जोधपुर स्थित मेहरानगढ़ किले में नवरात्रा के अवसर पर वर्ष 2008 में हुई भीषण दुखांतिका में 216 युवाओं की जान गई थी। उस समय की सरकार ने बड़े-बड़े दावे किए, लेकिन कुछ ही महीनों बाद सत्ता बदल गई। नई सरकार ने भी पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाने का आश्वासन दिया, मगर सच्चाई यह है कि आज तक न तो इस त्रासदी के दोषियों के नाम सामने आए और न ही किसी के खिलाफ ठोस कार्यवाही हुई।
घटना की जांच के लिए जस्टिस चौपड़ा आयोग गठित किया गया था, लेकिन उसकी रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं की गई। सवाल यह है कि इतने बड़े हादसे की जांच रिपोर्ट को छुपाने का औचित्य क्या है? भाजपा और कांग्रेस दोनों ही सरकारों ने इसे उजागर करने से परहेज़ किया। ऐसे में सरकारों की नीयत और नीति पर गंभीर सवाल खड़े होना स्वाभाविक है।
यह था मामला
मेहरानगढ़ दुखांतिका 30 सितंबर 2008 को जोधपुर के मेहरानगढ़ किले में स्थित चामुंडा देवी मंदिर में हुई भगदड़ थी, जिसमें 200 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना की जांच के लिए गठित जस्टिस जसराज चोपड़ा आयोग ने 2011 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी, लेकिन सरकार ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया और न ही विधानसभा में पेश किया।
रिपोर्ट के सार्वजनिक न होने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है, जिसमें सरकार की ओर से इसे सार्वजनिक करने से इनकार किया गया है अब सवाल यह है कि इतनी मौतों के गुनहगारों के नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किए जा रहे हैं?
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