भारत का शिक्षा तंत्र इन दिनों एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है. चर्चा का विषय है – आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का स्कूली शिक्षा में आना. शिक्षा मंत्रालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा NCF-SE 2023 के तहत 2026-27 से कक्षा 3 से ही AI और कम्प्यूटेशनल थिंकिंग (CT) शुरू करने का फैसला लिया है. सवाल यह है कि इसकी जरूरत क्यों है, हमारे बच्चे इसके लिए कितने तैयार हैं और इसका भविष्य क्या आकार ले सकता है.
भारत की नई शिक्षा नीति अब रटने की शिक्षा से हटकर समस्या-समाधान, रचनात्मकता और नैतिक तकनीक के उपयोग पर जोर देती है. दुनियाभर के देशों में AI पाठ्यक्रम आम बात होती जा रही है, खासकर चीन, ब्रिटेन और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों में. डिजिटल इंडिया के सपने के लिए हमारे बच्चों को केवल किताबें नहीं, बल्कि तकनीक-साक्षर बनाना जरूरी है. AI अब सिर्फ जॉब या रिसर्च का विषय नहीं रहा, बल्कि बच्चों की डिजिटल नागरिकता का बुनियादी हिस्सा बन रहा है.
करिकुलम किस तरह से डिजाइन हो रहा है, वो जानिए
- कक्षा 3 से AI और कम्प्यूटेशनल थिंकिंग का नया पाठ्यक्रम शुरू होगा.
- इसको CBSE, NCERT, KVS, NVS समेत राज्य शिक्षा बोर्ड्स के सहयोग से लागू किया जाएगा.
- शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण निष्ठा पोर्टल व वीडियो मॉड्यूल्स पर होगा.
- AI को पढ़ना, गणित की तरह सार्वभौमिक स्किल होगा: न सिर्फ रोबोटिक्स-कोडिंग, बल्कि समस्या-समाधान, तर्कशक्ति, डिजाइन थिंकिंग तक.
- दिसम्बर 2025 तक सभी जरूरी डिजिटल हैंडबुक्स, पाठ्यक्रम और शिक्षण सामग्री तैयार की जा रही है.
- पूरे रोलआउट का मकसद बच्चों को तकनीक-साक्षर, आलोचनात्मक, और नैतिक नागरिक बनाना है.
- CBSE की विशेषज्ञ समिति (प्रो. कार्तिक रमन के नेतृत्व में) ‘हमारे आसपास की दुनिया’ थीम पर पाठ्यक्रम तैयार कर रही है, जिससे रोजमर्रा के अनुभव से AI जोड़ सकें.
हमारे बच्चे कितने तैयार?
यह सवाल सबसे जरूरी है. भारत में 50% स्कूल अब भी बुनियादी डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर (इंटरनेट, बिजली, कम्प्यूटर) से जूझ रहे हैं. अधिकतर शिक्षक खुद AI या CT में प्रशिक्षित नहीं हैं, नया सिस्टम लागू करने के लिए बड़े स्तर पर शिक्षक ट्रेनिंग, सामग्री, हैंड्स-ऑन वर्कशॉप्स की जरूरत होगी. युवा पीढ़ी तकनीक में एक हद तक सहज है. यूनिसेफ और यूथ सर्वे बताते हैं करीब 88% छात्र पहले से पढ़ाई के लिए किसी AI टूल या एप का इस्तेमाल करता है. लेकिन बिना मार्गदर्शन के यह प्लेटफॉर्म केवल शॉर्टकट या उत्तर देने का जरिया बन सकते हैं. बच्चों को AI के नैतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पक्ष पर पक्का संवाद और व्यावहारिक शिक्षा देनी होगी. गांव-देहात के स्कूलों में डिजिटल डिवाइड सबसे बड़ा चैलेंज रहेगा.
स्कूली एजुकेशन का भविष्य
- रियल वर्ल्ड इंटीग्रेशन: तीसरी से पांचवी तक बच्चों को प्रकृति, समाज और तकनीक के कनेक्शन के प्रैक्टिकल उदाहरण देकर AI सिखाएं.
- मॉड्यूलर रोलआउट: धीरे-धीरे – पहले AI की बेसिक्स, फिर मिडिल स्कूल में थ्योरी और रचनात्मक उपयोग, हाई स्कूल में कोडिंग, पायथन, डेटा एनालिटिक्स जैसे टेक्निकल टॉपिक्स.
- संसाधनविहीन स्कूलों के लिए ‘Unplugged’ एआई शिक्षा: टेबल टॉप गेम्स, पिक्चर कार्ड, तर्क और नैतिकता पर चर्चाएं, ताकि डिजिटल डिवाइड कम हो सके.
- जटिलता और अपडेट: पाठ्यक्रम को समय के साथ अपडेट करना जरूरी होगा. AI फील्ड इतनी तेज बदलती है कि आज की स्किल कल अप्रासंगिक हो सकती है.
- नैतिकता, डेटा प्राइवेसी, Algorithimic Bias की शिक्षा: बच्चों को सिखाया जाए कि AI टूल्स का इस्तेमाल जिम्मेदारी और जागरूकता से करना है.
- शिक्षक प्रशिक्षण: इसके लिए सबसे पहले शिक्षकों को प्रशिक्षित कर तैयार करना, यही टेक्नोलॉजी रोलआउट की रीढ़ है.
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