SMS Hospital Fire: जयपुर। राजधानी जयपुर के सवाई मानसिंह (SMS) अस्पताल में रविवार देर रात हुए भीषण अग्निकांड के बाद अब अस्पताल प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। ट्रॉमा सेंटर के ICU में लगी आग से जहां 8 मरीजों की मौत हो गई, वहीं कई लोग गंभीर रूप से झुलस गए। अस्पताल में भर्ती घायलों का इलाज जारी है, लेकिन घटना के बाद सामने आई लापरवाही की कहानियां हैरान कर देने वाली हैं।
“मुझे खुद अपनी मां को आग से निकालना पड़ा”
भरतपुर निवासी शेरू सिंह, जिनकी मां ICU में भर्ती थीं, ने बताया कि उन्होंने सबसे पहले ट्यूबलाइट से निकलते धुएं को देखा और वार्ड बॉय से शिकायत की, लेकिन उसने बात को अनसुना कर दिया। कुछ ही देर में ICU में तेजी से धुआं फैल गया, और फॉल्स सीलिंग का प्लास्टिक पिघल कर गिरने लगा। “एक-एक करके ट्यूबलाइट फूटने लगीं, वार्ड में अंधेरा छा गया, और कोई भी अस्पतालकर्मी मदद के लिए नहीं आया। सभी बाहर भाग गए,” – शेरू सिंह उन्होंने जान की परवाह किए बिना अपनी मां को ICU से बाहर निकाला, लेकिन तब तक वह झुलस चुकी थीं। इस प्रक्रिया में शेरू खुद भी घायल हो गए और फेफड़ों में धुआं भरने से तबीयत बिगड़ गई।
अगर समय पर मदद मिलती तो…
आग में जान गंवाने वाले दिलीप के परिजनों ने भी आरोप लगाया कि हादसे के वक्त कोई स्टाफ ICU में मौजूद नहीं था। “हम खुद मरीजों को ढूंढते हुए ICU में घुसे। इतना धुआं था कि मरीज दिखाई नहीं दे रहे थे। अगर स्टाफ समय रहते आता, तो शायद दिलीप आज जिंदा होता।”
जांच के लिए बनी उच्च स्तरीय कमेटी
घटना के बाद सरकार ने जांच के आदेश जारी कर कमेटी का गठन किया है। इस 5 सदस्यीय जांच कमेटी की अध्यक्षता इकबाल खान (आयुक्त, चिकित्सा विभाग) करेंगे। कमेटी में शामिल अन्य सदस्य हैं।
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मुकेश कुमार मीणा – अतिरिक्त निदेशक, अस्पताल प्रशासन, राजमेस
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चंदन सिंह मीणा – मुख्य अभियंता, राजमेस
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अजय माथुर – मुख्य अभियंता (विद्युत), PWD
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आरके जैन – अतिरिक्त प्रधानाचार्य, SMS मेडिकल कॉलेज व मुख्य अग्निशमन अधिकारी, नगर निगम जयपुर
कमेटी को घटना के कारणों की जांच, सुरक्षा इंतजामों की समीक्षा और उत्तरदायित्व तय करने का कार्य सौंपा गया है।
देश के सबसे बड़े अस्पतालों में भी मरीज सुरक्षित नहीं
इस दर्दनाक घटना ने राज्य की चिकित्सा व्यवस्था और आपदा प्रबंधन की तैयारियों को कठघरे में खड़ा कर दिया है। परिजनों की पीड़ा और प्रशासन की लापरवाही ने यह सवाल उठा दिया है कि क्या देश के सबसे बड़े अस्पतालों में भी मरीज सुरक्षित नहीं हैं?