जयपुर। हरियाणा कांग्रेस में हालिया उलटफेर के बाद अब राजस्थान में भी संगठनात्मक बदलाव की सुगबुगाहट तेज हो गई है। कांग्रेस ने हरियाणा में नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करते हुए राव नरेंद्र सिंह को कमान सौंपी है, जिसके बाद यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि राजस्थान कांग्रेस में भी बड़े बदलाव हो सकते हैं।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, इस मुद्दे पर मंथन शुरू हो चुका है, हालांकि यह फैसला बिहार चुनाव से पहले लिया जाएगा या बाद में, इस पर स्थिति स्पष्ट नहीं है। राजस्थान में बदलाव की जरूरत की एक बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि कांग्रेस नेतृत्व अगले विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर अब अलर्ट मोड में आ गया है।
क्या सचिन पायलट फिर से संभालेंगे प्रदेश की कमान?
अगर संगठन में बदलाव होता है, तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि नया चेहरा कौन होगा? सचिन पायलट का नाम स्वाभाविक रूप से सबसे पहले सामने आता है। वे पूर्व में प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम रह चुके हैं। हालांकि, साल 2020 में अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत कर मानेसर कांड को अंजाम देने के बाद उन्हें दोनों पदों से हटा दिया गया था। उनके स्थान पर गोविंद सिंह डोटासरा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था।
मानेसर कांड के बाद बदला था संगठन का चेहरा
साल 2020 में जब पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ मानेसर चले गए थे, तब यह कांग्रेस के लिए एक बड़ा संकट बनकर उभरा था। इसके बाद कांग्रेस आलाकमान ने संगठनात्मक फेरबदल करते हुए पूरे प्रदेश, जिला और ब्लॉक स्तरीय कार्यकारिणियां भंग कर दी थीं। डोटासरा को अध्यक्ष बनाने के बाद भी वे लंबे समय तक अकेले ही संगठन का संचालन करते रहे। अब डोटासरा को पद पर 5 साल से ज्यादा हो गए हैं, लिहाजा अब बदलाव की सुगबुगाहट तेज हो रही है।
पायलट की रणनीति
सचिन पायलट इस समय राष्ट्रीय महासचिव और छत्तीसगढ़ के प्रभारी हैं, लेकिन उनकी राजस्थान में सक्रियता बीते कुछ महीनों में काफी बढ़ी है। उनकी रणनीति साफ है “बॉटम-अप अप्रोच के जरिए संगठन को मजबूत करना और मतदाताओं से सीधा जुड़ाव बढ़ाना।” पायलट गांव-गांव जाकर आम जनता, खासकर किसानों और युवाओं से संवाद करते हैं। उनकी पहचान एक ‘क्राउड पुलर’ नेता के रूप में है। हाल ही में उनके जन्मदिन कार्यक्रम में उमड़ी भीड़ ने उनकी सियासी ताकत का प्रदर्शन किया।
गहलोत-पायलट की दूरियां कम, लेकिन विरोध कायम
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि गहलोत और पायलट के बीच की तल्खियां अब काफी हद तक कम हो गई हैं, लेकिन पूरी तरह से विश्वास बहाली नहीं हुई है। गहलोत खेमा अब भी पायलट की संगठन में दोबारा एंट्री को लेकर सहज नहीं दिखता। वहीं, कांग्रेस आलाकमान का “एक व्यक्ति, एक पद” वाला फॉर्मूला भी पायलट की राह में चुनौती बन सकता है।
क्या पायलट के अलावा कोई और विकल्प है?
फिलहाल कांग्रेस के अंदरूनी हलकों में सचिन पायलट के अलावा किसी और नाम पर गंभीर चर्चा नहीं हो रही है।
हालांकि, राजनीति अक्सर सरप्राइजिंग फैसलों के लिए जानी जाती है — जैसा कि बीजेपी में विधानसभा चुनाव के बाद सीएम चेहरे को लेकर देखा गया।
नज़रें अब आलाकमान के फैसले पर
राजस्थान में कांग्रेस की सियासत एक बार फिर करवट लेने को तैयार है। सवाल यही है कि क्या पायलट फिर से संगठन के केंद्र में लौटेंगे? या फिर कांग्रेस आलाकमान कोई नया चेहरा या संतुलनकारी विकल्प सामने लाएगा? इसका जवाब आने वाले हफ्तों में मिल सकता है।