जयपुर। राजस्थान सरकार सहकारी समितियों की प्रक्रियाओं को सरल बनाने, पारदर्शिता बढ़ाने और व्यवसायिक विकास को गति देने के उद्देश्य से नया सहकारी अधिनियम लाने जा रही है। यह अधिनियम वर्तमान में लागू राजस्थान सहकारिता अधिनियम-2001 की जगह लेगा। नए अधिनियम को वर्तमान सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप तैयार किया गया है।
इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा गठित पांच सदस्यीय समिति ने महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और केरल जैसे सहकारी आंदोलन में अग्रणी राज्यों के कानूनों का अध्ययन कर विस्तृत मसौदा तैयार किया है। वरिष्ठ अधिकारियों व विशेषज्ञों के साथ चर्चा के बाद ‘को-ऑपरेटिव कोड’ का प्रस्ताव तैयार किया गया है।
जनजागरूकता के लिए विशेष अभियान
राज्य सरकार 2 से 15 अक्टूबर तक ‘सहकार सदस्यता अभियान’ चला रही है, जिसके तहत आमजन को नए अधिनियम के प्रमुख प्रावधानों की जानकारी दी जा रही है। अब तक 3 लाख 75 हजार से अधिक लोगों को अधिनियम से अवगत कराया जा चुका है। इस अभियान का उद्देश्य सहकारी आंदोलन को मजबूत करना और ज्यादा से ज्यादा लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना है।
प्रक्रियाओं का सरलीकरण और लोकतांत्रिक प्रबंधन पर जोर
प्रस्तावित अधिनियम में प्रक्रियाओं को सरल बनाने, अनियमितताओं पर नियंत्रण, विवादों के त्वरित निस्तारण, समितियों की व्यावसायिकता बढ़ाने और लोकतांत्रिक व सदस्य-केन्द्रित प्रबंधन को बढ़ावा देने जैसे महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल हैं। इससे समितियों के संचालन में पारदर्शिता आएगी और आमजन का सहकारिता पर विश्वास और मजबूत होगा।
समितियों को मिलेगा अधिक व्यवसायिक अधिकार
नए अधिनियम में यह प्रावधान भी किया गया है कि समितियां और उनके सदस्य अपने उत्पादों को अपने कार्यक्षेत्र से बाहर भी बेच सकेंगे। साथ ही, बाजार में प्रतिस्पर्धा के लिए समितियों को आपसी सहमति से साझेदारी करने की अनुमति दी जाएगी। इससे समितियों की आमदनी बढ़ेगी और वे आत्मनिर्भर बन सकेंगी।