Jhunjhunu Dargah Diwali: झुंझुनू। जब पूरे देश में दीपावली का महापर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है, ऐसे में राजस्थान का झुंझुनू शहर एक ऐसी अनूठी परंपरा को जीवित रखे हुए है, जो सांप्रदायिक सौहार्द और कौमी एकता की मिसाल पेश करती है।
यहां की कमरूद्दीन शाह दरगाह में हर साल दीपावली पर मुस्लिम समुदाय के लोग दीये जलाते हैं, आतिशबाजी करते हैं और हिंदू भाई-बहनों के साथ मिलकर पर्व की खुशियाँ मनाते हैं। यह परंपरा कोई नई नहीं, बल्कि 250 साल से अधिक पुरानी विरासत है, जो आज भी पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ निभाई जा रही है।
250 साल पुरानी परंपरा
कमरूद्दीन शाह दरगाह के गद्दीनसीन एजाज नबी बताते हैं कि यह परंपरा ढाई शताब्दी से भी अधिक पुरानी है। यह शायद राजस्थान की एकमात्र ऐसी दरगाह है, जहां दीपावली का पर्व मुस्लिम समुदाय द्वारा मनाया जाता है।
छोटी दीपावली को दरगाह पर दीये और मोमबत्तियाँ जलाई जाती हैं, जबकि मुख्य दीपावली पर हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय एक साथ पर्व मनाते हैं। यह आयोजन केवल रोशनी का उत्सव नहीं, बल्कि धर्मों के बीच पुल बनाने वाला एक पवित्र अवसर बन चुका है।
LED की जगमगाहट और दीयों की आभा
कल शाम से ही कमरूद्दीन शाह दरगाह रोशनी से सराबोर हो गई थी। रंग-बिरंगी LED लाइट्स से सजावट की गई। महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों ने मिलकर दरगाह की दहलीज पर दीप जलाए। बच्चों ने एक-दूसरे को “हैप्पी दिवाली” कहकर बधाइयाँ दीं और आतिशबाजी का आनंद लिया। यह दृश्य बताता है कि झुंझुनू में दीपावली सिर्फ एक धार्मिक त्यौहार नहीं, बल्कि आपसी प्रेम और साझी संस्कृति का पर्व है।
दो संतों की दोस्ती से शुरू हुई परंपरा
यह परंपरा उस समय शुरू हुई थी जब कमरूद्दीन शाह और चंचलनाथ महाराज नाम के दो संतों की गहरी मित्रता थी। दोनों धार्मिक स्थानों (दरगाह और टीला) पर आज भी एक-दूसरे के पर्वों में सहभागिता निभाई जाती है। उर्स में चंचलनाथ टीले के महंत ओमनाथ महाराज और संतगण दरगाह आते हैं। वहीं चंचलनाथ टीले पर रोजा-इफ्तार दावत में मुस्लिम समुदाय के लोग भी भाग लेते हैं। दरगाह में भजन और कव्वाली साथ-साथ होती हैं, जिससे यह स्थान धार्मिक समन्वय का जीवंत उदाहरण बन चुका है
दीपावली हो या रमज़ान, सब साथ हैं
इस वर्ष भी, देशभर से आए मुस्लिम परिवारों ने कहा कि वे हर साल खासतौर पर झुंझुनू दीपावली मनाने आते हैं। उनके लिए यह महज एक त्योहार नहीं, बल्कि भाईचारे, प्रेम और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। आज जब कई जगह धार्मिक मतभेदों की खबरें आती हैं, झुंझुनू की यह परंपरा बताती है कि भारत की असली पहचान उसकी विविधता और साझी संस्कृति है।
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