फरीदाबाद के एक विश्वविद्यालय में 2,900 किलो विस्फोटक बरामद होने और कुछ ही घंटों बाद दिल्ली के लाल किले के पास हुए कार विस्फोट में 13 लोगों की मौत के बाद सुरक्षा एजेंसियां लगातार सक्रिय हैं।
10 नवंबर के बाद तीन दिनों में आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया और कई को हिरासत में लिया गया। इस पूरे घटनाक्रम में मिली जानकारी कभी-कभी उलझी हुई और विरोधाभासी रही है।
जांच में दक्षिण कश्मीर के तीन डॉक्टरों से जुड़ी आतंकी साजिश पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है। एजेंसियां कश्मीर, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश की कड़ियों को जोड़कर मामले की गहन पड़ताल कर रही हैं। अभी तक जो तथ्य सामने आए हैं, उन्हें इस तरह समझा जा सकता है।
‘वाइट कॉलर’ आतंकी मॉड्यूल भूमिका
जैश-ए-मोहम्मद की अंतरराज्यीय ‘सफेदपोश’ आतंकी साजिश में सबसे अहम शख्स डॉ. मुजम्मिल अहमद गनई उर्फ मुसैब है।
पुलिस के अनुसार 10 नवंबर की सुबह फरीदाबाद के अल-फलाह विश्वविद्यालय में गनई के किराए के घर से 360 किलो अमोनियम नाइट्रेट बरामद हुआ। गनई इसी विश्वविद्यालय में काम करता था और दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले के कोइल गांव का रहने वाला है।
इसके तुरंत बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस ने बताया कि विश्वविद्यालय और आसपास के इलाकों से कुल 2,900 किलो विस्फोटक बरामद हुआ है।
पुलिस ने इसे एक ‘सफेदपोश’ आतंकी मॉड्यूल का पर्दाफाश बताया और अलग-अलग राज्यों की टीमों के साथ इस अभियान का समन्वय किया।
साजिश में तीन डॉक्टर शामिल
डॉ. उमर नबी, 28 वर्ष, जो दक्षिण कश्मीर के काजीगुंड के रहने वाले हैं, 10 नवंबर की शाम लाल किले के पास हुए कार धमाके में शामिल थे।
घटनास्थल पर मिले अंगों के डीएनए नमूनों का मिलान उनकी मां के नमूनों से हुआ, जिससे उनकी संलिप्तता पक्की हुई। उमर भी फरीदाबाद के अल फलाह विश्वविद्यालय में काम करते थे और माना जाता है कि वे इस गिरोह में सबसे कट्टरपंथी थे।
लखनऊ की महिला डॉक्टर शाहीन सईद को इस साजिश की पूरी जानकारी थी। गिरफ्तार आठ आरोपियों में सिर्फ वह कश्मीरी नहीं है। जांच में पता चला कि वह 6 दिसंबर, बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी से पहले, योजनाबद्ध तरीके से रसद और सामान जुटाने की जानकारी रखती थी।
शाहीन ने जांच में बताया कि तीनों डॉक्टरों ने नेटवर्क फैलाने में मदद की और कई अन्य लोगों को इसमें शामिल किया। इसमें हरियाणा का मौलवी इश्तियाक भी था, जो अब जम्मू-कश्मीर पुलिस की हिरासत में है। अल फलाह विश्वविद्यालय में उसके किराए के परिसर का इस्तेमाल विस्फोटक रखने के लिए भी किया गया।
साजिश का स्रोत पता चला
18-19 अक्टूबर की रात, श्रीनगर शहर के बाहर कई जगहों पर जैश-ए-मोहम्मद के प्रतिबंधित पोस्टर लगाए गए। इन पोस्टरों में घाटी में पुलिस और सुरक्षा बलों पर हमले की चेतावनी दी गई थी।
श्रीनगर पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया और जांच के लिए टीम बनाई। सीसीटीवी फुटेज में पोस्टर चिपकाते हुए दिखने के बाद, तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया—आरिफ निसार डार उर्फ साहिल, यासिर-उल-अशरफ और मकसूद अहमद डार उर्फ शाहिद।
शोपियां से फरीदाबाद तक सफर
पूछताछ में गिरफ्तार आरोपियों ने शोपियां के मौलवी इरफान अहमद का नाम लिया, जिन्होंने पोस्टर मुहैया कराए थे। इरफान पहले पैरामेडिक के तौर पर काम करता था।
उसे गिरफ्तार किया गया और यही कड़ी साबित हुई जिससे साजिश का खुलासा हुआ। इरफान से मिली जानकारी के बाद जांच टीम अल फलाह विश्वविद्यालय और कश्मीरी डॉक्टरों के नेटवर्क तक पहुंच सकी।
अधिकारियों ने बताया कि इरफान ने गनई, उमर और मुजफ्फर को कट्टरपंथ की ओर उकसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तीनों ने बाजार से थोड़ी-थोड़ी मात्रा में अमोनियम नाइट्रेट, पोटेशियम नाइट्रेट और सल्फर खरीदकर जमा करना शुरू कर दिया था।
इसी बीच, मुजफ्फर के भाई डॉ. अदील राठेर को 7 नवंबर को सहारनपुर से गिरफ्तार किया गया। अनंतनाग अस्पताल में उसके लॉकर से एक एके-56 राइफल और अन्य गोला-बारूद बरामद हुआ। फिलहाल, उसकी पूरी भूमिका स्पष्ट नहीं हुई है।
अल-फलाह विश्वविद्यालय बना साजिश केंद्र
दिल्ली के पास फरीदाबाद के धौज गांव में स्थित यह विश्वविद्यालय 1997 में एक इंजीनियरिंग कॉलेज के रूप में शुरू हुआ था। अब यह 76 एकड़ में फैला हुआ है, जिसमें एक मेडिकल कॉलेज, 650 बिस्तरों वाला अस्पताल और एक चिकित्सा अनुसंधान केंद्र भी शामिल हैं।
परिसर में तीन कॉलेज भी चल रहे हैं – अल फलाह स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, ब्राउन हिल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी और अल फलाह स्कूल ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग। पुलिस ने अब तक फरीदाबाद और आस-पास के इलाकों से आरोपियों की तीन कारें जब्त कर ली हैं।
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