केंद्रीय गृह व सहकारिता मंत्री अमित शाह जयपुर आए तो प्रदेशवासियों के लिए दिवाली का तोहफा देने की बात हुई. एक तोहफा राजस्थान में बच्चों के लिए भी था, स्कूल यूनिफॉर्म के लिए सालाना खाते में जमा होने वाली राशि. लेकिन यह तोहफा आधा- अधूरा था और भेदभाव से भरा. क्योंकि बीजेपी का चुनावी वादा था कि सरकार में आने के बाद बच्चों को खाते में सीधे 1200 रुपए दिए जाएंगे, लेकिन दिए गए- महज 600 रुपए. 40 लाख बच्चों के खाते में सीधे 240 करोड़ रुपए पहुंचे.
इसी साल 27 मार्च को घोषणा हुई कि कक्षा 1 से 8 तक के छात्रों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के जरिए 800 रुपए दिए जाएंगे. साथ ही, कक्षा 9 से 12 की छात्राओं को ही यूनिफॉर्म और बैग की राशि दी जाएगी यानी इसमें भी छात्रों को बाहर कर दिया गया. मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने भरतपुर से इसकी शुरुआत की. इस योजना को राजस्थान सरकार ने स्कूल शिक्षा में बड़ा कदम बताते हुए ढिंढोरा पीटा, लेकिन जब बजट की कमी हुई तो नया सर्कुलर ले आए.
सरकारी यूनिफॉर्म योजना से OBC और सामान्य बच्चे बाहर!
राजस्थान स्कूल शिक्षा परिषद ने नए आदेश में सामान्य और ओबीसी बच्चों को बाहर कर दिया है. अब यह लाभ सिर्फ एससी, एसटी, बीपीएल वर्ग के छात्रों और सभी वर्ग की छात्राओं को मिलेगा. वहीं, 9वीं से 12वीं के बच्चों को योजना का लाभ देने वाले वादे से सरकार मुकर गई. अब उन्हें, इस दायरे से बाहर रखा गया. झालावाड़ स्कूल हादसे के बाद स्कूल संसाधन और जर्जर भवन से छुटकरा पाने के लिए सरकार को घेरा गया. अब आम तो यह कि बिल्डिंग छोड़िए, स्कूल यूनिफॉर्म के लिए भी सरकार के पास पैसे नहीं है. और बजट संकट से बचने के लिए नए-नए हथकंडे अपनाए जा रहे हैं.
कपड़े के साथ मिलती थी 200 रुपए की सिलाई राशि
दरअसल, पूर्ववर्ती गहलोत सरकार के समय पहली से आठवीं कक्षा तक के बच्चों को साल में दो यूनिफॉर्म मुफ्त मिलते थे. कपड़े अलग, सिलाई का भत्ता अलग. बच्चों को यूनिफॉर्म खरीदना नहीं पड़ता, सब स्कूल से मिल जाता. बाद में 9वीं से 12वीं की छात्राओं को भी शामिल किया गया. यूनिफॉर्म वितरण में कपड़े मिलते और सिलाई के लिए 200 रुपए अलग मिल जाते, जिससे गरीब से गरीब बच्चा भी शालीनता से स्कूल के माहौल में रहता.
सत्र आधा बीता, बच्चों को अब भी इंतजार
भजनलाल सरकार ने नई स्कीम में बच्चों के खाते में सीधे 800 रुपए खाते ट्रांसफर करने का ऐलान किया, जिससे उन्हें यूनिफॉर्म और बैग खुद खरीदने में आसानी हो. सरकार का दावा था कि इससे बच्चों की खरीददारी में सहूलियत बढ़ेगी और सत्र के अंत तक आर्थिक बोझ घटेगा. असलियत यह है कि साल भर के इंतजार के बाद सत्र आधा बीत गया तो नीतिगत विफलता के चलते बच्चों के खाते में पैसे नहीं पहुंचे. शिक्षा विभाग अब आदेश की नई कॉपियां निकालने में लगा है.
समावेशी सिद्धांत पर कुठाराघात
इस प्रक्रिया में असल संकट ये है कि राजस्थान स्कूल शिक्षा परिषद ने पिछले आदेश में सामान्य, ओबीसी वर्ग के बच्चों को बाहर कर दिया. अब यूनिफॉर्म की राशि सिर्फ एससी, एसटी, बीपीएल वर्ग के बच्चों और सभी वर्ग की छात्राओं के लिए है. सामान्य और ओबीसी वर्ग के बच्चे इस योजना से पूरी तरह बाहर हैं.
सरकार का नया आदेश खोलता है भेदभाव की परतें
यानी बजट की कमी की आड़ में सबसे पहले कुठाराघात शिक्षा के समावेशी सिद्धांत पर हुआ. कक्षा एक से आठ के सामान्य वर्ग और ओबीसी बच्चों का डाटा सूची से हटाने की तैयारी खुले तौर पर बजट कटौती और भेदभाव को दिखाती है. कक्षा 9-12 की छात्राएं भी अब योजना से बाहर हो गई हैं. आदेश साफ कहता है—अब राशि सिर्फ शेष बचे पात्र बच्चों के लिए ही खाते में आएगी.
यूनिफॉर्म बजट पर कैंची से टूटी बच्चों की उम्मीदें
राजकीय विद्यालयों में नामांकन बढ़ाने का सरकारी लक्ष्य यूनिफॉर्म बजट पर कैंची चला कर खुद कमजोर हो चुका है. सत्र शुरू होने के तीन महीने बाद बजट जारी करके, सबसे बड़ी कैंची सामान्य और ओबीसी वर्ग के छात्रों पर चलाना दिखाता है कि सरकारी योजना का मकसद सिर्फ आंकड़ों में साल-दर-साल कामयाबी दिखाना है, असली हक हर गरीब, जरूरतमंद विद्यार्थी तक नहीं पहुंच पा रहा. यह मामला बजट, नीति और शिक्षा के अधिकार का नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की परीक्षा है. सरकारी योजनाओं में बार-बार वर्गीय कटौती करना सबसे कमजोर, हाशिये पर खड़े बच्चे की उम्मीदों पर सीधा वार है.
बजट की कमी से पार पाने का ये कैसा तरीका
बजट की कमी के बाद शिक्षा विभाग ने नामांकन बढ़ाने की जगह खुद योजना पर कैंची चला दी है. पढ़ाई शुरू होने के तीन महीने बाद, सामान्य और ओबीसी बच्चों को स्कीम से बाहर कर देना कहीं से भी समावेशी शिक्षा का संकेत नहीं देता.
साफ है कि अफसरों ने कटौती के लिए सबसे पहले आम बच्चों का नाम सूची से हटाया. 9 से 12 की छात्राएं भी अब पात्र नहीं हैं. अब सिर्फ कुछ वर्ग के बच्चों को ही यूनिफॉर्म राशि दी जाएगी. स्कीम की सबसे बड़ी विफलता यही है कि गरीब, जरूरतमंद और आम विद्यार्थी का अधिकार वर्गीय कटौती और ‘बजट बचाओ’ नीति में गुम हो गया है.
यह मुद्दा सिर्फ यूनिफॉर्म भत्ते का नहीं, सामाजिक न्याय और असली शिक्षा की परीक्षा है. प्रशासनिक लापरवाही, बजट की खोज में बार-बार बच्चों को हाशिये पर डालना, और हर साल नई स्कीम आते ही कटौती शुरू, यही सरकारी स्कीम का असली चेहरा है.






