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Wednesday, October 8, 2025

जैसा देश हम चाहते हैं वैसा हमें भी बनना होगा… संघ प्रमुख मोहन भागवत के भाषण की बड़ी बातें

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने एक वक्तव्य में कहा कि भारत को फिर से अपनी मूल पहचान, यानी आत्मस्वरूप, में खड़ा करने का समय अब आ गया है। उन्होंने यह भी कहा कि विदेशी आक्रमणों और उपनिवेशकाल के दौर में हमारी देशी प्रणालियाँ अक्षम व कमजोर हुई थीं, जिन्हें अब समाज व शिक्षा प्रणाली में पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है।

मन, वाणी और कर्म में बदलाव की बात

भागवत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह बदलाव केवल विचारों तक सीमित नहीं होना चाहिए। “हमें ऐसे व्यक्तियों को तैयार करना होगा, जो इस कार्य को कर सकें। इसके लिए सिर्फ मानसिक सहमति नहीं, बल्कि मन, वाणी और कर्म में भी परिवर्तन लाना होगा। ये परिवर्तन किसी सिस्टम के बिना संभव नहीं, और संघ की शाखा उस व्यवस्था का आधार है।”

समाज की इच्छाशक्ति ही असली शक्ति

डॉ. भागवत ने यह बात भी कही “सौ वर्षों से संघ के स्वयंसेवक इस व्यवस्था को हर परिस्थिति में चला रहे हैं। आगे भी वे चलाते रहेंगे। स्वयंसेवकों को चाहिए कि वे नियमित शाखा कार्यक्रमों में पूरी श्रद्धा लगाएँ और अपने आचरण में परिवर्तन की साधना करें।”

उन्होंने यह जिक्र किया कि केवल व्यवस्थाएं ही पर्याप्त नहीं हैं — परिवर्तन की असली शक्ति समाज की इच्छाशक्ति में निहित है। इसलिए संघ द्वारा व्यक्तिगत सद्गुण, सामूहिकता और सेवा भाव को समाज में फैलाने का कार्य किए जाने की बात कही गई।

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विचार को दुनिया तक पहुंचाना — हिंदू समाज का दायित्व

भागवत ने कहा “संपूर्ण हिंदू समाज का संगठित और शील संपन्न बल इस देश की एकता, अखंडता, विकास और सुरक्षा की गारंटी है। हिंदू समाज ही इस देश का उत्तरदायी समाज है और यह सर्व-समावेशी है।” उन्होंने भारत की प्राचीन विचारधारा ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का उल्लेख करते हुए कहा कि यह उदार और समावेशी दृष्टिकोण भारत की ताकत है। इसे दुनिया तक पहुँचाना हिंदू समाज का परम दायित्व है। संघ इस दिशा में संगठित कार्यशक्ति के माध्यम से भारत को वैभवशाली और धर्मपरायण राष्ट्र बनाने का संकल्प लेकर कार्य कर रहा है।

विजयादशमी अवसर और सीमोल्लंघन की परंपरा

शुभ अवसर विजयादशमी पर, भागवत ने सीमोल्लंघन की परंपरा को याद कराते हुए कहा कि आज की परिस्थितियों को देखते हुए हमें अपने पूर्वजों द्वारा निर्धारित कर्तव्यों का पालन करते हुए, मिलकर एक सशक्त भारत का निर्माण करना चाहिए। उन्होंने कहा कि संघ का शताब्दी वर्ष व्यक्ति निर्माण को देशव्यापी बनाना और पंच परिवर्तन कार्यक्रम को समाज में लागू करना इसका लक्ष्य है।

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जैसा देश हम चाहते हैं, वैसा हमें भी बनना होगा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने विजयादशमी के पावन अवसर पर देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि “जैसा देश हम चाहते हैं, वैसा हमें भी बनना होगा।” उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया उथल-पुथल और बेचैनी के दौर से गुजर रही है, और इस बीच दुनिया की निगाहें भारत पर टिक गई हैं।

भारत से है दुनिया को उम्मीद

भागवत ने कहा, “नियति भी यही चाहती है कि भारत कोई हल निकाले, भारत मार्गदर्शन दे। दुनिया में व्यवस्था परिवर्तन की आवश्यकता है, लेकिन यह परिवर्तन एकदम पीछे लौटने से नहीं आएगा।” उन्होंने समझाया कि अगर हम पूरी तरह से पीछे मुड़ने की कोशिश करेंगे तो गाड़ी पलट जाएगी। इसलिए बदलाव के लिए धीरे-धीरे, सोच-समझकर कदम उठाने होंगे।

देश के लिए खुद को बदलना ज़रूरी

संघ प्रमुख ने कहा कि जिस भारत की हम कल्पना करते हैं – एक समृद्ध, सशक्त, और नैतिक मूल्यों पर आधारित राष्ट्र – उसके निर्माण के लिए पहले हमें खुद को बदलना होगा। “हमें वही बनना होगा जैसा देश हम चाहते हैं,” उन्होंने ज़ोर देकर कहा।

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