राजस्थान में संविदा कार्मिकों का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है. पूरे राज्य में आंदोलन और धरना-प्रदर्शन के जरिए कर्मचारी राज्य सरकार से स्थायी करने की मांगें तेज हैं. संविदाकर्मियों की मुख्य मांगें हैं—नियमितीकरण, न्यूनतम वेतन 26 हजार रुपए, महंगाई भत्ता, पेंशन सुविधा, पदोन्नति का मौका, आउटसोर्स या ठेकेदार आधारित कर्मचारियों को सरकारी सेवा में लाना. असल संकट यह है कि वर्षों से प्रक्रिया शुरू होने, बार-बार डाटा और दस्तावेज मांगने के बाद भी कोई अंतिम आदेश नहीं आया. नियमितीकरण का नियम बन गया, लेकिन लागू करने की जमीनी इच्छाशक्ति विभागों में नहीं दिखती. बार-बार आंदोलन, ज्ञापन, मंत्री-विधायक की सिफारिशों के बावजूद संविदा कर्मचारियों को आज भी अस्थिरता और बेरोजगारी का डर सता रहा है. इस बार आंदोलन दिवाली के आसपास नए चरण में और चेतना यात्रा के रूप में पूरे प्रदेश में होगा.
क्योंकि सरकार साल दर साल मानव संसाधन पर करोड़ों का बजट देती है, लेकिन स्थायी सिस्टम नहीं बनता. राज्य के सभी विभागों में संविदा कर्मचारी कार्यरत हैं, लेकिन अब तक सिर्फ सात विभागों ने नियमों के तहत प्रक्रिया अपनाई है. इनमें शिक्षा, चिकित्सा, अल्पसंख्यक मामलात, ग्राम विकास, स्वायत्त शासन, तकनीकी व संस्कृत शिक्षा विभाग शामिल हैं. अन्य में अभी तक नियमावली के लागू होने की प्रतीक्षा है. कर्मचारी कई साल से काम कर रहे, तमाम योजनाओं का संचालन करते हैं, लेकिन नियुक्ति और वेतन को लेकर उन पर लगातार अनिश्चितता बनी है.
बैकडोर से कैसे खेल होता है, वो भी समझिए
सरकार ने बजट 2025-26 में ठेका प्रथा समाप्त करने की घोषणा की थी. इसके तहत प्रस्ताव था कि एक राजकीय संस्था बनाकर ठेका कर्मचारियों को सरकारी नौकरी का दर्जा दिया जाएगा. कार्मिक विभाग ने सभी विभागों से ठेका कर्मचारी और प्लेसमेंट एजेंसी से लगे कर्मचारियों की सूची मांगी, लेकिन कई विभागों ने “शून्य रिपोर्ट” देकर जिम्मेदारी टाल दी. उनका तर्क था—पूरा विभाग ही ठेके पर है, कर्मचारी सीधे नियुक्त ही नहीं. यानी प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए पूरा विभाग ही ठेके पर चला गया तो कार्मिक के प्रति सरकार जवाबदेह ही नहीं रह गई.
ठेका प्रथा ने कर्मचारियों की सुरक्षा और भविष्य को संदेह में डाल दिया है. बिजली विभाग में 50 हजार से ज्यादा कर्मचारी ठेके पर हैं. 132 केवी GSS में पिछले 7 साल से ठेकेदार के ज़रिए काम लिया जा रहा है. इन कर्मचारियों का कहना है कि मात्र छह हजार रुपए के वेतन पर इनसे काम लिया जा रहा है, जिससे परिवार का गुजारा नामुमकिन है.
जब पूरे प्रदेश में एंबुलेंसकर्मियों ने कर दी थी हड़ताल
2023 में एम्बुलेंस सेवाएं बंद होने का संकट देशभर में चर्चा में आ गया था. राजस्थान में 104 और 108 एंबुलेंस के 6200 कर्मचारियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल 12 दिन तक चली. नर्सिंग, ड्राइवर सब हड़ताल पर थे, जिन पर बाद में पुलिस कार्रवाई भी हुई. इन कर्मचारियों की सबसे बड़ी पीड़ा यही थी—ठेका कंपनी न सुरक्षा देती है, न स्थिरता, और सरकार भी लगातार अनदेखी करती है. लेकिन 10 दिन से ज्यादा चली इस हड़ताल के बाद गृह विभाग की ओर से अधिसूचना जारी कर 108 आपातकालीन सेवा, 104 जननी एक्सप्रेस, ममता एक्सप्रेस, 104 चिकित्सा परामर्श सेवा और कॉल सेंटर्स को राजस्थान अत्यावश्यक सेवाएं अनुरक्षण अधिनियम, 1970 के तहत Essential Services घोषित किया गया था.
सरकार का कहना था कि इन सेवाओं में व्यवधान से आमजन को भारी संकट झेलना पड़ सकता है. विशेषकर ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले लोग इन सेवाओं पर निर्भर हैं. 108 एम्बुलेंस मरीजों के लिए जीवनदायिनी है, वहीं जननी एक्सप्रेस गर्भवती महिलाओं और शिशुओं के लिए सुरक्षा कवच की तरह काम करती है. लेकिन इन आवश्यक सेवाओं से जुड़े कार्मिकों की आवश्यक जरूरतों और सामाजिक सुरक्षा की तरफ सरकार का ध्यान नहीं दिया.
ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं
आंकड़ों पर नजर डालें तो शिक्षा विभाग में 35,804, चिकित्सा-स्वास्थ्य में 16,494, अल्पसंख्यक मामलात में 5,562, स्वायत्त शासन में 1,226, ग्राम विकास में 978, तकनीकी शिक्षा में 41 तथा संस्कृत शिक्षा में 21 संविदा कार्मिक नियमों के तहत कार्यरत हैं (मार्च 2025 तक).