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Wednesday, October 8, 2025

“RPSC एक गूंगी-बहरी संस्था बन गई है, जिसे प्रदेश की युवाओं की कोई चिंता नहीं…”

OP-ED"RPSC एक गूंगी-बहरी संस्था बन गई है, जिसे प्रदेश की युवाओं की कोई चिंता नहीं..."

आरपीएससी पेपर लीक के संदर्भ में राजस्थान हाईकोर्ट की यह टिप्पणी सार्वभौमिक सी लगती है. मामला चाहे जो हो, हर संदर्भ में यह बात सही लगती है कि राजस्थान लोक सेवा आयोग की व्यवस्था युवाओं के साथ खिलवाड़ करने के लिए ही है. हाल का मामला ही देखिए, जब RPSC की राजनीति विज्ञान व्याख्याता भर्ती परिणाम में 45,674 अभ्यर्थियों ने परीक्षा दी, लेकिन 225 पदों के लिए पास हुए- महज 6 कैंडिडेट! परिणाम घोषित होने के बाद युवा हैरान हैं. दरअसल, 16 सितंबर 2025 को नियमों में बदलाव किया गया था. इसके अनुसार, परीक्षा में 200 अंक (इंटरव्यू के मार्क्स हटाकर) में से 80 अंक से कम हासिल करने वाले अभ्यर्थियों का चयन नहीं किया जाएगा.

सोचिए, परीक्षा के इंतज़ाम में सरकारी मशीनरी सहित लाखों करोड़ों रुपयों को स्वाहा कर दिया गया और 225 पदों पर योग्य अभ्यर्थी भी नहीं मिले. ऐसा भी नहीं है कि इस परीक्षा में बैठे अभ्यर्थियों की योग्यता पर सवाल हो. सैकड़ों नेट एग्जाम क्वालीफाई, कई JRF समेत हजारों अभ्यर्थियों ने परीक्षा दी.

एक्सपर्ट्स मानते हैं कि पेपर सेटर्स को इस बात का अंदाजा होता है कि जिस प्रश्न पत्र को तैयार किया जा रहा है, उसे कितने अभ्यर्थी पास कर पाएंगे या यूं कहिए कि उसके अनुसार आयोग की भर्ती परीक्षा के सभी पद भर पाएंगे या नहीं. क्योंकि पेपर सेटिंग के पैरामीटर्स के तहत 30% सरल, 40% मध्यम और 30% कठिन प्रश्नों का संतुलित अनुपात होता है.

पेपर में अवधारणात्मक समझ और विश्लेषणात्मक क्षमता वाले प्रश्नों का संतुलित समावेश के साथ तथ्यात्मक प्रश्नों की अधिकतम सीमा का निर्धारण होता हैं. राजनीति विज्ञान व्याख्याता भर्ती परीक्षा के प्रश्न पत्र में इसका अभाव दिखा. इससे राजस्थान के उन हजार अभ्यर्थियों का मेहनत और उनके पीछे आस लगाए बैठे उनके गरीब परिवारों को।भी झटका लगा.

ऐसा पहली बार भी नहीं हुआ….

हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब इस तरह का विवाद सामने आया हो. 8 अप्रैल को RPSC की जारी लाइब्रेरियन ग्रेड-II के परिणाम में भी TSP क्षेत्र के लिए निर्धारित 45 पदों में से 21 पद खाली रह गए थे. तब भी सिर्फ 24 अभ्यर्थी ही क्वालीफाई कर पाए हैं. तब भी मिनिमम पासिंग मार्क्स के नियम के मुताबिक, दोनों पेपर में अलग-अलग 40% अंक लाना अनिवार्य किया गया था. अगर एक पेपर में भी 40% से कम अंक आते हैं तो चाहे दूसरे पेपर में कितने ही अधिक अंक क्यों न हो उसे क्वालीफाई नहीं माना जाता है. TSP क्षेत्र के अधिकतर अभ्यर्थी दोनों पेपर में 40% अंक नहीं ला पाए और इस वजह से सिर्फ 24 अभ्यर्थी ही क्वालीफाई कर पाए हैं.

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परीक्षा व्यवस्था पर उठते सवाल….!

  • क्या राजस्थान में राजनीति विज्ञान में महज 1 ही फीसदी योग्य अभ्यर्थी हैं? और 99 फीसदी अयोग्य, जो एक परीक्षा में 40 फीसदी अंक भी ला सकते. अगर ऐसा है तो यह राजस्थान की कॉलेज शिक्षा की गुणवत्ता पर ही सवाल है, जो राज्य की भर्ती परीक्षा के लिए भी छात्रों को योग्य नहीं बना पाई.
  • RPSC की इस परीक्षा में संभवतः देश के मामी विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने भी परीक्षा दी, जिसमें केंद्रीय विश्वविद्यालय के भी कई विद्यार्थी शमिल हैं. क्या यह उनकी योग्यता पर भी सवाल है?
  • क्या इस तरह के कठिन पेपर सेट करके कोचिंग व्यवस्था को बढ़ावा नहीं दिया जा रहा, ताकि एक आम छात्र सेल्फ स्टडी के बूटे परीक्षा पास ही ना कर पाए?
  • क्या इस तरह के पैमाने के बाद आरक्षण- व्यवस्था के साथ न्याय हो पाएगा? सवाल तो यह भी उठ रहे हैं कि इस तरह की परीक्षा प्रणाली सामाजिक न्याय की अवधारणा पर चोट है.

तो फिर उपाय क्या है?

  • पेपर के स्तर और नियमावली को ध्यान में रखते हुए पेपर सेटर को संतुलन बनाना होगा.
  • प्रश्न पत्र तैयार करते वक्त परीक्षा का निर्धारित समय भी ध्यान रखा जाए.
  • विश्वविद्यालय स्तर की किताबों के आधार पर पेपर तैयार हो, ना कि किसी एक गाइड या कोचिंग सेंटर के मॉक टेस्ट के पैटर्न के आधार पर. – मिनिमम मार्क्स के नियमों पर फिर से मंथन करने की आवश्यकता है.

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