐलान हुआ तो स्थानीय भील आदिवासियों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। उन्हें डर था- परियोजना से उनकी आजीविका, संस्कृति और पर्यावरण पर गहरा असर पड़ेगा। ग्रामीणों ने ‘आदिवासी किसान संघर्ष समिति’ का गठन किया, बैनरों के साथ धरना-प्रदर्शन, रैलियां, बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक, बंद और आमरण अनशन तक किया गया। कांग्रेस विधायक अर्जुनलाल बामनिया को बंधक बनाने का मामला भी सामने आया और फिर सरपंच की गिरफ्तारी से लेकर अदालती कार्रवाइयां तक, यह आंदोलन लगातार सुर्खियों में रहा।

विरोध सिर्फ सांकेतिक नहीं था- महीनों तक लाइन में लगकर लोग अपनी जमीन, कुएं और पेड़ के बदले मुआवजे के लिए संघर्ष करते रहे। अवार्ड की सूचियों में ऐसे-ऐसे नाम निकल आए, जिनका ना कोई स्थानीय मकान था, ना ज़मीन। प्रशासन ने दावा किया कि करोड़ों रुपये का मुआवजा बांटा जा चुका है, जबकि आदिवासी समुदाय का आरोप था कि न तो सभी को सही पैकेज मिला और न ही पुनर्वास में स्कूल, हॉस्पिटल, आंगनबाड़ी की सुविधा पूरी हुई। बार-बार विस्थापन, सूचना की कमी और पुनर्वास में देरी ने आक्रोश को और भड़काया।

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बांसवाड़ा न्यूक्लियर पावर प्लांट से जुड़ी इस टाइमलाइन पर नजर डालिए

  • 2011: परमाणु बिजलीघर के लिए बांसवाड़ा जिले में पहली बार भूमि अधिग्रहण का ऐलान हुआ।
  • 2012: 1 जुलाई को प्लांट विरोध कर रहे ग्रामीणों ने विधायक अर्जुन सिंह बामनिया को कटुम्बी में बंधक बना लिया।
  • 2013: 12 मई को आमरण अनशन और अनिश्चितकालीन धरना, जो सात दिनों तक जारी रहा।
  • 2024: सरकारी वित्तीय स्वीकृति मिलने के बाद पुनर्वास की प्रक्रिया तेज करने का दावा। मार्च 2026 तक पुनर्वास का काम पूरा करने की योजना बनाई गई है।
  • सितंबर 2025: 23 सितंबर को शिलान्यास से दो दिन पहले विस्थापितों, आदिवासी प्रतिनिधियों और सांसद राजकुमार रोत के नेतृत्व में जिला कलेक्ट्रेट में धरना-प्रदर्शन।

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25 सितंबर 2025: पाव प्लां क होग शिलान्या 

दिसंबर 2026: कंक्रीट ढांचे का निर्माण दिसंबर 2026 से शुरू होगा।

2033: करीब साढ़े छह साल बाद पहली यूनिट से बिजली उत्पादन की संभावना। देश के परमाणु ऊर्जा लक्ष्य में यह एक अहम हिस्सा बनेगा।

2036: परियोजना के अंतिम चरण में बांसवाड़ा से 2800 मेगावाट और राजस्थान में कुल परमाणु बिजली उत्पादन 5900 मेगावाट तक पहुंचने का अनुमान।

अगल सा शुर होग पुनर्वा प्रक्रिय

केंद्र सरकार की ओर से वित्तीय स्वीकृति मिलने के बाद मार्च 2026 से पुनर्वास प्रक्रिया को पूरा करने का प्लान है। जमीन अवाप्ति, कब्जा और साइट के मिट्टी परीक्षण समेत कई प्रक्रियाओं में देरी होने के बाद अब सरकार दावा कर रही है कि दिसंबर 2026 से रिएक्टरों के लिए अहम कंक्रीट ढांचे का निर्माण शुरू हो जाएगा। इसके साढ़े छह साल बाद यानी 2033 में पहली यूनिट से बिजली उत्पादन प्रारंभ करने की संभावना है। क्योंकि यह पूरा निर्माण कई अहम चरणों से से होकर गुजरेगा। जैसे भूमि पर शुरुआती कार्य (लेवलिंग, खुदाई), रिएक्टर भवन, टरबाइन हॉल, सुरक्षा बंकर का निर्माण, संयंत्र उपकरणों की स्थापना, परीक्षण, सिस्टम इंटीग्रेशन-ट्रायल रन, सुरक्षा निरीक्षण, आपात योजना, परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड की अंतिम मंजूरी, बिजली उत्पादन और यूनीट को ग्रिड से जोड़ना।

2036 क पूी होी परियोजा 

राजस्थान के रावतभाटा स्टेशन के बाद यह प्लांट, 700-700 मेगावाट की चार यूनिट में कुल 2800 मेगावाट क्षमता के साथ, देश में आठवीं सबसे बड़ी परमाणु परियोजना बनेगा। 2036 तक पूरी परियोजना के चालू होने पर राजस्थान में न्यूक्लियर बिजली उत्पादन 5900 मेगावाट पहुंच जाएगा, जिससे राज्य की ऊर्जा जरूरतें आसानी से पूरी होंगी। साथ ही, नए सड़क, परिवहन और कर्मचारियों के प्रशिक्षण में आधारभूत ढांचे का उल्लेखनीय विकास होगा। 

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