राजस्थान की राजनीति में इन दिनों तीसरे मोर्चे को लेकर हलचल तेज हो गई है। अंता विधानसभा उपचुनाव में मिले बड़े जन समर्थन के बाद निर्दलीय नेता नरेश मीणा भाजपा और कांग्रेस के विकल्प के रूप में एक नए राजनीतिक मंच को खड़ा करने की कोशिशों में जुट गए हैं।
चुनाव परिणाम आते ही उन्होंने प्रदेश में तीसरे मोर्चे की संभावनाओं को मजबूत करने के लिए लगातार मुलाकातें और रणनीतिक बैठकों का सिलसिला शुरू कर दिया है। नरेश मीणा ने दिल्ली और उत्तर प्रदेश में कई नेताओं से बातचीत की है। उनकी कोशिश है कि आरएलपी (हनुमान बेनीवाल), आम आदमी पार्टी, चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी सहित कई दलों को जोड़कर राजस्थान में एक प्रभावी तीसरा गठबंधन तैयार किया जाए।
तालमेल की तलाश और जन मुद्दों पर सक्रियता
नरेश मीणा लगातार ऐसे दलों और संगठनों की तलाश में हैं जिनके साथ तालमेल बनाकर राज्य में एक मजबूत गठबंधन खड़ा किया जा सके। सवाई माधोपुर में डूंगरी बांध आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका ने यह संकेत दिया है कि वे सिर्फ चुनावी राजनीति ही नहीं, बल्कि जन-आंदोलनों में भी अग्रणी भूमिका निभाने को तैयार हैं। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, उनकी सक्रियता यह संदेश दे रही है कि तीसरे मोर्चे की अवधारणा केवल बयानबाज़ी नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर तैयार की जा रही व्यावहारिक रणनीति है।
निकाय और पंचायत चुनाव होंगे पहला परीक्षण
अब नरेश मीणा की नजर पंचायत एवं निकाय चुनावों पर है। राजनीतिक सूत्रों के अनुसार, तीसरा मोर्चा इन चुनावों को अपनी ताकत परखने का पहला बड़ा मंच बनाएगा। अगर प्रदर्शन अच्छा रहा तो यह गठबंधन 2028 के विधानसभा चुनाव में खुद को एक बड़े विकल्प के तौर पर स्थापित करने की तैयारी करेगा। अंता उपचुनाव के नतीजों ने नरेश मीणा को यह भरोसा दिया है कि पारंपरिक दो-दलीय राजनीति के बीच नई जगह बनाई जा सकती है।
तीसरे मोर्चे के पुराने प्रयास क्यों असफल रहे
राजस्थान में तीसरे मोर्चे की कोशिशें नई नहीं हैं। हनुमान बेनीवाल ने पहले किरोड़ी लाल मीणा के साथ मोर्चा बनाने की कोशिश की थी। इससे पहले देवी सिंह भाटी भी ऐसे प्रयास कर चुके हैं। लेकिन ये गठबंधन लंबे समय तक टिक नहीं सके और भाजपा-कांग्रेस के बीच एक मजबूत विकल्प पेश करने में नाकाम रहे। इसलिए अब यह सवाल भी बड़ा है कि क्या इस बार तीसरा मोर्चा टिकेगा या यह भी कुछ समय बाद ठंडा पड़ जाएगा।
50 साल की सत्ता परंपरा बदलनी है — नरेश मीणा
एक न्यूज चैनल से खास बातचीत में नरेश मीणा ने साफ कहा कि अंता उपचुनाव में हार के बाद पीछे हटने का सवाल ही नहीं है। वे मानते हैं कि पंचायत और निकाय चुनाव में तीसरे मोर्चे की एंट्री ही 2028 की राजनीति पर बड़ा प्रभाव डालेगी। नरेश मीणा ने कहा राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा के अलावा भी एक ऐसी राजनीतिक ताकत होनी चाहिए जो गरीब, वंचित और आम नागरिक के लिए काम करे। ऐसी ताकत, जो पिछले 50 साल की सत्ता परंपरा को तोड़ सके। मैं प्रदेशभर में जाकर लोगों को जागरूक करूंगा और विभिन्न दलों व संगठनों से संवाद कायम रखूंगा।”
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