Rajasthan News: राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बुधवार को जयपुर स्थित कांग्रेस कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग की भूमिका और निष्पक्षता पर तीखे सवाल उठाए। गहलोत ने कहा कि आयोग ने राजस्थान विधानसभा चुनावों के दौरान उनकी सरकार की कई जनकल्याणकारी योजनाओं को रोक दिया, जबकि बिहार में वोटिंग से ठीक पहले मतदाताओं को सीधे लाभ पहुंचाने वाले बड़े वित्तीय फैसलों पर कोई रोक नहीं लगाई गई।
‘राजस्थान में चुनाव आते ही रोक दी गई योजनाएं‘
गहलोत ने कहा कि मार्च 2022 के बजट में उनकी सरकार ने 1 करोड़ 25 लाख महिलाओं को मोबाइल फोन बांटने की योजना शुरू की थी, लेकिन चुनाव की घोषणा के बाद आयोग ने इस योजना पर रोक लगा दी। उन्होंने बताया कि “30–40% महिलाओं को ही मोबाइल दे पाए। चुनाव आते ही रोक लगा दी गई।” बुजुर्गों, दिव्यांगों और महिलाओं को दी जाने वाली पेंशन वितरण प्रक्रिया भी चुनाव के दौरान रोक दी गई।
‘बिहार में मतदान से एक दिन पहले पेंशन बढ़ाई गई‘
गहलोत ने बिहार सरकार पर बड़ा आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वहीं दूसरी ओर मतदान से ठीक एक दिन पहले बिहार में पेंशन 400 रुपये से बढ़ाकर 1100 रुपये कर दी गई। चुनाव के बीच मतदाताओं के खातों में सीधे पैसे ट्रांसफर किए गए। उन्होंने पूछा कि अगर ऐसी कार्रवाई वोटरों को प्रभावित करने की श्रेणी में आती है, तो फिर चुनाव आयोग ने इसे कैसे नजरअंदाज कर दिया?
यह दोहरा मापदंड क्यों?
गहलोत ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा “अगर पोलिंग कल है और आज मेरे खाते में 10 हजार आएंगे, तो क्या होगा? हमारी योजनाएं रोक दी जाती हैं, लेकिन बिहार में वोटिंग से पहले पेंशन बढ़ाई जाती है। आखिर यह दोहरा मापदंड क्यों?”
SIR विवाद भी छेड़ा
गहलोत ने SIR (State Interest Registry) के मुद्दे पर भी आयोग को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि SIR के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है। इसके बावजूद चुनाव आयोग ने 12 राज्यों में SIR लागू कर दी। गहलोत ने सवाल उठाया कि यह निर्णय भी निष्पक्षता पर संदेह पैदा करता है।
‘आयोग की कार्यशैली निष्पक्ष नहीं दिखती’
अंत में गहलोत ने कहा कि राजस्थान और बिहार के मामलों में चुनाव आयोग के फैसले निष्पक्षता पर कई सवाल खड़े करते हैं। उन्होंने दावा किया कि आयोग की ये कार्रवाई “संदेह पैदा करने वाली” है और चुनावी निष्पक्षता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ जाती है।

