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Monday, December 1, 2025

थाईलैंड में बंधक बनाकर कराया जा रहा था ऑनलाइन फ्रॉड, विरोध करने पर दिए जाते थे इलेक्ट्रिक शॉक

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राजस्थान के झुंझुनूं जिले के दो युवक थाईलैंड में साइबर ठगों के जाल में फंसने के बाद गंभीर शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना झेलते हुए आखिरकार सुरक्षित स्वदेश लौट आए हैं। 23 वर्षीय अक्षय मीणा और 25 वर्षीय शैलेश मीणा को टेलीग्राम के माध्यम से ऊंची सैलरी वाली नौकरी का झांसा देकर थाईलैंड बुलाया गया था। वहां पहुंचने पर उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया और उन्हें म्यांमार सीमा के पास स्थित एक गुप्त साइबर फ्रॉड कैंप में बंद कर दिया गया। दोनों युवकों के अनुसार, उन्हें टेलीग्राम पर “डेटा एंट्री का काम” और ₹80,000 से ₹1.20 लाख मासिक वेतन का प्रस्ताव मिला था। एजेंट ने वीज़ा और टिकट का पूरा खर्च स्वयं वहन करने की बात कहकर उन्हें विदेश बुलाया, लेकिन वहां पहुंचते ही हकीकत भयावह निकली।

दोनों युवक 18 अक्टूबर को जयपुर से एक विशेष उड़ान द्वारा बैंकॉक पहुंचे, जहां से उन्हें बस में बैठाकर करीब 14 घंटे की यात्रा के बाद म्यांमार सीमा के निकट स्थित ‘माए सोट’ क्षेत्र में ले जाया गया। युवकों के अनुसार, वहां एक बड़े कैंप में लगभग 500 से अधिक भारतीय नागरिक कैद थे। सभी के पासपोर्ट जब्त कर लिए गए थे और उन्हें दिन-रात फर्जी वेबसाइटों तथा क्रिप्टो निवेश योजनाओं के माध्यम से ऑनलाइन ठगी का काम करने के लिए मजबूर किया जाता था। प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन कम से कम 50 लोगों को ठगने का लक्ष्य दिया जाता था। जो यह लक्ष्य पूरा नहीं कर पाता, उसे बिजली के झटके देना, लोहे की छड़ से मारना और भूखा रखना जैसी कठोर यातनाएं दी जाती थीं।

विरोध किया तो इलेक्ट्रिक शॉक दिया

अक्षय ने भयावह अनुभव साझा करते हुए बताया कि जब उन्होंने ठगी का काम करने से इनकार किया, तो उन्हें नग्न कर बिजली के करंट से यातना दी गई। हाथ-पैर बांधकर 10-10 मिनट तक झटके दिए जाते थे, जिससे कई युवक बेहोश हो जाते थे। एक युवक की हालत इतनी गंभीर हुई कि उसकी दोनों किडनियां फेल हो गईं। शैलेष ने बताया कि उन्हें सुबह केवल एक रोटी और दोपहर में थोड़े से चावल दिए जाते थे। यदि ठगी का निर्धारित लक्ष्य पूरा नहीं होता, तो रात का भोजन भी रोक दिया जाता था। उन्होंने कहा कि कैंप के बाहर म्यांमार की तरफ से लगातार बमबारी की आवाजें आती थीं, जिससे हर समय जान का भय बना रहता था।

500 भारतीयों के साथ विशेष विमान से स्वदेश हुई वापसी

भारत सरकार के हस्तक्षेप के बाद थाईलैंड पुलिस ने व्यापक स्तर पर बचाव अभियान चलाया। इस अभियान के तहत 7 नवंबर को 500 से अधिक भारतीय नागरिकों को विशेष विमान से सुरक्षित रूप से दिल्ली लाया गया। इनमें झुंझुनूं के अक्षय मीणा और शैलेष मीणा भी शामिल थे। दिल्ली पहुंचने के बाद दोनों युवकों को जयपुर भेजा गया, जहां साइबर सेल के एसआई भींवाराम ने उन्हें परिजनों के सुपुर्द किया। अक्षय के पिता रामस्वरूप मीणा ने भावुक होते हुए कहा कि “22 दिनों तक बेटे का कोई सुराग नहीं था, हमने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। आज जब वह सकुशल लौटा है, तो ऐसा लग रहा है जैसे उसे दूसरा जन्म मिला हो।” वहीं, शैलेष की मां ने आंसू भरी आंखों से बताया, “मेरा बेटा फोन पर कह रहा था कि मां, अब मैं जिंदा नहीं लौटूंगा — लेकिन आज उसे सामने देखकर विश्वास नहीं होता कि वह सच में बच गया है।”

6 महीने में राजस्थान के 85 युवक झांसे में फंसे

जयपुर साइबर सेल के एसआई भींवाराम ने जानकारी दी कि पिछले छह महीनों में राजस्थान के करीब 85 युवक थाईलैंड और म्यांमार स्थित साइबर ठगी कैंपों के जाल में फंस चुके हैं। इनमें से अब तक 62 युवकों को सुरक्षित वापस लाया जा चुका है। उन्होंने युवाओं से अपील की है कि टेलीग्राम और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मिलने वाले “उच्च वेतन वाले नौकरी ऑफर” के झांसे में न आएं।

अक्षय और शैलेष फिलहाल अपने घर लौट चुके हैं, लेकिन उनकी आंखों में अभी भी उस भयावह अनुभव की झलक साफ दिखाई देती है। दोनों ने कहा कि वे अपनी जान बचाने के लिए भारत सरकार और राजस्थान पुलिस के आभारी हैं। अक्षय ने कहा — हम किसी को भी थाईलैंड में नौकरी के नाम पर जाने की सलाह नहीं देंगे, क्योंकि वहां इंतज़ार है केवल धोखे और अत्याचार का।

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