BJP candidate Morpal Suman defeat in Anta Bypoll result 2025: अंता उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने जोरदार कोशिश की, लेकिन वह कोशिश जीत में नहीं बदल पाई। पार्टी ने लगातार जनसंपर्क किया, दो बड़े रोड शो किए, दिग्गज नेताओं को मैदान में उतारा और मजबूत रणनीति बनाने का दावा भी किया, लेकिन कई खामियां इतनी भारी पड़ीं कि सत्ताधारी पार्टी को दूसरे नंबर पर आना भी चुनौती जैसा लगने लगा।
सीएम भजनलाल शर्मा और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पूरे जोर-शोर से चुनाव अभियान संभाला। पहले केवल एक रोड शो का प्रस्ताव था, लेकिन पहले रोड शो को मिले रिस्पांस के बाद पार्टी में उत्साह बढ़ा और तत्काल दूसरा रोड शो करने का फैसला हुआ। दोनों रोड शो ने माहौल तो बनाया, पर वह माहौल वोटों में तब्दील नहीं हो पाया।
भाया के गढ़ में पहला रोड शो
बीजेपी ने पहला रोड शो कांग्रेस उम्मीदवार प्रमोद जैन भाया के गढ़ मांगरोल में किया। प्रचार के आखिरी दिन दूसरा रोड शो अंता में हुआ। पहले रोड शो में सीएम भजनलाल शर्मा और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने मोरपाल सुमन का हाथ थाम कर मजबूत संदेश देने की कोशिश की, लेकिन परिणाम उलट निकले—जनता ने अपेक्षित समर्थन नहीं दिया।
अंतिम दौर में प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ भी रथ पर सवार हुए और लगातार तीन दिन फील्ड में रहे। राठौड़ ने कार्यकर्ताओं को एकजुट कर मैदान में उतरने के निर्देश दिए, मगर नतीजे उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे।
रणनीतिकारों की टीम मजबूत लेकिन…
चुनाव रणनीति की जिम्मेदारी पांच बार के सांसद दुष्यंत सिंह और अनुभवी संसदीय कार्य मंत्री जोगाराम पटेल को सौंपी गई थी। इनके साथ स्थानीय नेता गणेश माहुर और कई मंत्री भी सक्रिय थे। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी पिछले तीन दशक से बारां–झालावाड़ क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखती हैं और उन्होंने भी लगातार मॉनिटरिंग की। मजबूत टीम होने के बावजूद बीजेपी की रणनीति जमीनी स्तर पर प्रभावी रूप से लागू नहीं हो पाई। अनुभव रणनीति में बदल गया, लेकिन रणनीति ‘वोट’ में नहीं बदल सकी।
मंत्री होटल में, कार्यकर्ता फील्ड में
अभियान में लगाए गए कई मंत्री रोज रात कोटा या बारां में लौटकर ठहरते थे। कुछ मंत्री सुबह 11 बजे से पहले अंता विधानसभा में पहुंचते ही नहीं थे। चुनावी कार्यक्रमों में 11 बजे से 5 बजे तक के “ऑफिस टाइम” जैसे जनसंपर्क ने कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ा।
कई नेताओं ने केवल “मुंह दिखाई” कर अपनी मौजूदगी दर्ज की, जबकि स्थानीय कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि वे गांव–ढाणियों में साथ खड़े नजर आएंगे।
कांग्रेस ने ‘मैन टू मैन मार्किंग’
जहां बीजेपी में समन्वय की कमी दिखाई दी, वहीं कांग्रेस ने जमीन पर आक्रामक और सुविचारित रणनीति अपनाई। कांग्रेस के दिग्गज नेता टिकराम जूली ने खुद गांव–ढाणियों में अकेले जाकर मतदाताओं से संपर्क किया। कांग्रेस ने बूथ लेवल पर ‘मैन टू मैन मार्किंग’ की रणनीति लागू की, जिसका सीधा असर परिणाम पर दिखा।
टिकट चयन पर उठे सवाल
बीजेपी के टिकट चयन और प्रचार रणनीति दोनों पर सवाल उठने लगे हैं। अंता के प्रबल दावेदार और पूर्व मंत्री प्रभुलाल सैनी प्रचार से दूर रहे। एससी समाज से आने वाले मंत्री मदन दिलावर की गैर मौजूदगी भी चर्चा का विषय बनी। एसटी प्रभाव वाले क्षेत्रों में डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा के दौरे का भी असर दिखाई नहीं दिया। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की वीडियो अपील और हीरालाल नागर की क्षेत्र से दूरी ने भी पार्टी को नुकसान पहुंचाया।
मजबूत टीम, बड़े चेहरे, बड़े रोड शो
चुनाव अभियान में दम था, चेहरों की कमी नहीं थी, लेकिन समन्वय की कमी, स्थानीय समीकरणों की अनदेखी, जमीन पर कमजोर फॉलो-अप और रणनीति के खराब क्रियान्वयन ने बीजेपी की पूरी मेहनत पर पानी फेर दिया। कांग्रेस की आक्रामक जमीनी रणनीति और बीजेपी की आंतरिक कमियों ने मिलकर परिणाम तय कर दिया।
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