राजस्थान में करीब 6,759 पंचायतों और 55 नगरपालिकाओं का कार्यकाल पूरा होने के बावजूद अब तक चुनाव नहीं कराए गए हैं। इसी मामले में दायर जनहित याचिकाओं पर राजस्थान हाईकोर्ट आज अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाने जा रहा है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश (एक्टिंग सीजे) एस.पी. शर्मा की खंडपीठ गिरिराज सिंह देवंदा और पूर्व विधायक सयंम लोढ़ा की याचिकाओं सहित अन्य मामलों पर निर्णय देगी।
अदालत ने इस मामले पर 12 अगस्त को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था, जो लगभग तीन महीने बाद अब सुनाया जा रहा है। चुनावों के स्थगन के साथ ही, पंचायतों के पुनर्गठन और परिसीमन से जुड़ी करीब 400 से अधिक याचिकाओं पर भी आज ही निर्णय आने की संभावना है।
क्या कहा याचिकाकर्ताओं ने?
याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि राज्य सरकार द्वारा पंचायत और निकाय चुनावों को स्थगित करना संविधान के अनुच्छेद 243E, 243K और राजस्थान पंचायत राज अधिनियम, 1994 की धारा 17 का सीधा उल्लंघन है। अधिवक्ता प्रेमचंद देवंदा ने दलील दी कि सरकार ने 16 जनवरी 2025 को जारी अधिसूचना के जरिए पंचायत चुनाव रोक दिए, जबकि पंचायतों का 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के बाद चुनाव एक दिन भी टाला नहीं जा सकता। जिन सरपंचों/प्रमुखों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, वे अब निजी व्यक्ति माने जाते हैं—ऐसे में उन्हें प्रशासक के रूप में नियुक्त करना अवैध है। उन्होंने कहा कि सरकार ने जनता की सबसे बुनियादी लोकतांत्रिक इकाई—पंचायतों—को अस्थिर कर दिया है।
नगरपालिकाओं के चुनाव पर रोक कैसे अवैध?
नगर निकायों के चुनाव टलने के खिलाफ पूर्व विधायक सयंम लोढ़ा की याचिका पर अधिवक्ता पुनीत सिंघवी ने कोर्ट को बताया कि प्रदेश की 55 नगरपालिकाओं का कार्यकाल नवंबर 2024 में पूरा हो चुका है। सरकार ने बिना वैधानिक अधिकार के उनमें प्रशासक नियुक्त कर दिए। यह नगरपालिका अधिनियम-2009 और संवैधानिक प्रावधानों का खुला उल्लंघन है। सिंघवी ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका है। प्राकृतिक आपदा जैसी आपात स्थितियों को छोड़कर स्थानीय निकाय चुनाव स्थगित नहीं किए जा सकते, लेकिन राजस्थान सरकार अपने संवैधानिक दायित्व का पालन करने में विफल रही है।
अब सबकी नजर हाईकोर्ट पर
इन सभी गंभीर सवालों के बीच राज्यभर की पंचायतों और निकायों का प्रशासन फिलहाल प्रशासकों के भरोसे चल रहा है। आज आने वाले फैसले से न केवल चुनाव पर स्थिति स्पष्ट होगी, बल्कि पंचायतों के परिसीमन, पुनर्गठन और प्रशासनिक वैधता पर भी बड़ा प्रभाव पड़ेगा।
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