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Tuesday, October 7, 2025

SMS Hospital Fire: ज़िंदगी और सरकारी सिस्टम – जहां मौतें भी रूटीन बन गई हैं

OP-EDSMS Hospital Fire: ज़िंदगी और सरकारी सिस्टम - जहां मौतें भी रूटीन बन गई हैं

Jaipur SMS Fire Incident: “ज़िंदगी इक हादसा है और कैसा हादसा, मौत से भी ख़त्म जिस का सिलसिला होता नहीं” जिगर मुरादाबादी का यह शेर सरकारी सिस्टम पर सटीक बैठता है, जहां बदहाली के चलते लोगों की मौत का सिलसिला खत्म ही नहीं होता. अमीर-गरीब की खाई में पटे इस समाज में आम आदमी जिंदगी में कितने दुख-दर्द झेलता है और विडंबना तो यह है कि जिस सरकारी व्यवस्था के भरोसे वह उम्मीद लगाकर बैठा है, वह उसकी मौत का इंतजाम कर देता है.

एक ऐसी सरकारी व्यवस्था जो कभी स्कूल की छत के नीचे बैठे मासूम पर कहर बनकर टूट जाती है तो कभी कफ सिरप पिलाकर उन्हें मौत के घाट उतार देती है और कभी तो हॉस्पिटल में इलाज लेने आए घायलों की जान ही ले लेती है. एमएसएम हॉस्पिटल के हादसे में जान गंवाने वाले कई मरीज तो कोमा में थे और उनके परिजन जब सड़क पर लेकर उन्हें बैठ गए थे तो उनके साथ पूरा सरकारी तंत्र पर भी सड़क पर बिखरा पड़ा था.

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ऊंची इमारतों के ढह चुके सिस्टम से आस तो आम आदमी को भी शायद नहीं है, लेकिन आर्थिक बदहाली का मारा मरीज तो निजी हॉस्पिटल की लूट-खसोट से बचने के लिए सरकारी हॉस्पिटल में पहुंचता है. तमाम हादसों के बाद जांच कमेटी वाली खानापूर्ति इस मामले में भी हो चुकी है.

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जांच समिति बनाना समाधान नहीं, जिम्मेदार कौन?

हादसे की जांच के लिए बनी कमेटी के अध्यक्ष चिकित्सा विभाग आयुक्त होंगे यानी जिम्मा उसी विभाग को दिया गया है, जिस विभाग पर स्वास्थ्य-व्यवस्था को मजबूत बनाने का भी जिम्मा था और वह नाकाम रही. अब उस नाकामी की जांच खुद विभाग ही करेगा, ये कैसा मजाक है? पीडब्ल्यूडी, एसएमएस हॉस्पिटल के डॉक्टर समेत कई नौकरशाह इस जांच को पूरा करेंगे. जाहिर तौर पर वह मामले में कड़ी कार्रवाई की बात कहकर औपचारिकता पूरी की गई है.

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पैटर्न बदलिए, नतीजे लाइए – जांच में हो पारदर्शिता

जबकि जांच समिति गठित करने के इस पैटर्न को भी बदला जाना चाहिए, जिसमें कई स्वास्थ्य विशेषज्ञ, इंजीनियर और रिटायर्ड अफसरों के साथ विपक्ष के सदस्यों और एक्टिविस्ट को लिया जाना चाहिए. ताकि एक निष्पक्ष जांच रिपोर्ट सामने आए और जवाबदेही तय हो. झालावाड़ स्कूल हादसे में प्रिंसिपल को जिम्मेदार ठहराने वाली सरकार को इस मामले में इमरेंजसी यूनिट के स्टाफ की जिम्मेदारी तय करने तक सीमित नहीं हो जाना चाहिए.

जांच होती है, लेकिन व्यवस्था सुधारने की जिम्मेदारी कहाँ?

बल्कि बात इस पर होनी चाहिए कि क्या बिजली उपकरणों समेत हॉस्पिटल के रखरखाव के लिए सावधानी बरती गई? क्योंकि हादसों की जिम्मेदारी तय करने के लिए कमेटी गठित तो होती है, लेकिन व्यवस्था को दुरुस्त रखने और इस पर मॉनिटरिंग के लिए समिति गठित नहीं होती.

8-10 परिवारों के सिवा कौन याद रखेगा?

बहरहाल, फेस्टिवल सीजन में डूबी प्रदेश की जनता इस हादसे को भी दीवाली की रोशनी में भूल जाएगी और यह दर्द सिर्फ उन 8 या 10 परिवारों को होगा, जिन्होंने अपने परिजनों को खोया या फिर हादसे में गंभीर रूप से घायल परिवार के सदस्यों की देखभाल करनी है.

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